हैदराबाद : त्योहारों का मौसम आ गया है. उपभोक्ताओं को विभिन्न ब्रांडों, ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ बैंकों से भी शॉपिंग पर ऑफर्स के प्रपोजल मिल रहे हैं. घर में आने वाले अखबार हो या मोबाइल फोन, हर जगह ऑफर्स वाले विज्ञापन आप देख रहे होंगे. टीवी, फ्रिज, मोबाइल समेत अन्य बड़े और महंगे प्रॉडक्ट पर ईएमआई नो कॉस्ट ईएमआई के ऑप्शन भी मिल रहा होगा. नो कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) से उपभोक्ता को ऐसा लगता है कि वह सामान बिना ब्याज दिए किस्तों में खरीद रहे हैं. मगर यह सच नहीं है.
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 17 सितंबर, 2013 को जारी सर्कुलर में स्पष्ट किया था कि, जीरो पर्सेंट इंटरेस्ट की अवधारणा अस्तित्वहीन है. यानी क्रेडिट कार्ड बकाया या लोन पर दिया जाने वाले नो-कॉस्ट ईएमआई में ब्याज दर को छिपाया जाता है. रिटेलर और बैंक सीधे नहीं बल्कि पिछले दरवाजे से ब्याज वसूल लेते हैं और उपभोक्ता को पता नहीं चलता. सामान्यत: लोन या किस्त वाले प्रॉडक्ट पर वास्तविक ब्याज दर आमतौर पर 16% से 24% के बीच होता है.
जानिए क्या है नो-कॉस्ट ईएमआई :जब उपभोक्ता बिना डाउन पेमेंट के कोई सामान खरीदता है और मासिक किस्तों में उसका भुगतान करता है. किस्तों में भुगतान करने के एवज में अगर उससे कोई ब्याज नहीं वसूला जाता है, तो उसे नो कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) या जीरो पर्सेंट ईएमआई कहते हैं. अंग्रेजी में ईएमआई को equated monthly installment (EMI) कहते हैं, जिसका अर्थ है समान मासिक किस्त.
नो-कॉस्ट ईएमआई की प्रकिया में मुख्य रूप से तीन पक्ष शामिल होते हैं. पहला ग्राहक, जो उत्पाद खरीदता है. दूसरा, रिटेलर यानी जो सामान बेचता है और तीसरा बैंक, जो आपके टोटल बिल को किस्तों में बांटता है. कुल मिलाकर यह नो-कॉस्ट ईएमआई एक रिटेलर, बैंक और ग्राहक के बीच का नेटवर्क है. इस योजना से तीनों पक्ष लाभ की स्थिति में होते हैं. ग्राहक को उसकी पसंद का सामान बिना पूरा बिल अदा किए मिल जाता है. रिटेलर का महंगा सामान बिक जाता है और बैंक को छिपे तौर से ही सही ब्याज का मिल जाता है. साथ ही, बैंक को आय का एक नया स्रोत प्राप्त होता है और खुदरा विक्रेता या रिटेलर अपने मार्जिन का एक हिस्सा बैंक के साथ साझा करता है.
यह कैसे काम करता है :याद रखें कि इन 'नो-कॉस्ट ईएमआई' वाली खरीद पर हमेशा एक कीमत चुकानी पड़ती है. नो-कॉस्ट ईएमआई की पेशकश करने वाले शोरूम और ऑनलाइन प्रॉडक्ट बेचने वाले लोन देने वाले वित्तीय संस्थान यानी बैंक या गैर वित्तीय कंपनी जैसे बजाज फिन्सर्व के साथ गठजोड़ करते हैं. आम तौर पर कंपनियां केवल उन चुनिंदा उत्पादों पर नो कॉस्ट ईएमआई की पेशकश करती है, जिसे वह तेजी से बेचना चाहती हैं या उसकी कीमत अधिक होती है.