हैदराबाद :भारत से बंटवारे के बाद पाकिस्तान उन भौगोलिक रूप से दो हिस्सों में बंटा हुआ था. पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश), जिसमें 56 फीसदी बांग्ला भाषी रहते थे. वहीं पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को राजकीय भाषा घोषित की थी. जिसके बाद से पूर्वी पाकिस्तान में विरोध की एक लहर उठ खड़ी हुई थी. अपने गठन के बाद से पाकिस्तानी आवाम भाषा, प्रांत, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक मुद्दों पर देश बंटा हुआ था.
बांग्लादेश में उठ रहे विरोध के स्वर को दबाने के लिए पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर बरर्बता करने लगी. पाक फौजियों ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के विरोध को दबाने के लिए उनके साथ लूट-खसोट करना शुरू कर दिया. जिससे परेशान होकर पूर्वी पाकिस्तान के नागरिक भारत की ओर पलायन करने लगे. एक समय ऐसा आया जब भारत के ऊपर शर्णार्थियों का बोझ काफी बढ़ गया. यह भारत सरकार के लिए गंभीर चिंता का कारण बन गया. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वह फैसला लिया जिसके लिये उन्हें संसद में 'दुर्गा' कह कर पुकारा गया.
इंदिरा गांधी ने तय किया कि वह बांग्लादेश के मुक्तिसंग्राम में भारतीय सैनिक सक्रिय रूप से भाग लेंगे. जिसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ. पाकिस्तानी सेना ने 16 दिसंबर 1971 को युद्ध में करारी हार को स्वीकार करते हुए भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पन कर दिया. इसी के साथ तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बेतरीन कुटनीतिक का परिचय दिया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान की स्थापना के 25 साल के भीतर एक और बंटवारा हो गया. इसी के साथ पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में नया राष्ट्र बन गया. ये अलग बात है कि भारत सरकार ने युद्ध समाप्ति के 10 दिन पहले ही 6 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी थी.
इंदिरा गांधी के लीडरशिप में भारत ने लहराया था परचम
16 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की बरसी के बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का दिवस है. 2023 में इस वाक्या का 52 साल पूरे हो रहे हैं. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ जनरल सैम मानेकशॉ के लीडरशिप का कमाल ऐसा रहा की दो सप्ताह से कम समय में युद्ध समाप्त हो गया. भारत की जीत हुई और बांग्लादेश अस्तित्व में आ गया.
14 दिनों में पाकिस्तानी सेना टूट गई
यह संघर्ष पूर्वी पाकिस्तान के प्रति पश्चिमी पाकिस्तान की दमनकारी नीतियों का परिणाम था. अकल्पनीय मानवीय पीड़ा के कारण 10 मिलियन से अधिक शरणार्थियों पलायन कर भारत पहुंचे थे. भारत ने सैन्य कार्रवाई का सहारा तभी लिया जब अन्य सभी विकल्प खत्म हो गए थे. 03 दिसंबर 1971 को भारतीय हवाई अड्डों पर पाकिस्तान द्वारा हवाई हमले के बाद पूर्ण पैमाने पर युद्ध छिड़ गया.
भारतीय सशस्त्र बलों की बेहतरीन रणनीति का परिणाम रहा की 14 दिनों में पाकिस्तानी सेना टूट गई. भारतीय सशस्त्र बलों ने महज 2 सप्ताह में पाकिस्तान को उसके पैरों तले खड़ा कर दिया. भारतीय सेना ने भारतीय वायु सेना के सहयोग से एक ब्लिट्जक्रेग ऑपरेशन में ढाका पर कब्जा कर लिया और नौसेना ने भी सराहनीय भूमिका निभाते हुए भारत को एक यादगार जीत दिलाई और दो राष्ट्र सिद्धांत को नष्ट कर दिया.
93 हजार सैनिकों भारत के सामने किया था आत्मसमर्पण
16 दिसंबर 1971 पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने भारतीय सेना के वरीय अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के साथ आत्मसमर्पण दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर अपनी हार को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया. इसी के साथ बांग्लादेश अस्तित्व में आ गया.
पाकिस्तानी सेना ने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. इसी के साथ पाक ने अपनी आधी नौसेना और वायु सेना का एक चौथाई हिस्सा खो दिया. युद्ध के इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में पहले कभी सैनिकों ने आत्मसमर्पण नहीं किये थे.