जैसलमेर : उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू रविवार से दो दिवसीय जैसलमेर दौरे पर हैं. उपराष्ट्रपति और राज्यपाल कलराज मिश्र वायुसेना के विशेष विमान से भारत-पाक सीमा पर स्थित तनोट माता मंदिर पहुंचे. तनोट पहुंचने पर हेलीपैड पर सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force) राजस्थान फ्रंटियर के आईजी ने उपराष्ट्रपति का स्वागत किया.
1971 के भारत-पाक युद्ध की 50 में स्वर्ण जयंती (50th Golden Jubilee of Indo-Pak War) के अवसर पर वेंकैया नायडू जैसलमेर पहुंचे हैं. सीमा सुरक्षा बल राजस्थान फ्रंटियर के आईजी पंकज घुमर, बीएसएफ डीआईजी नॉर्थ अरुण कुमार सिंह, जिला प्रमुख प्रताप सिंह ने उप राष्ट्रपति और राज्यपाल का स्वागत किया. इस दौरान जिला कलेक्टर आशीष मोदी और पुलिस अधीक्षक अजय सिंह भी मौजूद रहे.
उपराष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति की पत्नी एम. उषा, राज्यपाल कलराज मिश्र तनोट माता मंदिर पहुंचे, जहां पूजा-अर्चना कर देश में अमन चैन और खुशहाली की कामना की. इस दौरान केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री व बाड़मेर-जैसलमेर सांसद कैलाश चौधरी ने उपराष्ट्रपति को 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान तनोट माता के चमत्कारों के बारे में भी जानकारी दी. इसी दौरान उपराष्ट्रपति ने मंदिर परिसर में रखे बम को देखा.
1971 के भारत-पाक युद्ध (Indo Pak war) के दौरान पाकिस्तान ने क्षेत्र में सैकड़ों बम बरसाए थे. मान्यता है कि तनोट माता के चमत्कारों के चलते वह बम नहीं फटे, जो आज भी मंदिर परिसर में रखे गए हैं. वेंकैया नायडू ने तनोट माता मंदिर परिसर में 1971 के युद्ध विजय के प्रतीक के रूप में बनाए गए विजय स्तंभ पर पुष्प चक्र अर्पित किया और वीर शहीदों को नमन किया.
बीएसएफ के जवानों ने नायडू को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया. इस दौरान उन्होंने भारत-पाक सीमा की रक्षा में तैनात बीएसएफ के जवानों से चर्चा कर उनकी हौसला अफजाई की. इसके बाद उप राष्ट्रपति और राज्यपाल तनोट से 1971 के भारत-पाक युद्धस्थल लोंगेवाला के लिए रवाना हुए, जहां पर उन्होंने युद्ध स्थल का अवलोकन किया.
साथ ही उस ऐतिहासिक लड़ाई के बारे में जाना. बैटल ऑफ लोंगेवाला (Battle of Longewala) में देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले देश के वीर सपूतों को नमन किया.
फेसबुक पोस्ट कर साझा किया अनुभव
इस दौरान उपराष्ट्रपति ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लोंगेवाला युद्ध स्थल की अपनी यात्रा को जीवन का अविस्मरणीय अवसर बताया. उन्होंने लिखा कि भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट, धूल भरे थार रेगिस्तान में रेत के टीले पर खड़े हो कर उस भीषण युद्ध की गाथा सुनना और हमारे वीर सैनिकों के पराक्रम की कहानियां सुनना, मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित रह गया है.