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पंजाब की सत्ता के पांच दावेदार, मगर जीतेगा वही, जो जीतेगा मालवा

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Published : Jan 27, 2022, 4:04 PM IST

Updated : Jan 27, 2022, 6:08 PM IST

117 सीटों वाले पंजाब में सरकार कौन बनाएगा ? पुरानी परंपरा के तहत सरकार बदल जाएगी या कांग्रेस का जादू चलेगा. आम आदमी पार्टी सत्ता के करीब पहुंचेगी या त्रिशंकु विधानसभा से सत्ता के नए सियासी समीकरण बनेंगे. अब तक पंजाब की सरकार की चाभी रखने वाले मालवा में किसका जादू चलेगा, पढ़ें यह रिपोर्ट

punjab assembly election 2022
punjab assembly election 2022

नई दिल्ली : पंजाब में भी सियासी घमासान जारी है. माना जा रहा है कि मतदान में किसान आंदोलन का असर हावी रहेगा. चुनाव मैदान में संयुक्त समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी भी है. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और बीएसपी भी दावेदारों में शामिल है. पंजाब विधानसभा चुनाव ( punjab assembly election 2022) में बीजेपी, पंजाब लोक कांग्रेस और संयुक्त अकाली दल मिलकर चुनाव लड़ रही है. कुल मिलाकर इस बार पंजाब में कुल पांच गठबंधन पांच गठबंधन जोर आजमाइश कर रहे हैं.

पंजाब में सरकार बनाने के कई जातीय और सामाजिक सियासी गणित हैं, मगर जाता है कि सरकार वही बनाता है, दो मालवा में बड़ी जीत हासिल करता है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 40 सीटें मालवा में जीती थी. 2012 के चुनाव में शिरोमणि दल ने इस इलाके में 33 सीटों पर जीत हासिल की थी. सतलुज नदी के दक्षिण में पड़ने वाले मालवा में 13 जिले हैं. मालवा क्षेत्र में विधानसभा की कुल 117 में से 69 सीटें आती हैं.

यह पंजाब में विधानसभा चुनाव का गणित.

ओपिनियन पोल के अनुसार मार्च में पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति सामने आ सकती है. मगर सभी सर्वे में एक तथ्य कॉमन है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है और सत्ता के करीब पहुंच सकती है. पंजाब में आम आदमी पार्टी को 10 साल की अकाली दल की सरकार और 5 साल की कांग्रेस से शासन से उपजे असंतोष को सीधा फायदा मिल सकता है.

भले ही कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल आम आदमी पार्टी की बढ़त को दरकिनार कर रहे हैं मगर वह पंजाब में बड़ी जीत के लिए दस्तक दे रही है. कहा जाता है कि पंजाब में सरकार बनाने के लिए मालवा इलाके में बड़ी जीत जरूरी है. फिलहाल मालवा इलाका आम आदमी पार्टी का गढ़ बनने जा रहा है. इस क्षेत्र की 69 सीटों पर वह कांग्रेस और अकाली दल को कड़ी टक्कर दे रही है. इसके अलावा 23 सीटों वाले दोआबा और 25 सीट वाले माझा क्षेत्र में भी आप काफी मेहनत कर रही है.

पंजाब में कांग्रेस की सरकार है मगर चन्नी और सिद्धू के बीच मतभेद से नतीजों पर फर्क पड़ सकता है.

कांग्रेस नेतृत्व की लड़ाई में उलझी :कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पंजाब में सीएम बदल दिया. नवजोत सिंह सिद्धू की जिद पर अमरिंदर सिंह की छुट्टी कर दी गई और चरणजीत सिंह चन्नी नए मुख्यमंत्री बनाए गए. कांग्रेस को नए सीएम से आस है, मगर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिद्धू ने जिस तरह अपनी अकांक्षा व्यक्त की है. कांग्रेस अब नेतृत्व को लेकर दुविधा में है.

छोटे बादल भी सीएम की रेस में : अकाली दल ने सुखबीर सिंह बादल को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया है. एक्सपर्ट मानते हैं कि पिछले पांच साल में विपक्ष के तौर पर कम सक्रियता से पार्टी का जनाधार खिसक गया है. आम आदमी पार्टी ने इसका भरपूर फायदा उठाया. विधानसभा के भीतर और बाहर उसने कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन किया. गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही शिरोमणि अकाली दल महज 15 सीटें जीतकर तीसरे नंबर की पार्टी बन पाई थी. पिछले साल शिरोमणि अकाली दल ने तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में अपने तीस साल पुराने पार्टनर बीजेपी से रिश्ता तोड़ लिया था. उसन 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है.

सुखबीर सिंह बादल पहली बार शिरोमणि अकाली दल को घोषित मुख्यमंत्री उम्मीदवार बने हैं.

पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 20 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया था. अब शिरोमणि अकाली दल के सामने सरकार बनाने से ज्यादा अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने की चुनौती है. अगर मालवा इलाके में आम आदमी पार्टी मजबूत होती है, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अकाली दल और कांग्रेस के लिए राह मुश्किल हो जाएगी.

2017 : वोट प्रतिशत के मामले में अकाली दल से पीछे थी आप

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 38.5 फ़ीसदी वोट मिले थे और उसे 77 सीटें मिली थीं. शिरोमणि अकाली दल को 25.3 फ़ीसदी वोट और 15 विधानसभा सीटों में जीत मिली थी. आम आदमी पार्टी को 23.8 फ़ीसदी वोट मिले थे मगर उसने 20 सीटों पर कब्जा किया था. बीजेपी को 5.3 प्रतिशत वोट और 3 सीटों से संतोष करना पड़ा था.

जातिगत व्यवस्था में जाट सिख वोट भारी

पंजाब में करीब दो करोड़ वोटर हैं. इनमें सिख वोटरों की संख्या 57.69 फीसदी है. इनमें जाट सिख की आबादी 19 फीसद है. हिंदू वोटरों की संख्या 38.59 पर्सेंट है, जिसमें ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, खत्री, अरोरा और सूद शामिल हैं. इसके अलावा मुस्लिम 1.9 फीसदी, ईसाई 1.3 फीसदी और अन्य धर्मों से हैं. दलित वोटर दोनों धर्मों सिख और हिंदू से ताल्लुक रखते हैं. कुल मिलाकर वोटिंग में 32 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं. रविदासी और वाल्मीकि में बंटे दलित कभी किसी पार्टी के पक्के वोटर नहीं माने गए.

बीजेपी, पंजाब लोक कांग्रेस और संयुक्त अकाली दल के लिए पंजाब में चुनाव लड़ना सबसे बड़ी चुनौती है.

सीएसडीए-लोकनीति के मुताबिक, साल 2007 और 2012 के पंजाब विधानसभा चुनावों में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को जाट सिखों ने जमकर वोट दिए थे. 2012 में गठबंधन को 52 फीसदी वोट मिले थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 30 फीसदी जाट सिख वोट हासिल कर लिया. अकाली-बीजेपी गठबंधन के हिस्से में 37 फीसदी वोट मिले. आम आदमी पार्टी ने पांच साल पहले कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे गैर सिख वोटों में भी सेंध लगाई. उसने गैर सिखों के 23 फीसद वोट हासिल किए थे.

क्या हैं संभावनाएं

एक्सपर्ट मानते हैं कि इस बार जाट सिख वोट आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल में बंट सकता है. गैर सिख वोट कांग्रेस के खाते में जा सकता है. दलित वोट का बंटवारा कांग्रेस और आम आदमी के बीच हो सकता है. बीजेपी और पंजाब लोक कांग्रेस के गठबंधन को माझा और मालवा में कुछ सीटें मिल सकती हैं. कुछ नवां ट्राय करेंगे का नारा मालवा में पॉपुलर हो चुका है. 10 मार्च को पता चलेगा कि कि पंजाब में नवां क्या होगा?

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Last Updated : Jan 27, 2022, 6:08 PM IST

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