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सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून AFSPA क्या है, जिसे वापस लेने की मांग दो मुख्यमंत्रियों ने की है - इरोम चानू शर्मिला

नगालैंड में 14 नागिरकों की फायरिंग की मौत के बाद एक बार फिर Armed Forces Special Powers Act 1958 यानी सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) पर बहस शुरू हो गई है. नगालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने इस कानून को वापस लेने की मांग की है. इस पर पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

Armed Forces Special Powers Act AFSPA,
Armed Forces Special Powers Act AFSPA,

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Published : Dec 7, 2021, 6:00 PM IST

Updated : Dec 7, 2021, 10:18 PM IST

हैदराबाद :नगालैंड में 14 नागरिकों की फायरिंग में मौत के बाद नार्थ-ईस्ट के दो राज्यों के मुख्यमंत्री समेत कई संगठनों ने नगालैंड में लागू AFSPA (Armed Forces Special Powers Act 1958) को तत्काल वापस लेने की मांग की है. नगालैंड ही नहीं, सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) अभी देश के कई हिस्सों में लागू है. जम्मू और कश्मीर, असम, इंफाल म्यूनिसिपल के इलाके को छोड़कर मणिपुर में भी सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून लागू है. इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग और असम से लगने वाले 8 पुलिस स्टेशनों में अभी भी यह कानून लागू है.

इरोम चानू शर्मिला AFSPA हटाने की मांग को लेकर 16 साल तक अनशन पर रही थी.

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. उस दौर में नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में काफी उपद्रव हो रहे थे. पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए सेना को कार्रवाई का अधिकार देने के लिए यह कानून बनाया गया. जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने के कारण 1990 में वहां भी सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून लागू कर दिया गया था.

नगालैंड घटना की फाइल फोटो

AFSPA किसी भी राज्य या इलाके में तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उसे 'अशांत क्षेत्र' अर्थात डिस्टर्बड एरिया घोषित कर दे. इस कानून के लागू होने के बाद ही अशांत क्षेत्र में सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं. सशस्त्र बल को कानून के तहत संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार दिया जाता है.

कैसे तय होता है अशांत क्षेत्र या डिस्टर्ब एरिया?: सरकार ने अशांत क्षेत्र को चिह्नित करने के लिए नियम तय किए हैं. जब किसी इलाके में समुदायों के बीच मतभेद हो जाता है और वहां नस्ल, भाषा, धर्म, जाति या समूहों के आधार पर हिंसा होती है और उपद्रव होने लगते हैं, तो राज्य या केंद्र सरकार उसे अशांत या डिस्टर्ब घोषित कर देती है. इस स्थिति को काबू करने के लिए सेना या सशस्त्र बल की तैनाती की जाए या नहीं, यह फैसला सबसे पहले राज्य सरकार करती है. उसकी मांग पर केंद्र सुरक्षा बल उपलब्ध कराता है.

इस कानून का विरोध करने वालों का दावा है कि जिन राज्यों में AFSPA लागू हुआ, वहां राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर फैसला लिया गया. मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि अगर राज्य सरकार शांति की घोषणा करती है, तो यह कानून स्वत: वापस हो जाता है. यानी नॉर्थ-ईस्ट की मौजूदा सरकारें इस पर निर्णय ले सकती हैं.

क्यों होता है सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) का विरोध : इस कानून के तहत सशस्त्र सुरक्षा बलों को कार्रवाई के लिए विशेषाधिकार हासिल होता है. AFSPA के तहत सुरक्षा बल किसी भी संदिग्ध को बिना किसी वारंट की तलाशी और गिरफ्तार कर सकता है. उन्हें बिना किसी वारंट के किसी भी घर की तलाशी लेने और बल इस्तेमाल करने की इजाजत मिल जाती है. यदि कोई व्यक्ति अशांति फैलाता है और बार बार कानून तोड़ता है तो सशस्त्र बल को गोली चलाने का हक हासिल होता है. संदिग्ध की सूचना पर उन्हें संभावित शरणस्थली को गिराने की अनुमति मिल जाती है. गलत कार्रवाई करने के बाद भी सशस्त्र बलों पर कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है.

इरोम शानू शर्मिला ने किया था 16 साल अनशन :आयरन लेडी के नाम से मशहूर मणिपुर की इरोम चानू शर्मिला AFSPA को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक लगातार अनशन कर चुकी है. 2 नवंबर 2000 को असम राइफल्स की एक बटालियन ने इंफाल के पास के 10 नागरिकों की हत्या कर दी थी. इस घटना के विरोध में इरोम चानू शर्मिला ने 5 नवंबर से AFSPA का विरोध शुरू किया था. 16 साल के अनशन के बाद जब सरकार से कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला तो अगस्त 2016 में इरोम चानू शर्मिला ने अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी थी.

इम्फाल स्थित ह्यूमन राइट्स अलर्ट के कार्यकारी निदेशक ने क्या कहा
इम्फाल स्थित ह्यूमन राइट्स अलर्ट के कार्यकारी निदेशक बबलू लोइटोंगबाम का कहना है कि AFSPA ने दंड से मुक्ति का माहौल बना दिया है, जहां कोई सुरक्षाबलों के खिलाफ आरोप की उंगली नहीं उठा सकता है और जहां मारे गए हमेशा आरोपी होते हैं.

मोन हिंसा नगा शांति वार्ता के लिए नुकसानदेह हो सकती है साबित
घटना ऐसे समय में हुई है, जब नगा शांति वार्ता (Naga peace talks) नागालिम की राष्ट्रवादी समाजवादी परिषद (Nationalist Socialist Council of Nagalim ) के इसाक-मुइवा गुट के साथ 1997 में शुरू होने के बाद कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं होने के कारण अधर में लटकी हुई है. 2015 में सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच एक रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर के बावजूद कुछ प्रारंभिक प्रगति के बाद, वार्ता की स्थिति अब स्पष्ट नहीं है. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि मोन हिंसा नगा शांति वार्ता के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.

'AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए : मेघालय सीएम
बता दें कि मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने सोमवार को ट्वीट किया था, 'AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए. गौर हो कि रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) दोनों ही भाजपा की सहयोगी हैं.

आम नागरिकों ने AFSPA को निरस्त करने की मांग उठाई
AFSPA को लेकर अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के नेतृत्व ने अब तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. लेकिन असम के विधायक अखिल गोगोई सहित बड़े पैमाने पर आम नागरिकों को AFSPA को निरस्त करने की मांग की है. यहां तक ​​​​कि पूरे क्षेत्र के कई संगठनों से एकजुटता के आह्वान आए हैं.

नगालैंड सरकार ने हॉर्नबिल फेस्टिवल रद्द किया
मोन हिंसा को लेकर नगालैंड सरकार ने हॉर्नबिल फेस्टिवल (Nagaland Hornbill cancelled) रद्द कर दिया है. सरकार ने कहा कि नगालैंड के मोन जिले में हुई गोलीबारी के दौरान हुई लोगों की मौत के बाद सरकार ने हॉर्नबिल त्योहार रद्द करने का फैसला लिया है. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाले नागालैंड राज्य मंत्रिमंडल ने AFSPA को निरस्त करने की जोरदार सिफारिश करने के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया.

Last Updated : Dec 7, 2021, 10:18 PM IST

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