हैदराबाद: बीते दिनों देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की 5 साल पुरानी उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया. जिसमें पिछड़ा वर्ग के लिए क्रीमी लेयर तय की गई थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ परिवार की आय को क्रीमी लेयर का आधार नहीं माना जा सकता. इस सुप्रीम फैसले के बाद ओबीसी की क्रीमी लेयर पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है. आखिर कैसे तय होती है क्रीमी लेयर और क्या है इसका इतिहास ? इस तरह के हर सवाल का जवाब आपको ईटीवी भारत एक्सप्लेनर में मिलेगा. सबसे पहले जानिये
क्रीमी लेयर क्या है ?
क्रीमी लेयर (creamy layer) का अर्थ है 'मलाईदार तबका'. ये एक तरह से ओबीसी आरक्षण के लाभ देने की एक आर्थिक और सामाजिक सीमा है. देश में ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी है, जिसके तहत सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को रिजर्वेशन मिलता है. लेकिन ओबीसी का जो वर्ग क्रीमी लेयर में आते हैं उन्हें इस कोटे के तहत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है.
कुल मिलाकर क्रीमी लेयर उस सीमा को निर्धारित करती है जिसके भीतर ओबीसी आरक्षण लागू होता है. सरल भाषा में कहें तो आर्थिक रूप से मजबूत ओबीसी परिवारों को क्रीमी लेयर में माना जाएगा और उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. क्रीमी लेयर के लिए आर्थिक पैमाने तय किए गए हैं.
आखिर क्यों चर्चा में है ओबीसी की क्रीमी लेयर ?
हरियाणा सरकार ने साल 2016 में शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए एक नोटिफिकेशन जारी कर ओबीसी की क्रीमी लेयर तय की थी. जिसके मुताबिक ओबीसी के जिन परिवारों की वार्षिक आय 3 लाख रुपये से कम होगी उन्हें सबसे पहले आरक्षण का लाभ मिलेगा, फिर सीटें बचने पर 3 से 6 लाख रुपये सालाना आय वालों को लाभ मिलेगा. सालाना 6 लाख रुपये से अधिक कमाने वालों को क्रीमी लेयर में रखा जाएगा.
ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण के लिए नॉन क्रीमी लेयर को दो स्लैब यानि 3 लाख तक और 3 से 6 लाख में बांटने को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए कहा कि पिछड़े वर्ग के जो लोग IAS, IPS या अन्य अखिल भारतीय सेवाओं में सेवारत हैं या दूसरों को रोजगार देने की स्थिति में हैं या जिन्हें खेती से अधिक आय होती है या संपत्ति से आय होती है उन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए कहा कि सिर्फ परिवार की आय को क्रीमी लेयर तय करने का आधार नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक हरियाणा सरकार ने आर्थिक परिस्थिति के आधार पर पिछड़ा वर्ग के लिए क्रीमी लेयर तय करने में गंभीर गलती की है. राज्य सरकार को तीन महीनों में नया नोटिफिकेशन जारी कर गलती सुधारने को कहा गया है, ताकि OBC कोटे में रिजर्वेशन के लिए आर्थिक के साथ-साथ अन्य आधार भी तय किए जा सकें.
मंडल आयोग और ओबीसी आरक्षण
साल 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार में बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) की अगुवाई में एक आयोग का गठन किया. जिसने पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी. देश में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण का प्रावधान पहले से लागू था. इसलिये मंडल आयोग की ओर से जिन्हें आरक्षण देने की सिफारिश हुई उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कहा गया.
मंडल आयोग की सिफारिशें एक दशक से ज्यादा वक्त तक फाइलों में ही बंद रहीं. 1989 में वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने और पिछड़ा वर्ग आयोग (मंडल आयोग) की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 13 अगस्त 1990 को सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण का प्रावधान कर दिया.
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा साहनी ने सरकार के ओबीसी आरक्षण के फैसले को देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी थी. 16 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर को इस कोटे से बाहर रखने के साथ-साथ आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 फीसदी रखा. क्रीमी लेयर को साल 1993 में लागू किया गया था.