नई दिल्ली : कांग्रेस एक तरफ जहां चुनावी राज्यों में सत्ता विरोधी लहर के साथ ही नागरिकता संशोधन काननू (सीएए) और नए कृषि कानूनों के खिलाफ लोगों के विरोध को भुनाने की कोशिश में हैं, तो दूसरी तरफ पार्टी की राह में रोड़े भी हैं.
ऐसे में कांग्रेस चुनावी राज्यों में जनता के गुस्से की आंच पर वोट की रोटी सेंकने की कवायद में जुटी हुई है. पार्टी को लगता है कि केरल में वह सत्तारूढ़ एलडीएफ पर भारी पड़ने जा रही है. हालांकि, अन्य राज्यों असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के अलावा पुडुचेरी में उसे गठबंधन सहयोगियों से समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस गठबंधन सहयोगियों इंडियन सेक्युलर फ्रंट और वाम दलों के बीच अब तक सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है जिनकी निगाहें राज्य के 30 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं पर है.असम में कांग्रेस का बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ के साथ समझौता अंतिम रूप नहीं ले सका है,जोकि चुनाव में उसकी प्रमुख सहयोगी है.
वहीं, तमिलनाडु में कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि पुरानी सहयोगी द्रमुक के साथ मिलकर वह अन्नाद्रमुक को सत्ता से बाहर कर पाएगी. पुडुचेरी में हाल ही में सरकार गिरने के बाद कांग्रेस पार्टी कमजोर पड़ी है और अब उसे आक्रामक भाजपा का मुकबला करना है, जो कि जीत का रास्ता बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है.
हालांकि, तमिलनाडु में सीट बंटवारे की बातचीत शुरू हो गई है और कांग्रेस इस बार 50 सीटों की मांग कर रही है, जिसे देने में द्रमुक हिचक रही है.