कोलंबो : श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को देश की संसद ने बुधवार को नया राष्ट्रपति निर्वाचित किया. देश में नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान सुबह दस बजे शुरू हुआ था. छह बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे (73) को 225 सदस्यीय सदन में 134 सदस्यों का मत हासिल हुआ, वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी डलास अल्हाप्पेरुमा को 82 मत मिले. वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को महज तीन वोट मिले. संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने परिणामों की घोषणा की.
विक्रमसिंघे ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखने के लिए संसद का आभार व्यक्त किया और राष्ट्रपति पद के दोनों प्रतिद्वंद्वियों तथा पूर्व राष्ट्रपतियों-महिंदा राजपक्षे और मैत्रीपाला सिरिसेना से सहयोग मांगा. विक्रमसिंघे ने कहा, 'अब चूंकि यह चुनाव समाप्त हो गया है तो हमें विभेद भी समाप्त करना चाहिए. मैं आपसे बात करने के लिए तैयार हूं.'
नए राष्ट्रपति के पास पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का शेष कार्यकाल पूरा करने का जनादेश है. राजपक्षे का कार्यकाल नवंबर 2024 तक था. देश में अब तक के सबसे भीषण आर्थिक संकट से निपटने में सरकार की नाकामी के बाद लोग सड़कों पर उतर आए थे और राजनीतिक उथल-पुथल तथा देश में फैले अराजकता के माहौल के बीच गोटबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच राष्ट्रपति चुनाव गुप्त मतदान के जरिए हुआ. 223 सांसदों ने मतदान में हिस्सा लिया, जबकि दो सांसदों ने इससे दूरी बनाई. चार वोट रद्द कर दिए गए और 219 वोट वैध माने गए. राष्ट्रपति चुनाव में मुकाबला कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, डलास अल्हाप्पेरुमा और वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके के बीच था.
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एसएलपीपी के अध्यक्ष जीएल पीरिस ने मंगलवार को कहा था कि सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के अधिकतर सदस्य इससे अलग हुए गुट के नेता अल्हाप्पेरुमा को राष्ट्रपति पद के लिए और प्रमुख विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा को प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के पक्ष में हैं. श्रीलंका में 1978 के बाद से पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों द्वारा गुप्त मतदान के जरिए हुआ. इससे पहले 1993 में कार्यकाल के बीच में ही राष्ट्रपति का पद तब खाली हुआ था, जब तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी गई थी. उस वक्त डी बी विजेतुंगा को संसद ने सर्वसम्मति से प्रेमदासा का कार्यकाल पूरा करने का जिम्मा सौंपा था.