नई दिल्ली :पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा मामले को लेकर गठित फैक्ट फाइडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मंगलवार को गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी को सौंपी. 'कॉल फॉर जस्टिस' नाम के संगठन की पांच सदस्यीय कमेटी में सिक्किम के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रमोद कोहली बतौर अध्यक्ष शामिल थे.
गृह राज्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपने के बाद मीडिया से बातचीत में जस्टिस कोहली ने बताया कि बंगाल में लोगों से बातचीत और घटना स्थलों का मुआयना करने के बाद कमेटी ने पाया कि 2 मई से जो भी हिंसक घटनाएं पश्चिम बंगाल में हुई वह पूर्वनियोजित थीं. इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने के लिए बाकायदा स्थानीय और बॉर्डर पार से भी आसामाजिक और आपराधिक छवि वाले लोगों को लगाया गया था.
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बंगाल में हजारों घरों को आग के हवाले कर दिया गया, लोगों के साथ बर्बरता से मारपीट और महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं अचानक से हुए दंगों का परिणाम नहीं लगती बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि चुनावी गतिविधियों के दौरान ही एक अमुख विचारधारा या पार्टी से जुड़े लोगों की निशानदेही कर ली गई थी. उन्होंने कहा कि 2 मई को जैसे-जैसे चुनाव परिणाम सामने आते गए, गुंडे और माफियाओं ने इंगित किये लोगों के घरों पर हमला बोल दिया.
फाइडिंग कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ज्यादातर घटनाओं में पीड़ित लोग या तो शिकायत दर्ज कराने से डर रहे हैं या फिर उनकी एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही. लोगों को पुलिस प्रसाशन पर भी भरोसा नहीं रहा है क्योंकि वह सत्तासीन पार्टी के इशारे पर काम करेगी. कई घटनाओं में यह भी पाया गया है कि पीड़ित को ही आरोपी बना कर उसके खिलाफ मुकदमे दर्ज कर दिये गए. जिन पीड़ितों के मुकदमे दर्ज भी किये गए अब उन पर समझौता करने का दबाव भी बनाया जा रहा है.
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कमेटी के सदस्य और कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एम मदन गोपाल ने कहा कि इन घटनाओं में सीधे तौर पर कमजोर और गरीब तबके के लोगों की आजीविका और आवास पर चोट कर उनके आत्मविश्वास को कमजोर करने का प्रयास किया गया है. ऐसा कर अपराधियों ने इन लोगों के मन में भय व्याप्त करने का प्रयास किया ताकि वह किसी अन्य विचारधारा से जुड़ने की हिम्मत न जुटा सकें. हिंसक घटनाओं में बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति, जन जाति के लोगों को निशाना बनाया गया है.
कमेटी के अवलोकन के अनुसार यदि प्रशासन समय रहते अपने कर्तव्य का निर्वहन करता तो चुनाव परिणाम बाद हुए हिंसा को रोका जा सकता था लेकिन जमीनी परिस्थितियों से पता चलता है कि ऐसा नहीं हुआ जिसके कारण हिंसक वारदातों में हजारों लोगों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ा.
फाइडिंग कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी उन्होंने कहा कि आजादी के बाद आज तक किसी भी राज्य में चुनाव के बाद कहीं भी इस स्तर की हिंसक घटना कभी नहीं देखी गई. वहीं कमेटी के सदस्य और आईसीएसआई के अध्यक्ष रहे निसार अहमद ने हिंसा की घटनाओं को शासन की विफलता करार देते हुए कहा कि इसमें घुसपैठियों की भूमिका भी बड़ी रही है. हिंसक घटनाओं को अंजाम देने के लिये बड़ी संख्या में लोग बाहर से भी बुलाये गए जिन्होंने स्थानीय गुंडों के साथ मिल कर इस सुनियोजित घटना को अंजाम दिया.
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कमेटी ने अपने तथ्यों के आधार पर सरकार को 15 बिंदुओं की सिफारिश भी सौंपी है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में स्पेशल टास्क फ़ोर्स का गठन कर उन सेवा अधिकारियों की भूमिका की जांच करना भी शामिल है, जो पश्चिम बंगाल में तैनात रहे हैं. अन्य शिफारिशों में विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए विशेष पैकेज, नुकसान भरपाई के लिये सरकारी आर्थिक सहायता और स्थानीय से ले कर जिला स्तर तक शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए शांति समिति का गठन शामिल है.
कमेटी के अनुसार चूँकि इन हिंसक घटनाओं में बॉर्डर पार के लोगों की भी संलिप्तता रही है इसलिए एनआईए की टीम के द्वारा भी इसकी जांच होनी चाहिए . कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रमोद कोहली ने बताया कि उन्होंने कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार और प्रशासन का पक्ष जानने के लिए पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से संपर्क किए जाने के बावजूद उनका कोई जवाब कमेटी के पास नहीं आया.
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रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसक घटनाओं के संबंध में जो भी उचित कार्रवाई होगी वह केंद्र सरकार करेगी. रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव बाद बंगाल में लगभग 15000 हिंसा की घटनाएं हुई हैं. जबकि 7000 महिलाएं भी इन घटनाओं में हिंसा या प्रताड़ना का शिकार हुई हैं. बंगाल के कुल 26 जिलों में से 16 जिलों में चुनाव बाद हिंसा की घटनाएं हुईं जिसमें 25 लोगों की मौत भी हुई है. हिंसा की घटनाओं के बाद हजारों की संख्या में लोग झारखंड, ओडिशा और असम में शरण लेने पहुंचे और अभी तक वहां शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं.
इससे पहले गत 21 जून को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल (Governor of West Bengal) जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने कहा था कि राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा से उपजी स्थिति खतरनाक और परेशान करने वाली है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर ममता बनर्जी ने शुतुरमुर्गी रवैया अपनाया हुआ है. वहीं गत 6 मई को पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए चार सदस्यीय टीम कोलकाता पहुंचीथी. बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई कथित हिंसा के कारणों की पड़ताल करने और राज्य में जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए चार सदस्यीय दल का गठन किया था.
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गौरतलब है कि भाजपा ने आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस समर्थित 'गुंडों' ने पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या की, महिला सदस्यों पर हमले किए, उनके घरों में तोड़फोड़ की, दुकानों को लूटा और कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया. भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने बंगाल में हुई हिंसा को लेकर दावा किया था कि चुनाव बाद हिंसा में बंगाल में कम से कम 14 भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है कि एक लाख के करीब लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं.