हैदराबाद : भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) की स्थापना 1966 में न्यूयॉर्क में की थी. इसे 'हरे कृष्ण आंदोलन' के रूप में भी जाना जाता है. भगवान कृष्ण के संदेश को पूरे विश्व में पहुंचाने के लिए स्वामी प्रभुपाद ने इस्कॉन मंदिर की स्थापना की थी. स्वामी ने सौ से अधिक मंदिरों की स्थापना की. उन्होंने दुनिया को योग का मार्ग सिखाने वाली कई किताबें लिखी हैं.
इस्कॉन ने श्रीमद्भागवत गीता समेत अन्य वैदिक साहित्य का विविध भाषाओं में अनुवाद किया है. इस संस्था ने इन ग्रंथों का दुनिया भर की 89 भाषाओं में अनुवाद करवाया है. इस्कॉन दुनिया भर में वैदिक साहित्य के प्रसार में बड़ी भूमिका निभा रहा है.
इस्कॉन के जो तत्व हैं, उनका मुख्य आधार गीता है. इस्कॉन को मानने वाले कृष्ण को सबसे बड़ा भगवान मानते हैं. वे यह भी मानते हैं कि जितने भी देवता हैं, सभी कृष्ण के ही अवतार हैं.
वे यह भी कहते हैं कि लोगों को भक्ति मार्ग पर चलना चाहिए. भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करनी चाहिए और इसीलिए इस्कॉन मंदिरों की स्थापना की गई है.
इस्कॉन का संबंध गौडीय वैष्णव संप्रदाय से है. आपको बता दें कि गौड़ का मतलब होता है प. बंगाल. यहीं से वैष्णव संप्रदाय की शुरुआत हुई थी.
प्रभुपाद पूरे भारत में श्रीकृष्ण के मंदिर बनवाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने 1995 में दिल्ली में इस्कॉन मंदिर बनवाया और उसका असली नाम श्रीराधा पार्थसारथी मंदिर रखा गया.
प्रभुपाद ने ऐसा भी कहा था कि, 'ये सभी मंदिरे अध्यात्मिक अस्तपाल है.' जिस तरह से बीमारी को ठीक करने के लिए एक मरीज अस्पताल जाता है, उसी तरह एक भक्त ने भगवान के दर्शन के लिए मंदिर आना चाहिए और भगवान के कीर्तन सुनने चाहिए जिससे उसके विचार अच्छे हो जाते हैं, और वह भगवान की भक्ति में लीन हो जाता है.
प्रभुपाद का जन्म एक सितंबर 1896 को कोलकाता में हुआ था. तब उनका नाम अभय चरण डे था. वे 1933 में अपने गुरु भक्ति सिद्धान्त ठाकुर सरस्वती के संपर्क में आए. उसके बाद वह स्वामी प्रभुपाद के नाम से जाने जाने लगे. भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करो. आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने 59 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे. अथक प्रयासों के बाद 70 वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की. न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी.
अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है. स्वामी प्रभुपाद के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में 108 मंदिरों का निर्माण हो चुका था. इस समय इस्कॉन समूह के लगभग 400 से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है.
भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है. इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर व विद्यालय बनवाए हैं.
क्या है उनका मुख्य सिद्धान्त
तामसिक भोजन से दूर रहना. अनैतिक आचरण से दूर रहना. एक घंटा शास्त्राध्ययन और 'हरे कृष्णा-हरे कृष्णा' नाम की 16 बार माला करना.