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दशहरे पर बोले मोहन भागवत- अल्पसंख्यकों को कोई खतरा नहीं, संघ आपसी भाईचारे और शांति के लिए प्रतिबद्ध - Headquarters

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव के मौके पर नागपुर के रेशमीबाग में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. इससे पहले मोहन भागवत ने संघ मुख्यालय में शस्त्र पूजन में हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में पर्वतारोही और हिमालय की चोटी पर पहुंचने वाली पद्मश्री संतोष यादव मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं.

नागपुर में  में विजयादशमी 2022 समारोह चल रहा है
नागपुर में में विजयादशमी 2022 समारोह चल रहा है

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Published : Oct 5, 2022, 8:08 AM IST

Updated : Oct 5, 2022, 4:06 PM IST

नागपुर:राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण भय का हौवा खड़ा किया जाता है कि उन्हें संघ से या हिंदू से खतरा है लेकिन यह न तो हिंदुओं का, न ही संघ का स्वभाव या इतिहास रहा है. भागवत ने जोर देकर कहा कि हमसे या संगठित हिंदुओं से न कभी किसी को खतरा हुआ है और न कभी होगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में विजय दशमी उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा, 'संघ पूरी दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारे, भद्रता व शांति के पक्ष में खड़ा है.'

असमानता का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि जब तक मंदिर, जलाशय और श्मशान सभी हिंदुओं के लिये नहीं खुलेंगे तब तक समानता की बात पूरी नहीं हो सकती. उन्होंने उदयपुर और अमरावती में भाजपा की एक निलंबित प्रवक्ता का समर्थन करने पर एक दर्जी तथा एक दवा दुकानदार की हत्या किए जाने की घटनाओं के संदर्भ में कहा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अभी पिछले दिनों उदयपुर में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिससे सारा समाज स्तब्ध रह गया.

भागवत ने कहा, 'अधिकांश समाज दु:खी एवं आक्रोशित था, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करना होगा क्योंकि ऐसी घटनाओं के मूल में पूरा समाज नहीं होता.' उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी घटना घटने के बाद हिन्दुओं पर आरोप लगने की स्थिति में मुखरता से विरोध और निषेध व्यक्त करता है. संघ प्रमुख ने कहा कि सबको सदैव क़ानून एवं संविधान की मर्यादा में रहकर अपना विरोध प्रगट करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'समाज जुड़े - टूटे नहीं, झगड़े नहीं, बिखरे नहीं. मन-वचन-कर्म से यह भाव मन में रखकर समाज के सभी सज्जनों को मुखर होना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि हम दिखते भिन्न और विशिष्ट हैं, इसलिए हम अलग हैं, हमें अलगाव चाहिए....इस असत्य के कारण 'भाई टूटे, धरती खोयी, मिटे धर्मसंस्थान' यह विभाजन का ज़हरीला अनुभव लेकर कोई भी सुखी नहीं हुआ. सरसंघचालक ने कहा, हम भारत के हैं, भारतीय पूर्वजों के हैं, भारत की सनातन संस्कृति के हैं, समाज व राष्ट्रीयता के नाते एक हैं और यही हमारा तारक मंत्र है.

भागवत ने कहा कि संघ राष्ट्र विचार को मानने वाले सबका यानी हिन्दू समाज का संगठन करने, हिन्दू धर्म, संस्कृति व समाज का संरक्षण कर हिन्दू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए काम करता है. उन्होंने कहा कि अब जब संघ को लोगों का भरोसा और प्यार मिल रहा है और वह मजबूत हो रहा है तो 'हिंदू राष्ट्र' की अवधारणा को भी गंभीरता से लिया जा रहा है. उन्होंने कहा, 'परन्तु हिन्दू शब्द का विरोध करते हुए अन्य शब्दों का उपयोग करने वाले लोग भी हैं, लेकिन हमारा उनसे कोई विरोध नहीं. आशय की स्पष्टता के लिए हम हमारे लिए हिन्दू शब्द का आग्रह रखते रहेंगे.'

उन्होंने कहा कि तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण एक भय का हौवा खड़ा किया जाता है कि हम से अथवा संगठित हिन्दुओं से उन्हें खतरा है. उन्होंने कहा, ऐसा न कभी हुआ है, न होगा. न यह हिन्दू का, न ही संघ का स्वभाव या इतिहास रहा है. उन्होंने कहा कि अन्याय, अत्याचार, द्वेष का सहारा लेकर गुंडागर्दी करने वाले जब समाज में शत्रुता करते हैं तो आत्मरक्षा अथवा आप्तरक्षा सभी का कर्तव्य बन जाता है. संघ प्रमुख ने कहा, 'ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप', ऐसा हिन्दू समाज खड़ा हो, यह समय की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि तथाकथित अल्पसंख्यकों में से कुछ सज्जन गत वर्षों में हमसे मिलने के लिए आते रहे हैं, उनसे संघ के कुछ अधिकारियों का संपर्क संवाद हुआ है, होता रहेगा. भागवत ने कहा, 'सभी कार्यों में महिला पुरुष की सहभागिता होती है, भारतीय परम्परा में इसी पूरकता की दृष्टि से विचार किया गया है लेकिन हमने उस दृष्टि को भुला दिया, तथा मातृशक्ति को सीमित कर दिया.' उन्होंने कहा कि हमें महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करने एवं उन्हें अपने निर्णय स्वयं लेने की स्वतंत्रता देकर सशक्त बनाने की आवश्यकता है.

भागवत ने कहा कि कुछ बाधाएं सनातन धर्म के समक्ष रूकावट बन रही हैं जो भारत की एकता एवं प्रगति के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतों द्वारा सृजित की गई हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतें गलत बातें एवं धारणाएं फैलाती हैं, अराजकता को बढ़ावा देती हैं, आपराधिक कार्यों में संलग्न होती हैं, आतंक तथा संघर्ष एवं सामाजिक अशांति को बढ़ावा देती हैं. उन्होंने कहा, 'केवल समाज के मजबूत एवं सक्रिय सहयोग से ही हमारी समग्र सुरक्षा एवं एकता सुनिश्चित की जा सकती है.'

उन्होंने कहा, शासन व प्रशासन के इन शक्तियों के नियंत्रण व निर्मूलन के प्रयासों में हमें सहायक बनना चाहिए. समाज का सबल व सफल सहयोग ही देश की सुरक्षा व एकात्मता को पूर्णत: निश्चित कर सकता है. उन्होंने कहा कि संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा, ऐसी चेतावनी बाबा साहेब आंबेडकर ने सभी को दी थी. उन्होंने कहा, हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे मित्रों में सभी जातियों एवं आर्थिक समूहों के लोग हों ताकि समाज में और समानता लाई जा सके. सरसंघचालक ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों के बहकावे में न फंसते हुए, उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए.

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बता दें कि 1925 में दशहरे के दिन ही नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी. डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की थी. इस दिन देश भर में संघ पथ संचलन कार्यक्रम का आयोजन करता है. संघ के 97 साल के इतिहास में पहली बार कोई महिला इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुई हैं. इससे पहले पुरुष ही इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होते आए हैं. लेकिन संघ ने इस बार इस परिपाटी को बदल दिया है. मोहन भागवत के साथ संतोष यादव भी शस्त्र पूजन कार्यक्रम में शामिल रहीं.

Last Updated : Oct 5, 2022, 4:06 PM IST

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