नई दिल्ली : 2013 में मोहाली में सिख कैदियों या बंदी सिंह के मुद्दे को पहली बार प्रमुखता तब मिली जब कुरुक्षेत्र के एक किसान और सिख कार्यकर्ता गुरबख्श सिंह खालसा 44 दिनों के लिए गुरुद्वारा अंब साहिब में भूख हड़ताल पर बैठे. गुरबक्स की भूख हड़ताल सिख कैदियों की रिहाई की मांग को लेकर शुरू हुई थी. इससे पहले मार्च 2012 में बलवंत सिंह राजोआना की फांसी के खिलाफ पंजाब भर में सिखों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था जिसके बाद फांसी टाल दी गई थी.
2013 में, भगवंत मान (वर्तमान में पंजाब के सीएम) ने इस मांग को अपना समर्थन दिया था. उनके साथ पंजाबी मनोरंजन जगत के प्रमुख गायक और अन्य कलाकार भी गुरबक्स के समर्थन में सामने आये थे. मान उस समय मनप्रीत बादल के नेतृत्व वाली पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के नेता थे. इन सबसे पहले प्रसिद्ध पंजाबी गायक गुरदास मान भी उपवास में बैठे गुरबक्स से मिलने आये थे. जिसके बाद कई अन्य हस्तियों ने गुरदास मान का अनुसरण किया.
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गुरबक्स ने अपने आमरण अनशन को बंदी सिंह रिहाई मोर्चा का नाम दिया था. तब पंजाब में शिरोमणी अकाली दल और भाजपा की सरकार थी. पंजाब की राजनीति के जानकारों की मानें तो शिरोमणी अकाली दल ने 1980 के दशक की शुरुआत में धरम युद्ध मोर्चा शुरू किया था. जो पहले 984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण और फिर 1995 में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के बाद धीरे-धीरे कमजोर होता चला गया. कहा जा सकता है कि सिख बंदी इन्हीं आंदोलन ने निकले थे.
लेकिन साल 2014 में शिरोमणी अकाली दल ने बंदी सिंह रिहाई मोर्चा से बिलकुल किनारा कर लिया. जिसने क्षेत्र में अकाली दल के खिलाफ माहौल को मजबूत किया. हालांकि, अकाली दल के कमजोर होने के पीछे सिर्फ यही एक कारण नहीं था. अक्टूबर 2015 में, बरगाड़ी बेअदबी और बेहबल कलां पुलिस फायरिंग के विरोध में स्वत:स्फूर्त प्रदर्शन हुए. 2018 की दूसरी छमाही में, बरगारी मोर्चा एक बार फिर करीब छह महीने के लिए सिखों की प्रमुख एकजुटता का केंद्र बन गया. बरगाड़ी मोर्चा एक बार फिर बंदी सिखों के लिए एकजुटता का केंद्र बना. और इसे पंजाब में आंशिक रूप से सफल भी माना गया. इस आंदोलन के बाद बेअदबी के आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और फायरिंग मामले में आरोपी पुलिस अधिकारियों को भी कार्रवाई का सामना करना पड़ा. इस आंदोलन में भी सिख कैदियों की रिहाई की मांग की गई थी.