नई दिल्ली : विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) यानी समान नागरिक संहिता को लेकर जो भी सुझाव एकत्रित किए हैं, उसकी रिपोर्ट अभी सामने नहीं आई है. एक बार जब ड्राफ्ट सामने आ जाएगा, फिर इस पर बहस और अधिक तेज होगी. फिर भी यूसीसी को लेकर विरोध शुरू हो चुका है. विरोध सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही नहीं कर रहीं हैं, बल्कि एनडीए के सहयोगी दल भी उनमें शामिल हैं.
कौन-कौन से दल इसके विरोध में हैं, और वे ऐसा क्यों कर रहे हैं, इसे जानने से पहले आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता की अवधारणा हमारे संविधान के अनुच्छेद 44 में है. इसके तहत सिविल कानूनों में एकरूपता लाना प्रमुख उद्देश्य है.
यूसीसी का विरोध करने वालों में आदिवासी समुदाय और मुस्लिम समुदाय सबसे आगे हैं. भाजपा की जिन सहयोगी पार्टियों ने विरोध किया है, उनमें से अधिकांश पार्टियां उत्तर पूर्व में शासन में हैं.
असम में असम गण परिषद ने यूसीसी का विरोध किया है. एजीपी भाजपा की सहयोगी पार्टी है.
मणिपुर में नगा पीपल्स पार्टी ने यूसीसी को सही नहीं ठहराया है. पार्टी ने कहा कि केंद्र सरकार हम पर यूसीसी नहीं थोप सकती है. एनपपी ने तो यहां तक कह दिया कि यूसीसी की स्वीकार्यता का अर्थ होगा- हमारी प्रचीन संस्कृति की अस्वीकार्यता और अपमान. उन्होंने कहा कि हमारे संविधान ने अनुच्छेद 371 (1) के तहत अपनी परंपरा और प्रथाओं को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया है.
मेघालय में भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपल्स पार्टीने भी यूसीसी पर आपत्ति जताई. यहां पर एनपीपी की सरकार है और भाजपा उनकी जूनियर सहयोगी दल है. कॉनराड संगमा एनपीपी के अध्यक्ष हैं. संगमा ने साफ किया है कि नॉर्थ ईस्ट के लोग नहीं चाहते हैं कि उनके निजी मामलों में किसी तरह का कोई भी हस्तक्षेप हो. संगमा ने कहा कि हमारी संस्कृति और जीवन पद्धति अलग है, हमारे तरीके भी अलग हैं और ये ऐसे ही बने रहने चाहिए, इसमें हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. संगमा ने उत्तर पूर्व में मातृसत्तात्मक व्यवस्था की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि हम इसे कैसे बदल सकते हैं.
मिजो नेशनल फ्रंट भी एनडीए में है. मिजोरम में एमएनएफ की सरकार है. यहां पर यूसीसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया. इसमें कहा गया है कि भले ही केंद्र सरकार इसे पारित कर दे, कानून बना दे, लेकिन जब तक मिजोरम विधानसभा इसे पारित नहीं कर देता, तब तक इसे यहां पर लागू नहीं किया जा सकता है. यहां यह भी बता दें कि पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा जनजातीय आबादी मिजोरम में ही है.
इसी तरह से त्रिपुरा में इंडिजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुराभी यूसीसी का विरोध कर रही है. उनका कहना है कि हम अपनी जातीय पहचान को सुरक्षित रखना चाहते हैं और इस अधिकार पर किसी ने प्रहार किया, तो विरोध जरूर होगा.
मिजोरम में 94.4 प्रतिशत, मेघालय में 86.1 प्रतिशत और नगालैंड में 86.5 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. यहां पर तिब्बती बर्मन और ऑस्ट्रो एशियाटिक समाज के भी लोग रहते हैं. उनकी अपनी जिंदगी जीने की शैली है. साथ ही संविधान ने छठी अनुसूची में इन राज्यों के आदिवासियों को विशेष अधिकार भी दे रखे हैं. अगर यूसीसी आया, तो इन अधिकारों पर प्रहार हो सकता है.
देश की कुल आबादी में से आठ फीसदी यानी 10.43 करोड़ आदिवासी हैं. आदिवासियों के कुल 705 समुदाय हैं. अधिसंख्य जनजातीय आबादी पहाड़ों और जंगलों वाले इलाके में रहते हैं. इसलिए इनका सामाजिक बैकग्राउंड और शैक्षणिक स्थिति कमजोर है. जाहिर है सामाजिक जागरूकता को लेकर भी यहां पर कमी है.