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भगवान की जाति की टिप्पणी पर जेएनयू वीसी की सफाई, अंबेडकर के विचारों की व्याख्या कर रही थी

भगवान की जाति की टिप्पणी पर जेएनयू की वीसी शांतिश्री धुलिपुडी पंडित ने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि डॉ बीआर अंबेडकर ने जो कहा था उसकी व्याख्या कर रही थी.

Was paraphrasing what Ambedkar said JNU VC on her caste of Gods remarks
भगवान की जाति की टिप्पणी पर जेएनयू वीसी ने सफाई देते हुए कहा, अम्बेडकर के विचारों की व्याख्या कर रही थी

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Published : Aug 24, 2022, 9:45 AM IST

Updated : Aug 24, 2022, 11:13 AM IST

नई दिल्ली: भगवान की जाति पर टिप्पणी करने के एक दिन बाद जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने सफाई देते हुए कहा कि वह डॉ बीआर अंबेडकर ने जो कहा था उसकी व्याख्या कर रही थी. बता दें कि एक व्याख्यान के दौरान उन्होंने कहा था कि मानवशास्त्रीय रूप से भगवान उच्च जाति के नहीं हैं. जेएनयू के कुलपति शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने कहा कि यह हिंदू धर्म का श्रेय है कि गौतम बुद्ध से लेकर बीआर अंबेडकर तक के महान असंतुष्टों को मनाया जाता है. शांतिश्री धुलिपुडी पंडित जेंडर जस्टिस पर डॉ बीआर अंबेडकर के विचार विषय पर आधारित एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता पर बोल रहीं थीं.

उन्होंने कहा, 'मैं डॉ बीआर अंबेडकर और लैंगिक न्याय पर बोल रही थी, समान नागरिक संहिता को डिकोड कर रही थी, इसलिए मुझे विश्लेषण करना था कि उनके विचार क्या थे, इसलिए मैं उनकी किताबों में जो कहा गया था, वह मेरे विचार नहीं हैं. उन्होंने आगे कहा, ' मैंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म ही एकमात्र धर्म और जीवन का एक तरीका है. सनातन धर्म असहमति, विविधता और अंतर को स्वीकार करता है. कोई अन्य धर्म ऐसा नहीं करता है और यह हिंदू धर्म का श्रेय है कि गौतम बुद्ध से लेकर अंबेडकर तक ऐसे महान असंतुष्टों को मनाया जाता है.'

मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं 'शूद्र' हैं, इस टिप्पणी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वह अंबेडकर के काम का विश्लेषण कर रही थीं. 'उन्होंने मनुस्मृति पर बहुत कुछ लिखा और उन्होंने ही यह सब कहा. मैं केवल उनके दृष्टिकोण का विश्लेषण कर रही थी और वह भारतीय संविधान के पिता और मसौदा समिति के अध्यक्ष होने के नाते- उनके दर्शन को समझना बेहद जरूरी है. जब मैं लैंगिक न्याय के बारे में बात कर रही थी, मेरे लिए इस दृष्टिकोण का विश्लेषण करना भी बहुत महत्वपूर्ण था.'

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इसलिए एक विवाद है लेकिन डॉ अंबेडकर ने यही कहा है इसलिए हमें इसे आलोचनात्मक रूप से देखना होगा क्योंकि वे महान असंतुष्टों में से एक हैं. आधुनिक भारत के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर जब हम अमृत काल में जा रहे हैं और अपने कुछ महान राष्ट्रवादियों पर नजर डालते हैं जिन्होंने बहुत कुछ लिखा है. ये मेरे विचार नहीं थे. मैं डॉ अंबेडकर की तरह महान और मौलिक नहीं हूं. एक अच्छे शिक्षाविद् के रूप में, मैं सिर्फ लिंग और न्याय पर उनके विचारों का विश्लेषण कर रही थी.'

(एएनआई)

Last Updated : Aug 24, 2022, 11:13 AM IST

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