ब्रिसबेन :फेसबुक, जिसका इस्तेमाल करीब तीन अरब लोग करते हैं, उसकी दिशा बदलने की बात के कुछ तो मायने होंगे. फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने हाल में घोषणा की कि कंपनी महज एक सोशल मीडिया कंपनी से आगे बढ़कर मेटावर्स कंपनी बनेगी.
मेटावर्स आखिर है क्या?
मानव ने अपनी इंद्रियों को सक्रिय करने वाली अनेक प्रौद्योगिकी विकसित की हैं. मसलन ऑडियो स्पीकर से लेकर टेलीविजन, वीडियो गेम और वर्चुअल रियलिटी तक. भविष्य में हम छूने या गंध जैसी अन्य इंद्रियों को सक्रिय करने वाले उपकरण भी विकसित कर सकते हैं.
इन प्रौद्योगिकियों के लिए कई शब्द दिए गए हैं लेकिन एक भी ऐसा लोकप्रिय शब्द नहीं है जो भौतिक दुनिया और वर्चुअल दुनिया के मेल को बखूबी बयां कर सकता हो. इंटरनेट और साइबर स्पेस जैसे शब्द ऐसे स्थानों के लिए हैं जिन्हें हम स्क्रीन के जरिए देखते हैं.
लेकिन ये शब्द इंटरनेट की वर्चुअल रियलिटी (थ्रीडी गेम वर्ल्ड या वर्चुअल सिटी) या संवर्धित वास्तविकता अथवा ऑगमेंटेड रियलिटी (नेविगेशन ओवरले या पोकेमोन गो) आदि की पूरी तरह व्याख्या नहीं कर पाते.
मेटावर्स शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल साइंस फिक्शन लेखक नील स्टीफेन्सन ने 1992 में अपने उपन्यास स्नो क्रेश में किया था. इसी तरह के अनेक शब्द उपन्यासों से ईजाद हुए हैं. मसलन 1982 में विलियम गिब्सन की एक किताब से साइबरस्पेस शब्द आया. रोबोट शब्द 1920 में कैरेल कापेक के एक नाटक से उत्पन्न हुआ. इसी श्रेणी में मेटावर्स आता है.
मेटावर्स से किसे लाभ मिलेगा?
अगर आप एप्पल, फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी टेक कंपनियों के बारे में काफी कुछ पढ़ते हैं तो आपको महसूस हो सकता है कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिक उत्पत्तियां अवश्यंभावी हैं और इसी श्रेणी में मेटावर्स की उत्पत्ति आती है.
इसके बाद हम इन प्रौद्योगिकियों से हमारे समाज, राजनीति और संस्कृति पर होने वाले प्रभाव के बारे में सोचने से भी नहीं रह सकते. फेसबुक और अन्य बड़ी कंपनियों के लिए मेटावर्स की परिकल्पना उत्साहजनक है क्योंकि इससे नए बाजारों, नए प्रकार के सोशल नेटवर्कों, नए उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और नए पेटेंट के लिए अवसर पैदा होते हैं.
आज की लौकिक दुनिया में हममें से ज्यादातर लोग किसी महामारी, जलवायु संबंधी किसी आपदा या मनुष्य की वजह से विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. हम यह समझने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं कि हमने जिन प्रौद्योगिकियों (मोबाइल उपकरण, सोशल मीडिया और वैश्विक कनेक्टिविटी से व्यग्रता और तनाव जैसे अवांछित प्रभाव होना) को अपना लिया है, उनके साथ हम अच्छा जीवन किस तरह जी सकते हैं.
तो फिर हम प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा हमें रोजाना की उस दुनिया से ध्यान हटाने के नए तरीके खोजने में इतना निवेश क्यों करती हैं जहां हमें सांस लेने की हवा, खाने को भोजन और पीने को पानी मिलता है? ऐसे में मेटावर्स जैसे विचार हमारी मदद समाज का और सकारात्मक तरीके से प्रबंधन कर सकते हैं. मसलन, दक्षिण कोरिया में मेटावर्स अलायंस कंपनियों और सरकार को मिलकर मुक्त राष्ट्रीय वीआर प्लेटफॉर्म विकसित करने की खातिर तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है.
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इसका एक बड़ा हिस्सा स्मार्टफोन, 5जी नेटवर्क, ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल करंसी और सोशल नेटवर्क का मेल कर समाज की समस्याओं का समाधान निकालने, लाभ निकालने के तरीके खोजना है.
(पीटीआई-भाषा)