टोपोग्राफी और जीपीआर तकनीक की जानकारी देते काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह वाराणसीः ज्ञानवापी मामले में हाईकोर्ट के आदेश के बाद एएसआई सर्वे जारी है. इस सर्वे में 2 तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे ज्ञानवापी के तहखाने का राज सबके सामने आ जाएगा, इसके लिए एएसआई, टोपोग्राफी और जीपीआर तकनीक का इस्तेमाल कर रही है. कोर्ट ने एएसआई सर्वे और उसकी रिपोर्ट को सौंपने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया है. इसी बीच काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह ने दावा किया है कि टीम टोपोग्राफी और जीपीआर तकनीक से एएसआई सर्वे का काम लगभग 15 दिनों के अंदर ही पूरा कर लेगी. लोगों को अयोध्या की तरह लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा. बिना खुदाई किए टोपोग्राफी और जीपीआर तकनीक का ज्ञानवापी के तहखाने का राज देश के सामने रख देगी.
ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे इस बारे में ईटीवी भारत ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि कोर्ट के आदेश पर एएसआई की टीम ज्ञानवापी परिसर में काम कर रही है. मुख्य रूप से जो भी चीजें वहां पर दिखाई दे रही हैं. उनका रेखांकन किया जा रहा है. उनकी वीडियो रिकॉर्डिंग और फोटोग्राफी भी हो रही है. इसके साथ ही जीपीआर तकनीक से जमीन के नीचे स्कैन करके संरचनाओं और वस्तुओं का पता लगाया जा रहा है, जिसमें यह पता चल सकेगा कि उन वस्तुओं का आकार क्या है और वे वस्तुएं असल में क्या हैं?
जमीन के ऊपर और नीचे सर्वेःप्रो. अशोक ने बताया कि जीपीआर की मदद से 15 से 20 मीटर की गहराई में के बारे में बिना खुदाई के पता लगाया जा सकता है. उसकी जो भी स्थिति और वस्तु होगी उसका बारे में भी जानकारी आसानी से इक्ट्ठा की जा सकेगी. इसके साथ ही टोपोग्राफी पूरे क्षेत्र का अध्ययन करता है. वर्तमान में ज्ञानवापी परिसर में स्थित स्ट्रक्चर, खंभे या दीवार जो भी चीजें मौजूद हैं, टीम उनका अध्ययन करेगी. यह भी देखने का प्रयास करेगी कि वह किस कालक्रम के हैं, उनकी क्रोनोलॉजी क्या है. अगर स्ट्रक्चर में कोई परिवर्तन किया गया है, तो उसे भी देखने का प्रयास किया जाएगा.
जमीन के 15 से 20 मीटर की गहराई तक मौजूद वस्तु या स्ट्रक्चर के बारे में बता सकता है जीपीआर कैसे काम करता है GPR सिस्टम?प्रो. अशोक ने कहा, 'GPR को समझने के लिए हम अगर सामान्य तरीके का प्रयोग करें, तो जिस तरह से हम शरीर का स्कैन करते हैं. इससे शरीर में जो भी चीजें मौजूद होती हैं, उनका हम पता लगा सकते हैं. उसी प्रकार जमीन के नीचे जो भी चीजें मौजूद हैं उनको जानने के लिए GPR यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार का प्रयोग किया जाता है. इससे जमीन की 15 से 20 मीटर की गहराई में किसी वस्तु या स्ट्रक्चर के बारे में जान सकते हैं. इनके विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हम जीपीआर सिस्टम का प्रयोग करते हैं.'
एएसआई सर्वे के लिए कोर्ट ने दिया है 4 हफ्तों का समय क्या है टोपोग्राफी? प्रो. अशोक ने बताया किGPR की मदद से रेखाचित्र बनाने के साथ ही हम कंप्यूटर सिस्टम में हाइपोथेटिकल पिक्चर प्रस्तुत कर सकते हैं. वर्तमान में ज्ञानवापी का जो स्ट्रक्चर है उसकी टोपोग्राफी क्या है. वहां किस तरह का निर्माण है. इन सबकी वर्तमान स्थिति को जानने के लिए 'टोपोग्राफी का प्रयोग किया जा रहा है. GPR की मदद से ज्ञानवापी सर्वे में ये काम करीब तीन से चार दिन में पूरा किया जा सकता है. हालांकि, इसके लिए पूरी टीम को लगकर काम करना पड़ेगा.
ज्ञानवापी सर्वे को देखते हुए वाराणसी में बड़ी संख्या में सुरक्षा बल का तैनाती की गई है. जमीन के अंदर क्या है मौजूदःजीपीआर और टोपोग्राफी की मदद से काम किया जा रहा है. इसके साथ ही वहां की अगर कलाकृति तैयार की जाती है तो इससे यह पता चल सकेगा कि परिसर में मौजूद स्ट्रक्चर किस धर्म से संबंधित हैं, वहां पर कौन चीजें हैं और वहां की कलाकृतियां क्या हैं. प्रो. अशोक बताते हैं कि इससे यह भी पता चल सकेगा कि जमीन के नीचे कितनी गहराई में कौन सा स्ट्रक्चर है. अगर उसके नीचे भी कोई स्ट्रक्चर है तो वह भी पता लगाया जा सकेगा कि वह कितनी गहराई में है. इस तरीके से हमें यह जानने में मदद मिल सकती है कि जो भी वहां मौजूद स्ट्रक्चर हैं उनकी कलाकृतियों के आधार पर कैसे और कहां जोड़ा जा सकता है.
सर्वे के दौरान जिला प्रशासन के आलाधिकारी मौके पर मौजूद. तहखाने के अंदर क्या हो सकता है? बीएचयू प्रोफेसर ने बताया कि तहखाने में जीपीआर तकनीक से देखा जा सकता है कि तहखाने में किसी धर्म से जुड़ी चीजें मौजूद हैं या अन्य कोई चीज मौजूद है. यह भी हो सकता है कि तहखाने में मलबा हो. मलबे में बहुत से ऐसे आर्किटक्चर हो सकते हैं जो किसी न किसी धर्म की तरफ इशारा कर सकते हैं. उत्खनन (तहखाने में खुदाई) की तकनीकि पर रोक लगाई गई है. ऐसे में जीपीआर और टोपोग्राफी का ही प्रयोग किया जा रहा है
ज्ञानवापी सर्वे में अनुमानित समय क्या हो सकता है?प्रो. अशोक सिंह ने कहा कि पुरातत्व में जो काम होता है, वो धीमी गति से होता है. इसमें जल्दबाजी नहीं की जा सकती. ड्राफ्टमैन या सर्वे करने वाले लोग हर चीज को टू द प्वाइंट स्केल पर बनाते हैं. ऐसे में जब कलाकृति बनाई जाती है, तो यह मानकर चला जा सकता है कि जिस तरह का ज्ञानवापी का स्ट्रक्चर है और वहां पर घटनाक्रम है, उसे बनाने में कम से कम 15 दिन का समय लग सकता है.
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