पटना :पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच आमने-सामने की टक्कर दिख रही है. वामपंथी दल इसे त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं. इसके लिए वामपंथी दल कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं, लेकिन इनके बीच सीट बंटवारे का पेंच फंसा है.
बिहार के वामपंथी दलों के नेताओं का मानना है कि सीटों का बंटवारा पिछले प्रदर्शन की बजाय मौजूदा पॉलिटिकल एडजस्टमेंट के आधार पर हो. हर सीट पर यह सुनिश्चित किया जाए कि जिस दल के उम्मीदवार को उतारा जा रहा है, क्या वह चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की क्षमता रखता है? इसलिए वामदल पिछले प्रदर्शन के आधार पर सीट बंटवारे के पक्ष में नहीं हैं.
वामपंथी दलों के नेताओं का कहना है कि बिहार चुनाव में उनका प्रदर्शन बेहतर था, जिसके चलते बंगाल चुनाव में भी उन्हें अधिक सीटें मिलनी चाहिए. वहीं, कांग्रेस की ओर से कहा जा रहा है कि 2016 में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में उनका प्रदर्शन लेफ्ट की तुलना में अच्छा था. सीट बंटवारे में इस बात का भी ध्यान रखा जाए.
बिहार में बेहतर स्ट्राइक रेट से लेफ्ट को मिली ताकत
बिहार विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों का स्ट्राइक रेट बेहतर रहा है, इससे इन्हें नई ताकत मिली है. इसकी बदौलत लेफ्ट पार्टियां बंगाल में भी मजबूत दावेदारी कर रहीं हैं. वहीं, कांग्रेस भी पीछे हटने को तैयार नहीं है.
2016 में पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में स्थिति इससे उलट थी. तब कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था और वामपंथी दलों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी.
बंगाल में कांग्रेस ने 92 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, 44 सीटों पर उन्हें जीत हासिल हुई थी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 148 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन महज 26 सीटों पर जीत मिली.