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तालिबान के कब्जे में आधुनिकतम अमेरिकी हथियार, अब क्या होगा ?

अमेरिका अफगानिस्तान को छोड़ चुका है. उसने अपना दूतावास काबुल से हटाकर कतर शिफ्ट कर लिया है. अमेरिकी सैनिकों के निकलते ही तालिबान लड़ाकों ने काबुल एयरपोर्ट पर कब्जा जमा लिया. जश्न में ताबड़तोड़ फायरिंग की. अब सबसे बड़ा सवाल यह पूछा जा रहा है कि अमेरिका ने जितने हथियार अफगानिस्तान लाए थे और जिन हथियारों को उन्होंने अफगान सैनिकों को सौंपे थे, उनका क्या होगा. क्या तालिबान लड़ाके उनका गलत इस्तेमाल करेंगे. क्या तालिबान लड़ाकों को उनका उपयोग करना आता है. ये सारे ऐसे सवाल हैं, जिसके बारे में हर कोई जानना चाहता है.

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Published : Aug 31, 2021, 6:34 PM IST

Updated : Aug 31, 2021, 6:51 PM IST

हैदराबाद : पिछले 20 सालों में अमेरिका ने अफगानिस्तान में भारी मात्रा में हथियार लाए थे. आतंकी गतिविधियों पर नियंत्रण लगाने के नाम पर आधुनिकतम एयरक्राफ्ट से लेकर सटीक हमले करने वाले गन शामिल हैं. अब जबकि अमेरिका अफगानिस्तान से जा चुका है, सबसे बड़ा सवाल यही है कि इन हथियारों पर किसका कब्जा होगा. एक अनुमान के मुताबिक अभी तालिबान के पास इतने हथियार उपलब्ध हैं, जितना किसी छोटे देश के पास भी नहीं होता है.

आपको बता दें कि काबुल एयरपोर्ट से अमेरिकी सैनिकों के निकलने के बाद यूएस सेंट्रल कमांड के जनरल केनिथ एफ मैकेंजे ने कहा कि हमने जो भी हथियार छोड़े हैं, उनमें से अधिकांश किसी भी काम के नहीं रह जाएंगे. उन्होंने कहा कि हमारी कारें और एयरक्राफ्ट तालिबान के किसी काम के नहीं होंगे, क्योंकि इनका विसैन्यीकरण कर दिया गया है.

तालिबान लड़ाके (सौ. अलजजीरा)

उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना को एयरपोर्ट पर कुछ सैन्य हथियार छोड़ने पड़े, क्योंकि उनकी प्राथमिकता सेना की जान को बचाना था. सैन्य हथियारों मं रॉकेट, आर्टिलरी, मोर्टार, मिसाइल डिफेंस सिस्टम शामिल है. 70 माइन रेसिस्टेंट एंबुश प्रोटेक्टेड व्हीकल भी छोड़ने पड़े. 27 हमवी गाड़ी भी एयरपोर्ट पर हैं.

मैकेंजे ने कहा कि इन्हें इतने कम समय में नष्ट करना बहुत मुश्किल था, इसलिए इसे डिमिलिट्राइज्ड कर दिया गया है, इसे दोबारा से यूज नहीं किया जा सकता है. उन्होंने दावा किया कि एयरपोर्ट पर मौजूद 73 एयरक्राफ्ट किसी काम के नहीं रह गए हैं.

जिम बैंक्स, रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य

अमेरिका ने छोड़े कौन-कौन से हथियार

विस्फोटक को न्यूट्रल करने वाले उपकरणों की संख्या - 29,681

खुफिया निगरानी रखने वाले उपकरण - 16,191

संचार को जारी रखने वाले उपकरण - 1,62,643

ऑटो-मैटिक राइफल - 5,99,690

मशीनगन - 64,363

ग्रैनेड लॉंचर - 25327

रॉकेट प्रॉपेल्ड हथियार -9877

मोर्टार और तोप -2606

पिस्टल -1,26,295

60 ट्रांसपोर्ट प्लेन - सी सीरिज के प्लेन हैं. इनमें सी-182 और सी-208 शामिल हैं. टी-182, जी-222 और एएन-32 भी शामिल हैं.

बख्तरबंद गाड़ी - 189

हैवी मिलिट्री ट्रक -8998

फाइटर प्लेन -208

हेलिकॉप्टर - 110. इनमें एमआई -17 और एमडी-530 शामिल हैं.

लाइट अटैकिंग प्लेन -20. इनमें ए-29 प्रमुख है.

18 टोही और सर्विलांस विमान - इनमें मुख्य रूप से पीसी-12 शामिल है.

युद्ध में उपयोग होने वाले वाहन - 75,898

अमेरिका की ऑडिट एजेंसी के अनुसार 2003 से लेकर अब तक अमेरिका ने छह लाख इंफैंट्री हथियार दिए हैं. इनमें 16 हजार नाइट विजन और एम-16 राइफल शामिल हैं. 120 रेडियो मॉनिटरिंग सिस्टम वहां पर उपलब्ध है.

आठ बिना पायलट के चलने वाले विमान हैं. छह सर्विलांस बैलून भी तालिबान के कब्जे में चला गया है.

928 ऐसे वाहन हैं, जिस पर बारूदी सुरंग और विस्फोटकों का कोई असर नहीं होता है.

1,005 क्रेन और रिकवरी वाहन हैं.

हमवी के दो हजार से अधिक बख्तरबंद गाड़ियां.

यूएच-60 ब्लैक हॉक्स अटैक हेलिकॉप्टर. स्कैन ईगल ड्रोन्स.

23 सुपर टुकानो विमान हैं.

हथियारों पर किसका होगा कब्जा

आप इसे समझिए. तालिबान कई गुटों में विभाजित है. उनमें से एक गुट का नाम हक्कानी नेटवर्क है. इसे काबुल के अलावा और भी कई शहरों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है. इस लिहाज से अमेरिका ने जो भी हथियार और गोला-बारूद छोड़ा है, उस पर हक्कानी का कब्जा हो जाएगा. वह अमेरिकी हथियारों का प्रयोग मनमाफिक तरीके से कर सकता है.

तालिबान लड़ाके

आपको बता दें कि हक्कानी नेटवर्क और आईएस खोरासन का काफी करीबी संबंध है. पिछले सप्ताह आईएस-खोरासन ने ही काबुल एयरपोर्ट पर हमले कर 170 लोगों को मार दिया था. मरने वालों में 11 अमेरिकी सैनिक भी शामिल थे.

अब कयास लगाए जा रहे हैं कि हक्कानी इन अमेरिकी हथियारों को आईएस-के को भी दे सकता है. उसके बाद क्या स्थिति होगी, कहना मुश्किल है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हक्कानी नेटवर्क और अलकायदा के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो सकती है. अलकायदा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पहले से मौजूद है. वह कभी नहीं चाहेगा कि इन अमेरिकी हथियारों पर हक्कानी या आईएस-के का कब्जा हो जाए.

एक दिन पहले ही यह खबर आ चुकी है कि अलकायदा का प्रमुख चेहरा अमीन उल हक काबुल पहुंच चुका है. उसकी एक तस्वीर मीडिया में छप चुकी है. वह ओसामा बिन लादेन का दाहिना हाथ माना जाता था. अलकायदा और पाकिस्तान स्थिति आतंकी संगठन एक दूसरे को सपोर्ट करते रहे हैं.

आप कह सकते हैं कि पाक समर्थित तालिबान, अलकायदा, और हक्कानी के बीच अमेरिकी हथियार पाने को लेकर खींच-तान शुरू हो सकती है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

कुछ जानकारों का मानना है कि इन हथियारों को चलाना इतना आसान नहीं होगा. उनके अनुसार तालिबान इन महंगे हथियारों के पुर्जों को बेच कर भारी मात्रा में पैसे अर्जित जरूर कर सकता है. हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां पर पाकिस्तानी एजेंसी बहुत ही निर्णायक भूमिका निभा सकती है. पाक सेना के जानकार तालिबान को इन हथियारों की बारीकी से परिचित करा सकते हैं. एक बार जब यह जानकारी तालिबान के पास आ जाएगी, तो वे अपने तरीके से इसका उपयोग कर सकते हैं.

काबुल एयरपोर्ट की तस्वीर (सौ. सीएनएन)

क्या है भारत की प्राथमिकता

विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का एक उच्च स्तरीय समूह अफगानिस्तान से 20 साल बाद अमेरिकी सेना की वापसी के मद्देनजर वहां भारत की तत्काल प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर पिछले कुछ दिनों से समूह की नियमित बैठक हो रही है. भारत की तात्कालिक प्राथमिकताएं अफगानिस्तान में अभी भी फंसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी, नई दिल्ली का साथ देने वाले अफगान नागरिकों को लाना और यह सुनिश्चित करना है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं किया जाए.

एक सूत्र ने बताया कि अफगानिस्तान में उभरती स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में निर्देश दिया कि एक उच्च स्तरीय समूह भारत की तत्काल प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करें. इस समूह में विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं.

उन्होंने कहा, 'अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं हो, यह सुनिश्चित करने और वहां फंसे हुए भारतीयों की सुरक्षित वापसी, अफगान नागरिकों (विशेष रूप से अल्पसंख्यकों) की भारत यात्रा से संबंधित मुद्दों पर गौर किया जा रहा है.' सूत्रों ने यह भी कहा कि समूह अफगानिस्तान में जमीनी हालात और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर नजर रख रहा है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा पारित प्रस्ताव भी शामिल है.

भारत की अध्यक्षता में अफगानिस्तान को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा जारी प्रस्ताव 'स्पष्ट रूप से' यह बताता है कि अफगान क्षेत्र का उपयोग किसी भी राष्ट्र को धमकाने, हमला करने, आतंकवादियों को शरण देने या प्रशिक्षित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

Last Updated : Aug 31, 2021, 6:51 PM IST

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