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हर साल 20 मीटर तक सिकुड़ रहे उत्तराखंड के ग्लेशियर, गंगोत्री बेसिन 87 साल में डेढ़ किमी से ज्यादा सिमटा - uttarakhand Glacier in danger

Himayalan Glaciers in Danger उत्तराखंड में तेजी से पिघलते ग्लेशियरों ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक लंबे समय से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार पर अध्ययन कर रहे हैं. उनकी चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. अध्ययन में सामने आया है कि बीते 87 सालों और 2017 से 2022 के बीच गंगोत्री के बेसिन में मौजूद ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है, यानी वो इस दौरान सबसे ज्यादा सिमटे हैं. Glaciers Melting in Gangotri

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 6, 2023, 4:40 PM IST

Updated : Sep 7, 2023, 2:07 PM IST

बड़े खतरे की आहट! तेजी से सिमट रहे ग्लेशियर

देहरादून (उत्तराखंड):जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है, जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल हमें किसी न किसी रूप में भुगतना होगा. इस समय दुनिया भर के पर्यावरणविदों की सबसे ज्यादा चिंता तेजी से पिघलते ग्लेशियर हैं. ग्लेशियरों के पिघलने के तमाम कारण हैं, लेकिन जिस रफ्तार से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, वो भविष्य के लिए बड़ी समस्या है. यदि जल्द ही इसका कोई समाधान नहीं खोजा गया, तो दुनिया को बड़े संकट का सामना भी करना पड़ सकता है. यही वजह है कि वैज्ञानिक लगातार ग्लेशियरों के पिघलने की वजहों पर रिसर्च कर रहे हैं.

हर साल 20 मीटर तक सिकुड़ रहे उत्तराखंड के ग्लेशियर

1726.9 मीटर ऊपर की ओर खिसक गया ग्लेशियर: उत्तराखंड के हिमायली क्षेत्रों में करीब एक हजार ग्लेशियर हैं. इनमें से गंगोत्री के बेसिन में मौजूद ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों से मिली जानकारी के अनुसार, गंगोत्री ग्लेशियर साल 1935 से साल 2022 तक करीब 1726.9 मीटर तक खिसक गया है, यानी पिछले 87 सालों में गंगोत्री ग्लेशियर 1726.9 मीटर यानी डेढ़ किलोमीटर से से ज्यादा ऊपर की ओर खिसक गया है.
पढ़ें-Glacier Melting: ग्लेशियर पिघले तो जलमग्न हो जाएंगे भारत-पाकिस्तान और चीन! उत्तराखंड के ये हैं हालात

17 साल गंगोत्री ग्लेशियर के लिए काफी नुकसानदायक रहे: आंकड़ों पर गौर करें तो इन 87 सालों में से करीब 17 साल ऐसे रहे हैं, जब गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघले हैं. कुल मिलाकर कहें तो ये 17 साल गंगोत्री ग्लेशियर के लिए काफी नुकसानदायक रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इन 17 सालों के अलावा अन्य सालों में ग्लेशियर पिघल नहीं रहे थे, बल्कि इन 17 सालों में गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की घटना रिकॉर्ड तोड़ देखी गई है. ऐसे भी कह सकते हैं कि इस दौरान ग्लेशियर काफी तेजी से पीछे खिसके हैं.

गंगोत्री बेसिन 87 साल में डेढ़ किमी से ज्यादा सिमटा

पांच सालों में गंगोत्री ग्लेशियर करीब 169 मीटर पीछे खिसक गया: वाडिया से मिली अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 से 2022 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार काफी तेज रही. क्योंकि इन पांच सालों में गंगोत्री ग्लेशियर करीब 169 मीटर पीछे खिसक गया है. यानी ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार सलाना 33.8 मीटर रही है. बीते 87 सालों में ये पांच साल (साल 2017 से 2022) ऐसे हैं, जब गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार सबसे तेज रही है.
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सालाना 15 से 20 मीटर पीछे खिसक रहे ग्लेशियर: इसी क्रम में साल 1968 से 1980 के बीच भी गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार में तेजी देखी गई थी. अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, साल 1968 से 1980 के बीच करीब 323.2 मीटर तक ग्लेशियर पिघला था. यानी सालाना 26.93 मीटर ग्लेशियर पिघले. कुल मिलाकर साल 1968 से 1980 और साल 2017 से 2022 के बीच का समय ग्लेशियर के लिए काफी नुकसानदायक रहे हैं. वहीं, वाडिया के डायरेक्टर डॉ कालाचंद साईं ने बताया कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिसकी रफ्तार सालाना 15 से 20 मीटर तक है.

Last Updated : Sep 7, 2023, 2:07 PM IST

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