नई दिल्ली :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को भारत के लोगों से 100वीं बार मन की बात की. अपने संबोधन की शुरुआत में ही उन्होंने लक्ष्मण राव इनामदार का जिक्र किया. पीएम ने लक्ष्मण राव इनामदार को अपना मार्गदर्शक बताया. उन्होंने कहा कि लक्ष्मण राव इनामदार ने ही उन्हें सामाजिक जीवन का मार्गदर्शन दिया. आइये जानते हैं कौन थे पीएम के राजनीतिक मार्गदर्शक.
कौन थे लक्ष्मण राव इनामदार
इनामदार का जन्म 1917 में पुणे से 130 किमी दक्षिण में खाटव गांव में एक गवर्नमेंट रेवेन्यू ऑफिसर के घर हुआ था. 10 भाई-बहनों में से एक इमानादार ने 1943 में पूना विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री पूरी की. इसके तुरंत बाद वह RSS में शामिल हो गए. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, हैदराबाद के निजाम के शासन के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया और फिर गुजरात में एक प्रचारक के रुप में शामिल हो गए और आजीवन शादी न करने का फैसला किया.
मोदी इनामदार से पहली बार कब मिले
1960 के दशक की शुरुआत में मोदी पहली बार इनामदार से तब मिले थे जब वह एक लड़के थे. उस समय इनामदार 1943 से गुजरात में आरएसएस के प्रांत प्रचारक थे. जिनका काम था राज्यभर के युवाओं को RSS की शाखाओं में शामिल होने के लिए प्रेरित करना. वह वडनगर में धाराप्रवाह में गुजराती में एक सभा को संबोधित कर रहे थे. तब मोदी ने इमानदार को पहली बार सुना और उनके भाषण के कायल हो गए.
मोदी लक्ष्मणराव इनामदार को नमन करते हुए जैसा कि मोदी ने साल 2008 की बुक 'ज्योतिपुंज' (इनामदार सहित 16 आरएसएस की जीवनी) में लिखा है, 'वकील साहब में अपने श्रोताओं को समझाने के लिए रोजमर्रा के उदाहरणों का उपयोग करने की क्षमता थी.' मोदी ने बुक में बताया है कि कैसे किसी व्यक्ति को नौकरी में दिलचस्पी नहीं थी और इनामदार ने उसे नौकरी लेने के लिए मना लिया. इमानदार ने उदाहरण दिया कि 'अगर आप इसे बजा सकते हैं तो ये बासुंरी है और अगर नहीं तो ये एक छड़ी है.'
मोदी की आरएसएस यात्रा
17 वर्षीय मोदी ने 1969 में हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वडनगर में अपना घर छोड़ दिया. 2014 में प्रकाशित किशोर मकवाना के कॉमन मैन नरेंद्र मोदी में उन्होंने कहा, 'मैं कुछ करना चाहता था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि क्या करना है.' कोलकाता के पास हुगली नदी के तट पर राजकोट में मिशन आश्रम से बेलूर मठ तक उन्होंने रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय में समय बिताया और फिर गुवाहाटी की यात्रा की.
बाद में, वह हिमालय की तलहटी में अल्मोड़ा में स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित एक और आश्रम पहुंचे. दो साल बाद वे वडनगर लौट आए. अपने घर पर थोड़ी देर रुकने के बाद, मोदी फिर से अहमदाबाद के लिए रवाना हुए, जहां वे रहते थे और अपने चाचा द्वारा चलाए जा रहे चाय के स्टॉल पर काम करते थे. यहीं पर उन्होंने वकील साहब से फिर से संपर्क स्थापित किया, जो उस समय शहर में आरएसएस मुख्यालय हेडगेवार में रहते थे.
मोदी के साथ दाईं तरफ लक्ष्मण राव इनामदार मुखोपाध्याय कहते हैं, 'इनामदार ने मोदी के जीवन में फिर से प्रवेश किया. एक ऐसे समय में जब वह चौराहे पर थे.' मुखोपाध्याय कहते हैं कि मोदी ने 1968 में अपनी शादी से दूर होने के लिए घर छोड़ दिया. जब वे लौटे, तो उन्होंने पाया कि उनकी पत्नी अभी भी उनका इंतजार कर रही है, इसलिए वे अहमदाबाद चले गए.' एक बार जब मोदी अपने गुरु की छत्रछाया में हेडगेवार भवन में चले गए, तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मोदी पर इनामदार का प्रभाव
मोदी के जीवन पर किताब लिखने वाले लोगों का मानना है कि मोदी के जीवन पर अगर किसी एक शख्स का सबसे ज्यादा असर पड़ा है तो वो हैं लक्ष्मणराव इनामदार. मोदी ने सामाजिक मुद्दों पर पकड़, कठोर अनुशासन और लगातार मेहनत करने की क्षमता इनामदार से ही सीखी है. यहां तक की मोदी को योग और प्राणायाम की आदत भी इनामदार से ही लगी. बता दें कि इनामदार वकिल साहब के रुप में भी जाने जाते थे और 1984 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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