नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकासशील देशों के लिए पिछले तीन वर्षों को कठिनाईपूर्ण बताया और कहा कि 'वसुधैव कुटुम्बकम' के दर्शन पर चलने वाला भारत वैश्वीकरण के सिद्धांत को मनाता है लेकिन विकासशील देश ऐसे वैश्वीकरण की इच्छा नहीं रखते हैं जो जलवायु संकट या कर्ज संकट सृजित करता हो. प्रधानमंत्री मोदी ने 'वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' डिजिटल सम्मेलन के दूसरे दिन अपने संबोधन में कहा, 'पिछले तीन साल विकासशील देशों के लिए कठिन रहे हैं. कोविड-19, ईंधन, उर्वरक, खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों ने विकास संबंधी प्रयासों को प्रभावित किया है.'
उन्होंने कहा, 'हम सभी वैश्वीकरण के सिद्धांत की सराहना करते हैं. भारतीय दर्शन हमेशा दुनिया को एक परिवार के रूप में देखने का रहा है. हालांकि विकासशील देश ऐसे वैश्वीकरण की इच्छा नहीं रखते हैं जो जलवायु संकट या कर्ज संकट सृजित करता हो.' मोदी ने कहा, 'हम एक ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं, जहां टीकों का असमान वितरण नहीं हो या अत्यधिक केंद्रित वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला नहीं हो. हम ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं जो समृद्धि लाए और सम्पूर्ण मानवता की भलाई करे.'
उन्होंने कहा कि हम विकासशील देश अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के बढ़ते विखंडन को लेकर भी चिंतित हैं और ये भू राजनीतिक तनाव हमें हमारी प्राथमिकताओं से भटकाने का काम करते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके कारण ईंधन, खाद्य और अन्य उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तीव्र वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि इस तरह के भू राजनीतिक विखंडन से निपटने के लिये हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में बुनियादी सुधार की तत्काल जरूरत है.