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Published : Dec 3, 2021, 4:44 PM IST

Updated : Dec 3, 2021, 6:22 PM IST

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रेलवे ट्रैक पर हाथियों की मौत का सिलसिला अब भी जारी, इसे रोकने के लिए बनी योजना में बरती गई उदासीनता : कैग

मधुमक्खियों की आवाज से हाथियों को रेलवे ट्रैक पर आने से रोकने का प्लान फेल साबित हो रहा है. ऐसा नहीं है कि इस योजना में खामी है, बल्कि इसे जिस तत्परता से लागू करना था, एजेंसियां उसमें असफल साबित हुई हैं. यह निष्कर्ष कैग का है. इसकी रिपोर्ट संसद में पेश की गई है. पढ़िए ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की एक रिपोर्ट...

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रेल ट्रैक पर हाथी की मौत (फाइल फोटो)

नई दिल्ली :भारतीय रेलवे और वन प्राधिकरण की योजना जंगली हाथियों को रेलवे ट्रैक के करीब आने से रोकने के लिए 'प्लान-बी' डिवाइस सेटअप को रेल पटरियों के पास लगाना था. इससे निकलने वाली मधुमक्खियों की आवाज से हाथी रेल ट्रैक पर नहीं आते हैं, लेकिन यह योजना विफल साबित हो रही है. यह निष्कर्ष कैग का है. इसकी एक रिपोर्ट सदन में रखी गई है. इसके अनुसार 2012-17 के दौरान, भारत में हाथियों की आबादी 30,711 से घटकर 27,312 हो गई. यानी 11 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है. बता दें कि 1992 में, भारत सरकार ने हाथियों को उनके आवास और गलियारों की रक्षा के लिए प्रोजेक्ट हाथी शुरू किया था.

इस सेटअप के जरिए ऐसे हादसों को रोका जाना था, जिनमें हाथी ट्रेन से टकराकर अपनी जान गंवा बैठते हैं. दरअसल इस नए सेटअप में लगी डिवाइस से मधुमक्खी (Bees) की आवाज निकलती है, जिससे हाथी ट्रैक के पास नहीं आते हैं. ट्रेन (Train) गुजरने के पहले ही डिवाइस को एक्टिव कर दिया जाता है, जिससे मधुमक्खियों (Bees) की आवाज निकलने लगती है और हाथी जिसकी वजह से हाथी ट्रैक से दूर चले जाते हैं, फलस्वरूप ट्रेन आराम से ट्रैक से गुजर सकती है.

ट्रेन के ट्रैक से गुजरने के समय यह डिवाइस एक्टिव होता है. साथ ही इस डिवाइस की आवाज 700-800 मीटर रेडियस तक सुनाई देती है. इससे निकलने वाली मधुमक्खियों की आवाज से हाथियों को रेल ट्रैक के पास आने से रोका जा सकता है.

हाल ही में संसद में पेश की गई सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अनुपालन में उदासीनता के साथ ही हाथियों के लिए खाने की कमी की वजह से उनके रेल ट्रैक पर आाने से दुर्घटना में उनकी मौत होना भी प्रमुख कारणों में से एक है. इसके अलावा हाथियों के गुजरने वाले मार्ग की पहचान नहीं कर पाना भी हादसे की एक वजह है.

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इसी कड़ी में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने देश में 138 राज्य, 28 अंतरराज्यीय और 17 अंतरराष्ट्रीय हाथी गलियारों की पहचान की है, जिनमें से कई रेलवे ट्रैक से गुजरते हैं. इसके बाद विभिन्न जोनल रेलवे द्वारा अधिसूचना जारी की गई.

आश्चर्य की बात है कि हाथी मार्ग के रूप में पहचाने जाने वाले स्थानों में हाथी के हताहतों की संख्या अधिक थी, जिसका अर्थ है कि सभी चिन्हित हाथी मार्गों के पास मधुमक्खी ध्वनि उपकरणों को स्थापित करने के रेल मंत्रालय के आदेश का पालन नहीं किया गया था.

कैग ऑडिट ने चयनित हाथी मार्गों में मधुमक्खी ध्वनि उपकरणों की स्थापना की प्रभावशीलता की जांच करते हुए पांच रेलवे क्षेत्रों में 51 स्थानों का चयन किया क्योंकि इस प्रणाली को अभी तक तीन रेलवे जोनों द्वारा अपनाया जाना था. इसमें पाया गया कि पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे क्षेत्र में 20 स्थापित उपकरणों में सात बिना बैटरी बैकअप के सीधे बिजली की आपूर्ति के साथ काम कर रहे थे, सात बिजली की आपूर्ति और बैटरी बैकअप के साथ चल रहे थे जबकि दो डिवाइस केवल बैटरी से ही चल रहे थे, वहीं तीन डिवाइस का प्रयोग बिजली आपूर्ति नहीं होने की वजह से संचालित नहीं हो सका.

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रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अन्य क्षेत्रों में या तो उपकरण काम नहीं कर रहे थे या स्थापित नहीं किए जा रहे थे. इसके अलावा इसे या तो गलत तरीके से स्थापित किया गया था या तकनीकी समस्या का सामना कर रहे थे.

कैग ने कहा है कि हनी बी साउंड डिवाइस की खरीद और स्थापना के उद्देश्य से वांछित परिणाम नहीं मिले. जंगली हाथियों को मुख्य रूप से भारत में उत्तर पश्चिमी (उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश), उत्तर बंगाल और उत्तर पूर्व, पूर्वी मध्य (झारखंड और ओडिशा) और दक्षिण (तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक) में बांटा गया है. इसमें 2012-17 के दौरान, भारत में हाथियों की आबादी ने 30,711 से 27,312 तक 11 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. बता दें कि 1992 में, भारत सरकार ने हाथियों उनके आवास और गलियारों की रक्षा के लिए प्रोजेक्ट हाथी शुरू किया था.

Last Updated : Dec 3, 2021, 6:22 PM IST

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