नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पश्चिम बंगाल के कई विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (वीसी) के लिए तदर्थ प्राधिकरण के मुद्दे पर विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति, राज्यपाल सीवी आनंद बोस के रवैय्ये के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया (WB govt vs governor).
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर एक आवेदन पर नोटिस जारी किया और चांसलर से जवाब मांगा, साथ ही यह भी निर्देश दिया कि ऐसे अधिकृत कुलपतियों का वेतन और भत्ते उसी वेतन-ग्रेड में होंगे जिसके लिए वे मूल रूप से अधिकृत थे और वीसी का नहीं. पीठ ने चांसलर को इस तरह के प्राधिकरण/नियुक्तियां आगे से करने से भी रोक दिया.
पीठ ने यह भी पूछा कि एक संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते चांसलर राज्य या एक अन्य संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते मुख्यमंत्री के साथ बैठकर इस मुद्दे को क्यों नहीं सुलझा सकते, जबकि अदालत ने पहले ही दिन इसका सुझाव दिया था.
पश्चिम बंगाल सरकार ने पीठ को सूचित किया कि न तो राज्यपाल और न ही यूजीसी ने नियमित कुलपतियों की नियुक्ति के लिए एक खोज समिति के लिए अपने नामांकित व्यक्तियों की मांग करने वाले किसी भी संचार का जवाब दिया है.
सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही वकील आस्था शर्मा के साथ वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने कहा कि इस अदालत द्वारा नोटिस जारी करने के बाद भी मामला लंबित है. विश्वविद्यालयों में कई नियुक्तियां की गई हैं. इस बात पर जोर दिया गया कि यह निष्पक्ष नहीं है.
वकील ने कहा कि नियुक्ति आदेश में यह भी उल्लेख नहीं है कि ये नियुक्तियां इस मुकदमे के नतीजे के अधीन होंगी. पीठ ने कहा कि वह उन्हें कार्यवाहक कुलपति के रूप में बने रहने की अनुमति देती है, लेकिन वे किसी भी भत्ते के हकदार नहीं होंगे.