हैदराबाद: व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (Personal Data Protection Bill) को लेकर बनी संयुक्त संसदीय समिति यानि Joint Parliamentary Committee (JPC) ने बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है. बिल को साल 2019 में जेपीसी के पास भेजा गया था और अब दो साल के बाद इसे समिति की मंजूरी मिली है. कहा जा रहा है कि इसे सरकार आगामी संसद सत्र में पेश कर सकती है. लेकिन डेटा प्रोटेक्शन का ये बिल कई सवालों के साथ आ रहा है ? इस बिल के कुछ पेंच ऐसे हैं जो विपक्ष को रास नहीं आ रहे हैं.
डेटा प्रोटेक्शन बिल के ड्राफ्ट में क्या है ?
दिसंबर 2019 में मोदी कैबिनेट ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को मंजूरी दी थी. जो भारतीय नागरिकों के डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा से संबंधित था. इस बिल का ड्राफ्ट किसी अपराध को रोकने या उसकी जांच के लिए केंद्रीय एजेंसियों की निजी डाटा तक पहुंच को आसान बनाता है. यानि जांच एजेंसियां किसी अपराध की जांच, देश में शांति, कानून व्यवस्था या सुरक्षा का हवाला देकर आपका पर्सनल डेटा को खंगाल सकती हैं और इसके लिए उस व्यक्ति या किसी अन्य की सहमति की जरूरत नहीं होगी.
ये बिल सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को प्रस्तावित प्रावधानों से बाहर रखने की इजाजत देता है. यानि सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेसियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जा सकता है.
विपक्ष को क्यों है आपत्ति ?
विरोध करने वाले सांसदों का कहना है कि कैसे बिना संसद की अनुमति के केंद्रीय एजेंसी को इस कानून के प्रावधानों से छूट दी जा सकती है. कहा जा रहा है कि विपक्षी सांसदों ने सुझाव भी दिया था कि सरकार को इस तरह का कदम उठाने से पहले संसद की मंजूरी लेनी चाहिए ताकि जवाबदेही हो सके. लेकिन ये सुझाव स्वीकर नहीं किया गया. विरोध करने वाले कुछ सांसदों की दलील है कि जांच एजेंसियों को दायरे से बाहर रखकर उन्हें ऐसी ताकत दी जा रही है जिसका दुरुपयोग भी हो सकता है.
सासंद जयराम रमेश मुताबिक बिल के सेक्शन 35 में बदलाव करते हुए सरकारी एजेंसियों को छूट देने से पहले संसद की अनुमति जरूरी होनी चाहिए. इसी तरह सेक्शन 12 एजेंसियों को सहमति के मामले में कई छूट प्रदान करती है, जो सीमित होनी चाहिए. सूत्रों के मुताबिक टीएमसी सांसदों अपने असहमति नोट में इस विधेयक को स्वभाव से ही नुकसान पहुंचाने वाला बताया और कहा कि इसमें निजता के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपाय नहीं है.
किसने दर्ज कराई है आपत्ति ?
जेपीसी में सभी दलों की भागीदारी होती है यानि सभी दल के सांसद इसका हिस्सा होते हैं. बीजेपी सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति ने बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी तो दे दी है लेकिन 30 सदस्यों वाली इस जेपीसी के 7 सदस्यों ने इस बिल के पर आपत्ति जताई है. कांग्रेस के 4 सांसदों जयराम रमेश, मनीष तिवारी, गौरव गोगोई और विवेक तन्खा के अलावा टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन, महुआ मोइत्रा और बीजू जनता दल के अमर पटनायक ने असहमति जताई है. इन सांसदों ने असहमति पत्र भी दिया है. इन सभी सांसदों का कहना है कि ये बिल कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाएगा. इसमें जासूसी और इससे जुड़े अत्याधुनिक ढांचा बनाने की कोशिश में पैद हुई चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया है.