हैदराबाद: जर्मनी को लोग हिटलर (Adolf Hitler) से जोड़कर देखते हैं लेकिन बीते करीब 2 दशक से इस देश की नई पहचान का नाम है एंजेला मर्केल. वैसे ये नाम बीते 31 सालों से जर्मनी की फिजाओं में मौजूद है और बीते एक दशक से ये नाम दुनियाभर के लोग सुन चुके हैं और उनकी ताकत भी देख चुके हैं.
26 सितंबर, रविवार को जर्मनी में आम चुनाव के लिए वोटिंग हुई. चुनाव का नतीजा जो भी हो, दो चीजें फिलहाल तय हैं. पहला सरकार दशकों से रवायत बन चुकी गठबंधन की ही बनेगी और दूसरा एंजेला मर्केल की पार्टी का पिछड़ना. CDU (christian democratic union) की एंजेला मर्केल का चुनाव ना लड़ने का फैसला ही उनकी पार्टी के खिलाफ गया है. आखिर एंजेला मर्केल की शख्सियत में ऐसा क्या है कि जनता ने जिसे 16 साल तक अपना नेता चुना उसके चुनाव लड़ने से इनकार करते ही उनकी पार्टी जीत से दूर हो गई.
कौन हैं एंजेला मर्केल ? (Angela Merkel)
जर्मनी की मौजूदा चांसलर का नाम है एंजेला मर्केल, ये पद प्रधानमंत्री के समकक्ष है. ये वही पद है जिसपर 12 साल एडॉल्फ हिटलर भी रहे, लेकिन हिटलर ने एक तानाशाह के रूप में राज किया और एंजेला मर्केल एक लोकतांत्रिक जर्मनी की कमान पिछले 16 साल से थामे हुए हैं. चांसलर का कार्यकाल चार साल का होता है, साल 2005 में पहली बार जर्मनी की चांसलर बनी एंजेला मर्केल का ये चौथा कार्यकाल है. लेकिन 67 साल की एंजेला मर्केल ने मौजूदा आम चुनाव से करीब 3 साल पहले साल 2018 में अगला चुनाव ना लड़ने की घोषणा कर दी थी. जिसके बाद से ही उनकी पार्टी का पिछड़ना तय माना जा रहा था.
कहानी एंजेला मर्केल की
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी चार हिस्सों में बंट गया. इन पर अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और सोवियत संघ का कब्जा हुआ. कुछ वक्त के बाद अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटने के कब्जे वाले जर्मनी के हिस्से एक हो गए. जिसे वेस्ट जर्मनी कहा गया, इसी तरह सोवियत संघ के कब्जे वाला जर्मनी का हिस्सा ईस्ट जर्मनी कहलाया, वहां सोवियत संघ का ही दबदबा था. इसी बीच साल 1954 में वेस्ट जर्मनी में हैम्बर्ग में एक बच्ची का जन्म हुआ जिसका नाम माता-पिता ने एंजेला रखा.
वेस्ट जर्मनी, सोवियत के कब्जे वाले ईस्ट जर्मनी से अधिक खुशहाल माना जाता था. लोग नौकरी पेशे के लिए ईस्ट से वेस्ट जर्मनी जाने लगे थे, एक तरह का पलायन भी शुरू हो गया था. लेकिन एंजेला के पिता को धारा के विपरीत बहने का मौका मिल गया, ईस्ट जर्मनी के एक चर्च में पादरी की नौकरी मिल गई और उनका परिवार ईस्इट जर्मनी आ गया. इस बीच साल 1961 में बर्लिन शहर के बीचों बीच एक दीवार खड़ी कर दी गई, जो 28 साल बाद ढहाई गई.
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रशियन और गणित विषय की होनहार छात्रा रही मर्केल क्वांटम केमिस्ट्री में डॉक्ट्रेट हैं और वो रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर भी काम कर चुकी हैं. लेकिन किसे पता था कि एक महिला वैज्ञानिक एक दिन जर्मनी की पहली महिला चांसलर बनेंगी. वो जर्मनी की सबसे लंबे वक्त तक रहने वाली तीसरी चांसलर हैं, हिटलर भी उनसे चार साल कम जर्मनी पर राज कर पाए थे.
एंजेला मर्केल का चुनौतियों भरा सफर
एंजेला मर्केल ने साल 1990 के जर्मन फेडरल इलेक्शन में चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंची. इसके बाद सरकार से लेकर पार्टी तक में उनका कद बढ़ता रहा. वो महिला और युवा मामलों की मंत्री के बाद पर्यावरण मंत्री की जिम्मेदारी भी जर्मन सरकार में संभाल चुकी हैं. इस बीच साल 1998 में उनकी पार्टी सीडीयू (CDU) ने उन्हें पार्टी का महासचिव और फिर दो साल बाद पार्टी का मुखिया बना दिया. और फिर साल 2005 में जर्मनी के आम चुनाव में कुछ ऐसा हुआ जो जर्मनी के इतिहास में कभी नहीं हुआ था. एंजेला मर्केल ने देश की पहली महिला चांसलर के रूप में जर्मनी की बागडोर संभाली.
- चांसलर के जिस पद पर हमेशा से पुरुषों का कब्जा रहा है वहां मर्केल का पहुंचना एक अपवाद माना गया.
- मर्केल जब पहली बार जर्मनी की चांसलर बनी तो मामूली बहुमत के साथ बनी सरकार भी एंजेला के पक्ष में नहीं थी. विरोधियों समेत कईयों ने कहा कि वो लंबे वक्त तक नहीं टिक पाएंगी. लेकिन वो बीते कल की बात है, आज उस लम्हें को 16 बरस से अधिक बीत चुका है. मर्केल अब भी जर्मनी की चांसलर हैं और उन्हें अपवाद बताने वाले उनके फैन हो चुके होंगे.
- CDU में इतना दबदबा रखने वाली पहली महिला और पूर्वी जर्मनी की होने के कारण बाहरी का तमगा भी उनके साथ लगा हुआ था. जो उनके लिए चुनौती माना जा रहा था.
- उनके 16 साल के कार्यकाल में आंतरिक से लेकर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों ने उनका रास्ता रोका. लेकिन उन्होंने हर चुनौती को साहसिक फैसले लेने के अपने कौशल से पराजित किया.
मर्केल को क्यों याद करेगा जर्मनी ?
यूरोपियन यूनियन से लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तालमेल की बात हो यान निडर होकर फैसले लेने की काबीलियत या फिर बातचीत की मेज पर हल खोजने का उनका नुस्खा, वो अपने अपने कई फैसलों, सिद्धांतों और चमक-धमक से दूर रहने वाली अपनी छवि को लेकर हमेशा याद की जाएंगी. लेकिन अपने कार्यकाल में उनके कुछ फैसले जर्मनी के इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे.
-साल 2008, अमेरिका से चला मंदी का दौर दुनिया के कई देशों को अपनी चपेट में ले चुका था. लेकिन एंजेला मर्केल ने जर्मनी के लोगों को विश्वास दिलाया कि बैंकों में जमा उनकी बचत महफूज रहेगी. उन्होंने अपना वादा निभाया भी और जर्मनी को इस मंदी के दौर से सुरक्षित निकालकर ले गईं.
-साल 2015, सीरीयाई संकट के बाद लाखों शरणार्थियों ने यूरोप का रुख किया तो जर्मनी ने गृहयुद्ध से भाग रहे लोगों को शरण दी. ऐसा करने वाला जर्मनी गिने चुने यूरोपीय देशों में से एक था. हंगरी में फंसे शरणार्थियों के लिए जर्मनी ने अपनी सीमा बंद ना करने का फैसला लिया. कहते हैं कि उस दौरान करीब 10 लाख शरणार्थियों ने जर्मनी में शरण ली थी. इस फैसले से लोग नाराज हुए, यूरोपियन यूनियन का विरोध झेलना पड़ा और अपनी पार्टी की नाराजगी भी. असर उनकी लोकप्रियता पर भी पड़ा और विरोधियों ने भी इस मौके को भुनाने की कोशिश की लेकिन मर्केल अपने फैसले पर जमीं रहीं.
-साल 2017, मर्केल ने संसद में समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने का रास्ता तैयार किया. जानकार मानते हैं सालों बाद पारित हुए इस कानून के लिए उन्होंने पार्टी लाइन को तोड़ा था, जो उनकी उपलब्धियों में गिना जाएगा.
-साल 2020, कोरोना संक्रमण ने दुनियाभर को चपेट में ले लिया. इस दौरान भी मर्केल सरकार के कामों की सराहना हुई है. बीते 16 साल में वो एक उम्दा चांसलर साबित हुई. जानकार मानते हैं कि इस दौर में जर्मनी की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है, रोजगार के मौके बढ़े हैं और नागरिकों का जीवन स्तर ऊंचा उठा है.