नई दिल्ली : मुंशी प्रेमंचद (Munshi Premchand) की कहानियों में न सिर्फ साहित्य का उत्कृष्ट फलक नजर आता है, बल्कि उनकी लेखनी में उस वक्त की सामाजिक स्थितियों को लेकर साहित्यकार के मन की गहराई का भी पता लगता है. एक अच्छे साहित्यकार की पहचान ही यही है कि वो निजी जीवन को भी साहित्य की ही तरह उतार-चढ़ाव के बावजूद, पठनीय बनाए रखे. मुंशी प्रेमचंद का निजी जीवन भी उतना ही सरल था, जितना कि उनका साहित्य. निजी जीवन में महिलाओं के प्रति उनके मन में क्या भाव थे, ये उस किस्से से पता चलता है, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने नहीं बल्कि उनकी पत्नी ने लिखा है. साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद को आप सब जानते हैं, लेकिन एक पति के रूप में मुंशी प्रेमचंद कैसे थे, पढ़िए ये किस्सा.
साल 1931 की बात है. शिवरानी देवी आजादी की लड़ाई में स्वयंसेवक बन चुकी थीं और लखनऊ में महिला आश्रम की संचालिकाओं में से एक थीं. उन्हें 11 नवंबर को कई महिलाओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तो मुंशी जी बनारस गए हुए थे. गिरफ्तारी के दूसरे दिन वह वापस लखनऊ आए और बहुत परेशान हो गए. उन दिनों उनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी. कुछ दिनों बाद शिवरानी देवी को जेल से छोड़ दिया गया.
जेल से छूटने के बाद जब शिवरानी देवी मुंशी जी के कमरे में पहुंची तो उन्होंने देखा कि उनकी एक फोटो लगी हुई है, जिस पर एक चंदन की माला और एक फूल की माला पहनाई गई है. यह देखते ही उन्होंने मुंशी जी से पूछा कि यहां आपने मेरा फोटो क्यों लगाया? इसको यहां नहीं लगाना चाहिए था क्योंकि यहां हर तरह के लोग मिलने-जुलने आते हैं. यह अच्छा नहीं मालूम होता. इसे उतारकर मुझे दे दीजिए. इस पर मुंशी जी ने हंसकर कहा कि क्या इसे हटाने के लिए लगाया है.
इस पर शिवरानी देवी बोलीं- यह अच्छा नहीं लगता साहब, कोई देख लेगा.
मुंशी जी बोले- अरे तो क्या मैंने इसे छिपाकर रखा है. देखने के लिए ही तो लगाया है. इस पर शिवरानी देवी ने कहा कि यह तो एक तरह से मुझे शर्म मालूम होती है.
मुंशी जी ने उत्तर दिया- न मालूम, तुम्हें क्यों शर्म मालूम होती है, मुझे तो कोई शर्म मालूम नहीं होती. तुम्हारे कमरे में भी मेरा फोटा लगा है तो मेरे कमरे में तुम्हारी फोटो तुम्हें क्यों बुरी लगती है. शिवरानी जी ने तर्क दिया- मर्दों के कमरों में औरतों के फोटो अच्छे नहीं लगते.
इसमें बुरा लगने की कोई बात नहीं है. मुंशी जी ने कहा और फिर तुम्हारी फोटो कहां लगाई जाए कि तुमको बुरी न लगे, अच्छी लगे और तुम्हें शर्म भी न लगे ?
मेरा फोटो मेरे कमरे में ही रहे. मेरा भाई लगाए या बेटे लगावें तो मुझे बुरा न लगेगा- शिवरानी देवी ने उत्तर दिया.
मुंशी जी बोले- मैं तो समझता हूं कि तुम्हारा फोटो लगाने का सबसे ज्यादा अधिकार मुझे है. हां अगर, मेरी उमर का कोई दूसरा पुरुष तुम्हारा फोटो लगाए और उसकी उपासना करे तो शायद मैं उसका जानी दुश्मन हो जाऊं.
इसमें उपासक होने की कौन-सी बात है ? आप अपने मित्रों के फोटो नहीं लगाते हैं ? शिवरानी देवी ने फिर पूछा.