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गांवों तक पहुंचा कोरोना का 'दंश'

कोरोना गांवों तक पहुंच चुका है. यहां पर स्वास्थ्य का ढांचा उपलब्ध नहीं होने की वजह से स्थिति दयनीय है. केंद्र सरकार कह रही है कि स्वास्थ्य केंद्रों की बदौलत गांवों तक मदद पहुंचाने की व्यवस्था करें. लेकिन हकीकत क्या है, आप समझिए. एक उप-स्वास्थ्य केंद्र के हिस्से चार गांव आते हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन 27 गांव और एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत 127 गांव आते हैं. और इन केंद्रों में 80600 पद खाली हैं.

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गांव के बाहर लगा पहरा

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Published : May 18, 2021, 9:24 PM IST

हैदराबाद : कोरोना अब गांवों तक फैल चुका है. देश की 65 फीसदी आबादी यहां रहती है. पिछले साल शहरों में कोरोना फैलने के पांच महीने बाद गांवों तक कोरोना पहुंचा था. वह भी बहुत कम संख्या में. लेकिन इस बार स्थिति गंभीर है. 490 जिलों में 10 फीसदी से अधिक पॉजिटिविटी रेट है. इनमें से 36.08 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र हैं. अप्रैल महीने में 48.5 फीसदी तक पहुंच गया है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शहरों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र कोरोना से प्रभावित हैं. पिछले महीने 44 फीसदी मामले की रिपोर्टिंग यहां से हुई थी. घर में जब आग लग जाती है, तब आप कुआं खोदने के लिए नहीं जाते हैं. लेकिन केंद्र सरकार कुछ ऐसा ही कर रही है. वह राज्यों को मुफ्त की सलाह दिए जा रहा है. हाल ही में जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि राज्य गांवों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करे, जिनमें भी कोविड के लक्षण हैं, उन्हें मदद पहुंचाइए.

अब आप बताइए, भारत में मेडिकल सुविधाएं मुख्य रूप से शहरों में केंद्रित हैं. दो तिहाई ढांचा यहीं पर है. और शहरों की स्थिति क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है. स्वास्थ्य का पूरा ढांचा चरमरा गया है. फिर ग्रामीण इलाकों की क्या स्थिति होगी, इसके बारे में आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. सरकार कह रही है कि सामुदायिक मेडिकल अधिकारी की नियुक्ति हो. एएनएम को प्रशिक्षित किया जाए. उन्हें रैपिड एंटीजन टेस्टिंग की ट्रेनिंग दी जाए.

यह अपने आप में आश्चर्य है कि प्रशासन अब तक कारणों को सुनिश्चित नहीं कर पाया है. उत्तराखंड के लिब्बरहेरी गांव में एक महीने में 30 लोग काल के गाल में समा. गांवों में स्वास्थ्य का प्राथमिक ढांचा तक नहीं है. ऐसे में केंद्र का दिशा-निर्देश जारी कर यह कहना कि स्थिति संभल जाएगी, कहां तक उचित ठहराया जा सकता है.

पंचायती राज दिवस पर पीएम मोदी ने कहा था कि कोरोना से जंग जीतने में सबसे पहले कोई भी कामयाब होगा, तो वह हमारे गांव होंगे. यहां के लोग देश और दुनिया को रास्ता दिखाएंगे. पर अब हालात देखिए कैसे हैं. गांवों में मौत का तांडव जारी है. हमारे नेता भविष्य की रणनीति बनाने के बजाए लच्छेदार भाषणों में ही समय बिताते रह गए.

मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में स्थिति बहुत ही दयनीय है. एक महीना पहले केंद्र ने खुद बताया था कि हमारे सारे स्वास्थ्य उप-केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अभावग्रस्त हैं. लेकिन अब केंद्र यह कह रहा है कि इन्हीं स्वास्थ्य केंद्रों की बदौलत कोरोना की रीढ़ तोड़ेंगे.

एक उप-स्वास्थ्य केंद्र के हिस्से चार गांव आते हैं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन 27 गांव और एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत 127 गांव आते हैं. इन केंद्रों में 80600 पद खाली हैं. जब मेडिकल स्टाफ नहीं हैं, और जहां हैं, उनके पास उपकरण नहीं हैं. वे ग्रामीणों की किस तरीके से मदद कर पाएंगे. ऐसे में कुछ गांवों ने स्वतः ही निर्णय लिया है कि वे किसी कोरोना मरीज को गांव में दाखिल होने नहीं देंगे. इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है और समय का तकाजा है कि इसी रास्ते में अभी ग्रामीण राहत पा सकते हैं.

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