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ये कार्बन न्यूट्रैलिटी क्या है, जिसे 2070 तक हासिल करने का दावा पीएम मोदी ने किया है

जलवायु सम्मेलन में 2070 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी या जीरो कार्बन उत्सर्जन का वादा पूरा करने के लिए भारत को बड़ी तैयारी करनी होगी, क्योंकि अगले 50 साल में देश की आबादी बढ़ेगी तो जरूरतें भी बढ़ेंगी. पीएम मोदी के इस वादे को पूरा करने के लिए भारत को अर्थव्यवस्था के अलावा जीवन के हर पहलू में बदलाव करना होगा.

carbon neutrality PM Narendra Modi
carbon neutrality PM Narendra Modi

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Published : Nov 2, 2021, 4:30 PM IST

हैदराबाद :ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने का वादा किया. हालांकि भारत पहले कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित करने से इनकार करता रहा. इस सम्मेलन में भारत पर पेरिस जलवायु समझौते के अनुरूप एक समयावधि की घोषणा करने का दबाव था. संयुक्त राष्ट्र ने ग्लोबल कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए 2050 का लक्ष्य निर्धारित किया है. यूरोपीय संघ ने 2050 में और जर्मनी ने 2045 में इस लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प व्यक्त किया है. चीन ने 2060 तक कार्बन न्यूट्रल देश बनने का वादा किया है. 2021 तक भूटान और सूरीनाम केवल दो देश हैं, जिन्होंने कार्बन शून्य उत्सर्जन हासिल किया है.

कार्बन न्यूट्रैलिटी या zero emission क्या है ? :पहले इस बात को समझें कि कार्बन न्यूट्रैलिटी का मतलब यह नहीं है कि कोयले का उपयोग बंद हो जाएगा या ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन रुक जाएगा. इसका मतलब यह है कि जितनी कार्बन डाईऑक्साइड फैक्ट्रियों और बिजलीघरों से उत्सर्जित की जाएगी, उतनी ही कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण से हटाई जाएगी.

वातावरण से कैसे हटेगा कार्बन ? :क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार क्लोरो-फ्लोर कॉर्बन या ग्रीन हाउस गैस क्लाइमेट से हटेंगी कैसै? इसके दो रास्ते हैं, एक प्राकृतिक और दूसरा कृत्रिम. प्राकृतिक तरीकों में जंगल, जमीन और महासागर है. ये सभी कार्बन को खत्म करते हैं. जितना अधिक वन क्षेत्र होगा, हवा साफ रहेगी. इसके अलावा इसे तीन अन्य तकनीकों से भी कंट्रोल किया जाता है. कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS), डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज (DACS) और कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (BECCS) के साथ बायोएनर्जी.

डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज कार्बन कम करने का तकनीकी उपाय है.

एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत को 2070 तक जीरो न्यूट्रैलिटी हासिल करने के लिए तीनों उपाय आजमाने होंगे. देश में 70 फीसदी बिजली उत्पादन केंद्र जीवाश्म ईंधन यानी कोयले पर आधारित है. सबसे पहले 135 थर्मल पावर प्लांट्स और कारखानों को कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज तकनीक के लिए अपग्रेड करना होगा. सीसीएस तकनीक प्लांट और कारखानों से निकलने वाले कार्बन को जमीन के अंदर जमा करने में मदद करता है और इससे हवा प्रदूषित नहीं होती है.

डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज (DACS) तकनीक से कार्बन की मात्रा हवा में ठीक वैसे ही हटाई जाती है, जैसे प्राकृतिक रूप से पेड़-पौधे फिल्टर करते हैं. यह तकनीक सीमेंट और बायोमास फैक्ट्रियों में लगाई जाती हैं, जहां से कार्बन निकलती है. इसे आर्टिफिशियल ट्री भी कहा जाता है. इसके अलावा बायो-एनर्जी कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (BECCS) के तहत बायोमास का उपयोग बढ़ाकर कोयला, डीजल, पेट्रोल जैसे प्रोडक्ट के इस्तेमाल को कम किया जाता है. लेकिन इसकी दिक्कत यह है कि बायोमास के उत्पादन के लिए जमीन की उपलब्धतता काफी कम है.

भारत में करीब 25 हाइड्रो पावर प्लांट हैं. देश की हाइड्रोपावर क्षमता अभी 1 लाख 45 हजार मेगावॉट है.

तकनीकी उपायों के अलावा और क्या करना होगा

  • भारत को बिजली उत्पादन के वैकल्पिक उपाय जैसे हाइड्रो पावर, न्यूक्लियर पावर और सोलर पावर के लिए भी इनवेस्ट करना होगा.
  • बुजुर्गों के बताए रास्तों पर चलकर देश में वन क्षेत्र और पौधों की रक्षा करनी होगी, धरती और समुद्र को कचरे से बचाना होगा.
  • 2070 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अर्थव्यवस्था के हर अहम सेक्टर को इको फ्रेंडली बनाना होगा. कोयला, गैस और तेल से चलने वाले बिजली स्टेशनों और कारखानों को अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के आधारित बनाना होगा.
    जंगल कार्बन को सोखने वाला प्राकृतिक सोर्स है.

अभी भारत की अर्थव्यवस्था कोयले पर टिकी है :वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक़, कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन नंबर वन है. इसके बाद अमरीका का नंबर आता है. भारत ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है. इसका कारण यह है कि भारत अभी भी कोयले की बदौलत अपनी बिजली की 50 फीसदी से अधिक डिमांड को पूरा करता है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, भारत में हर साल औसतन 5 फीसदी की दर से बिजली की डिमांड बढ़ रही है. इस हिसाब से 2030 तक भारत को 301 गीगावॉट बिजली की जरूरत होगी. इस हिसाब से अगर भारत ने वैकल्पिक ऊर्जा के विकल्पों पर विचार नहीं किया तो 2070 तक कार्बन न्यूट्रल होने का वादा पूरा नहीं हो पाएगा.

कोयले की खपत के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है, जो दुनिया की कुल खपत का करीब 11.3 प्रतिशत है.

भारत को 2070 से पहले कई छोटे लक्ष्यों को हासिल करना होगा. भारत को 2005 के मुकाबले 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 33-35 फीसद तक कम करना होगा. इसके साथ ही अगले 20 साल में 2.5-3 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड को खत्म करना होगा. प्रधानमंत्री ने ग्लासगो शिखर सम्मेलन में बताया कि भारत 2030 तक अपनी Non-Fossil Energy Capacity को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा. साथ ही अपनी जरूरत का 50 प्रतिशत वैकल्पिक ऊर्जा (renewable energy) से पूरी करेगा. इसके अलावा 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा.

बिजली संयंत्र, सांकेतिक फोटो.

अगर भारत अगले 50 साल में कार्बन न्यूट्रल देश बन जाता है, तो आने वाली पीढ़ियों को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसानों से राहत मिल जाएगी.

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