हैदराबाद:संसदीय लोकतंत्र में विधानसभा या संसद के स्पीकर यानी अध्यक्ष का पद वह होता है जो मूल्यों की रक्षा करते और परंपराओं को कायम रखते हुए असहमति की बहस के मंच को वैधता प्रदान करता है. यह लोकतंत्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अध्यक्षों के सम्मेलन का शताब्दी का मौका है.
पहली बार दिए गए शून्यकाल के सभी प्रश्नों के उत्तर
कोविड के कारण रोक के बावजूद देश का एकीकरण करने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की भावना से प्रेरित संविधान दिवस समारोह से जुड़ा 80वां सम्मेलन संपन्न हुआ. हालांकि, विधानमंडलों में बहस जनता की आकांक्षाओं को दर्शाती है लेकिन दशकों से सदनों की कार्यवाही के सुचारू ढंग से संचालन को लेकर एक बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने देहरादून में एक बैठक में उल्लेख किया कि 1972 के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि संसद के शीतकालीन सत्र (27 नवंबर ) के दौरान शून्यकाल में सभी 20 सवालों के जवाब दिए गए.
बनाए रखना चाहिए संवैधानिक मूल्य
दल-बदल कानून को प्रतिष्ठापित करने वाली संविधान की दसवीं अनुसूची के साथ अध्यक्षों की शक्ति को लेकर पिछले साल नियुक्त समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच 'सौहार्दपूर्ण सहयोग' इस वर्ष की चर्चा का मुख्य विषय होगा. किसी को इस बात से इनकार नहीं है कि अध्यक्षों को संकल्प लेना चाहिए कि वे संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए विधानसभाओं को मजबूत और सशक्त बनाते हुए उन्हें अधिक जवाबदेह बनाने का प्रयास करेंगे.
देश की स्वतंत्रता और मर्यादा का प्रतीक है अध्यक्ष पद
केवाईसी की नई व्याख्या 'अपने संविधान को जानें' के रूप में करते हुए प्रधानमंत्री ने सभी से आग्रह किया है कि संविधान पवित्र पुस्तक है जिसे लोगों के करीब लाएं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि विधायिका के सदस्य और अध्यक्ष संवैधानिक नियमों के प्रति वचनबद्ध हैं तो अधिकांश समस्याएं खुद ब खुद गायब हो जाएंगी. मौजूदा चुनौती अध्यक्ष के पद को संवैधानिक प्रेरणा का प्रतीक बनाने की है! ‘अध्यक्ष सदन की स्वतंत्रता और उसके उच्च आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है. चूँकि सदन देश का प्रतिनिधित्व करता है. इस लिहाज से अध्यक्ष देश की स्वतंत्रता और मर्यादा का प्रतीक है. इसलिए, उस पद को हर हाल में गरिमापूर्ण बनाया जाना चाहिए.’