हैदराबाद : नंदीग्राम में संघर्ष के बाद अब सिंगूर की बारी है. शनिवार को यहां पर मतदान होना है. नंदीग्राम की तरह सिंगूर का भी अपना इतिहास है. ममता बनर्जी ने यहां पर आंदोलन छेड़ा था. इन आंदोलनों की बदौलत उन्होंने 34 साल के वाम शासन को उखाड़ फेंका था. पर, इस बार यहां क्या होगा, कहना मुश्किल है. टीएमसी, भाजपा और वाम तीनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है.
आपको बता दें कि वाम सरकार ने टाटा मोटर्स के लिए सिंगूर में जमीन अधिग्रहण करने का फैसला किया था. तब स्थानीय जनता ने इसका विरोध कर दिया. ममता ने इस अवसर को राजनीतिक रंग दिया. उनके पक्ष में आंदोलन के लिए खड़ी हो गईं. नंदीग्राम के साथ-साथ सिंगूर की वह बड़ी नेता बन गईं. पूरा मामला 2006 का है.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल 2001 से ही सिंगूर में अच्छा करती आ रही है. 2001 में टीएमसी ने यहां से रबींद्रनाथ भट्टाचार्जी को खड़ा किया था. वह एक स्थानीय शिक्षक थे. 2016 तक वह लगातार यहां से चुनाव जीतते रहे. उन्हें 'मास्टर मोशाय' के रूप में जाना जाता है. सिंगूर इलाके में उन्होंने ममता के पक्ष में माहौल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन यह 2016 नहीं, 2021 है. परिस्थिति बदल चुकी है.
89 साल के मास्टर मोशाय अब भाजपा में जा चुके हैं. टीएमसी ने पहले ही उन्हें टिकट न देने की घोषणा कर दी थी. टीएमसी का कहना है कि वह बुजुर्ग हो चुके थे, लिहाजा उनका टिकट काटा गया था.
भाजपा ने यह मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पार्टी ने मास्टर मोशाय को अपना उम्मीदवार बना दिया. उनके खिलाफ टीएमसी के बेचाराम मन्ना को मैदान में उतारा. वह कृषि जमीन रक्षा समिति के समन्वयक हैं. मन्ना सिंगूर के बगल के इलाके हरिपाल से विधायक हैं. हरिपाल से मन्ना की बीवी काराबी मैदान में हैं. वह टीएमसी से चुनाव लड़ रही हैं. दरअसल, भाजपा चाहती थी कि मन्ना ही कमल के सिंबल पर चुनाव लड़ें. लेकिन उन्होंने मना कर दिया.