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Protesting Against UCC : समान नागरिक संहिता का कौन कर रहा विरोध ?

समान नागरिक संहिता का विरोध कौन-कौन कर रहा है ? क्या सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही इसका विरोध कर रहे हैं ? क्या भाजपा के सहयोगी भी इसका विरोध कर रहे हैं. इन सारे सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

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यूसीसी का विरोध (डिजाइन फोटो)

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Published : Jul 5, 2023, 7:29 PM IST

Updated : Jul 5, 2023, 7:43 PM IST

नई दिल्ली : विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) यानी समान नागरिक संहिता को लेकर जो भी सुझाव एकत्रित किए हैं, उसकी रिपोर्ट अभी सामने नहीं आई है. एक बार जब ड्राफ्ट सामने आ जाएगा, फिर इस पर बहस और अधिक तेज होगी. फिर भी यूसीसी को लेकर विरोध शुरू हो चुका है. विरोध सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही नहीं कर रहीं हैं, बल्कि एनडीए के सहयोगी दल भी उनमें शामिल हैं.

कौन-कौन से दल इसके विरोध में हैं, और वे ऐसा क्यों कर रहे हैं, इसे जानने से पहले आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता की अवधारणा हमारे संविधान के अनुच्छेद 44 में है. इसके तहत सिविल कानूनों में एकरूपता लाना प्रमुख उद्देश्य है.

यूसीसी का विरोध करने वालों में आदिवासी समुदाय और मुस्लिम समुदाय सबसे आगे हैं. भाजपा की जिन सहयोगी पार्टियों ने विरोध किया है, उनमें से अधिकांश पार्टियां उत्तर पूर्व में शासन में हैं.

असम में असम गण परिषद ने यूसीसी का विरोध किया है. एजीपी भाजपा की सहयोगी पार्टी है.

मणिपुर में नगा पीपल्स पार्टी ने यूसीसी को सही नहीं ठहराया है. पार्टी ने कहा कि केंद्र सरकार हम पर यूसीसी नहीं थोप सकती है. एनपपी ने तो यहां तक कह दिया कि यूसीसी की स्वीकार्यता का अर्थ होगा- हमारी प्रचीन संस्कृति की अस्वीकार्यता और अपमान. उन्होंने कहा कि हमारे संविधान ने अनुच्छेद 371 (1) के तहत अपनी परंपरा और प्रथाओं को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया है.

मेघालय में भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपल्स पार्टीने भी यूसीसी पर आपत्ति जताई. यहां पर एनपीपी की सरकार है और भाजपा उनकी जूनियर सहयोगी दल है. कॉनराड संगमा एनपीपी के अध्यक्ष हैं. संगमा ने साफ किया है कि नॉर्थ ईस्ट के लोग नहीं चाहते हैं कि उनके निजी मामलों में किसी तरह का कोई भी हस्तक्षेप हो. संगमा ने कहा कि हमारी संस्कृति और जीवन पद्धति अलग है, हमारे तरीके भी अलग हैं और ये ऐसे ही बने रहने चाहिए, इसमें हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. संगमा ने उत्तर पूर्व में मातृसत्तात्मक व्यवस्था की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि हम इसे कैसे बदल सकते हैं.

मिजो नेशनल फ्रंट भी एनडीए में है. मिजोरम में एमएनएफ की सरकार है. यहां पर यूसीसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया. इसमें कहा गया है कि भले ही केंद्र सरकार इसे पारित कर दे, कानून बना दे, लेकिन जब तक मिजोरम विधानसभा इसे पारित नहीं कर देता, तब तक इसे यहां पर लागू नहीं किया जा सकता है. यहां यह भी बता दें कि पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा जनजातीय आबादी मिजोरम में ही है.

इसी तरह से त्रिपुरा में इंडिजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुराभी यूसीसी का विरोध कर रही है. उनका कहना है कि हम अपनी जातीय पहचान को सुरक्षित रखना चाहते हैं और इस अधिकार पर किसी ने प्रहार किया, तो विरोध जरूर होगा.

मिजोरम में 94.4 प्रतिशत, मेघालय में 86.1 प्रतिशत और नगालैंड में 86.5 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. यहां पर तिब्बती बर्मन और ऑस्ट्रो एशियाटिक समाज के भी लोग रहते हैं. उनकी अपनी जिंदगी जीने की शैली है. साथ ही संविधान ने छठी अनुसूची में इन राज्यों के आदिवासियों को विशेष अधिकार भी दे रखे हैं. अगर यूसीसी आया, तो इन अधिकारों पर प्रहार हो सकता है.

देश की कुल आबादी में से आठ फीसदी यानी 10.43 करोड़ आदिवासी हैं. आदिवासियों के कुल 705 समुदाय हैं. अधिसंख्य जनजातीय आबादी पहाड़ों और जंगलों वाले इलाके में रहते हैं. इसलिए इनका सामाजिक बैकग्राउंड और शैक्षणिक स्थिति कमजोर है. जाहिर है सामाजिक जागरूकता को लेकर भी यहां पर कमी है.

आदिवासी समाज में एक ही महिला कई पुरुषों से शादी करती है. कुछ समुदायों में एक पुरुष की कई पत्नियां होती हैं. ऐसे में यहां पर शादी और संपत्ति विरासत को लेकर यूसीसी के तहत दिक्कतें आ सकती हैं.

मेघालय में आदिवासी समुदाय में संपत्ति सबसे छोटी बेटी को दी जाती है. कुछ जगहों पर लड़की की शादी होती है, तो लड़के को लड़की के घर पर ही बसना होता है. यह प्रथा गारो और खासी समुदाय में है.

कुछ जगहों पर अगर आदिवासी समुदाय की लड़कियां दूसरे समुदाय के लड़कों से शादी करती हैं तो उन्हें संपत्ति से महरूम कर दिया जाता है. क्या भाजपा इनकी अनदेखी कर सकती है. लोकसभा में 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2019 में भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं.

मुस्लिम समुदाय का विरोध - ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम समाज से इस प्रस्ताव का विरोध करने का आग्रह किया है. वे मानते हैं कि यूसीसी के जरिए उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप किया जा रहा है.

इसके लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक लिंक तैयार किया है. इस लिंक पर क्लिक करने के बाद अपनी मेल आईडी लिखकर लॉ कमीशन को इसे भेजना है.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया कि यूसीसी न तो शरीयत और न ही मुस्लिम पर्सनल बोर्ड से मेल खाता है. उनके अनुसार इसके जरिए अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों पर निशाना साधा जा रहा है.

सिखों का विरोध- पंजाब में सिखों ने भी यूसीसी का विरोध किया है. अभी सिखों पर हिंदू पर्सनल लॉ लागू होता है. सिखों के बीच आनंद मैरिज एक्ट की मान्यता है. वे अपनी शादी इस पर रजिस्टर्ड करवाते हैं. अब चर्चा है कि यूसीसी आएगा, तो आनंद मैरिज एक्ट खत्म कर दिया जाएगा. इसको लेकर सिखों में भी नाराजगी है. वैसे भी तलाक का जब मामला आता है, तो उन पर भी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है. साथ ही सिखों की कुछ परंपाएं ऐसी हैं, जो दूसरों से उन्हें अलग बनाती है. जैसे कृपाण रखना. सिख फैमिली प्लानिंग को भी नहीं मानते हैं.

क्या था शाहबानो मामला - सुप्रीम कोर्ट ने 1986 में तलाकशुदा महिला (शाहबानो) के पति को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. इस फैसले के दौरान कोर्ट ने समान नागरिक संहिता लागू करने की भी बात कही थी. इस फैसले को लेकर खूब विरोध हुआ था. उस समय राजीव गांधी की सरकार थी. राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए नया कानून बना दिया.

कांग्रेस समेत विपक्ष के नेता यूसीसी का विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एमएस गोलवरकर का एक पुराना इंटरव्यू ट्वीट कर दावा किया है कि वह भी इसका विरोध करते थे.

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Last Updated : Jul 5, 2023, 7:43 PM IST

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