हैदराबाद : कोरोना संक्रमण के इस दौर में कई जिंदगियां सांसों के लिए तड़प रही हैं. कहीं ऑक्सीजन की आस में सांसों की डोर टूट रही है तो कहीं वक्त पर दवा ना मिलने पर जिंदगियां दम तोड़ रही हैं. कोरोना की इस दूसरी लहर ने जो कहर बरपाया है उसके लिए वो व्यवस्था भी जिम्मेदार है जो खुद वेंटिलेटर पर है ऐसे में सवाल है कि आखिर कोरोना को हराएंगे कैसे.
दरअसल पीएम केयर्स फंड से राज्यों को वेंटिलेटर्स दिए गए लेकिन कई राज्यों में व्यवस्था ही खुद वेंटिलेटर पर है. अस्पतालों में व्यवस्थाओं का आलम ये है कि पीएम केयर्स फंड से दिए गए वेंटिलेटर या तो धूल फांक रहे हैं या फिर वेंटिलेटर को ऑपरेट करने वाले टेक्नीशियन ही नहीं है. वैसे ये हाल तब है जब सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में रोजाना औसतन 3800 से 4 हजार लोगों की मौत हो रही है. अस्पतालों में बिलखते परिजन किसी अपने के लिए वेंटिलेटर जुगाड़ने के लिए प्रशासन से मिन्नतें कर रहे हैं, इन्हीं वेंटिलेटर की आस में कई जिंदगियां मौत के आगोश में सो चुकी हैं. लेकिन राज्यों के अस्पतालों में जंग लगी व्यवस्था का हाल देखकर आप अपना माथा पकड़ लेंगे.
बिहार
बिहार का नाम आते ही व्यवस्था शब्द ही जैसे विलुप्त हो जाता है. सुशासन बाबू का तमगा लिए नीतीश कुमार के राज्य में व्यवस्थाओं का आलम जगजाहिर है. राज्य को पीएम केयर्स फंड से पिछले साल 30 वेंटिलेटर मिले थे लेकिन एक का भी इस्तेमाल नहीं हुआ. जिसकी वजह है प्रदेश में टेक्नीशियन्स की कमी. अब जब टेक्नीशियन ही नहीं होंगे तो मशीनों के ठीक होने, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर की कमी का सवाल पूछना तो बेईमानी है. क्योंकि जिंदगी बचाने वाली ये मशीनें फिलहाल सिर्फ और सिर्फ डिब्बे हैं.
बिहार में व्यवस्थाओं का आलम ये है कि पूरे प्रदेश में 207 वेंटिलेटर टेक्नीशियन्स की कमी के कारण बेकार पड़े हैं. जिनके होने या ना होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. राज्य के 31 जिलों में तो 6-6 वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं वो भी उस कोरोना संक्रमण के दौर में जहां मरीज सांसों की आस में अस्पताल तो पहुंचता है लेकिन वहां वेंटिलेटर होना या ना होना बराबर है. बीते साल 1700 से ज्यादा लैब टेक्नीशियन के पदों पर इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है.
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पंजाब
पंजाब को पीएम केयर्स फंड से 809 वेंटिलेटर मिले जिनमें से सिर्फ 558 वेंटिलेटर इंस्टॉल हो पाए जबकि 251 अभी भी सरकारी अस्पतालों में जस के तस रखे हुए हैं. सरकार के मुताबिक पंजाब में वेंटिलेटर इंस्टॉल करने के लिए सिर्फ एक ही इंजीनियर तैनात किया गया है जिसके कारण ये मशीनें मरीजों के काम नहीं आ पा रही.
उधर पंजाब में आम आदमी पार्टी के विधायक कुलतार सिंह ने ट्वीट कर धूल फांकते वेंटिलेटर्स को लेकर पंजाब सरकार पर निशाना साधा है. कुलतार सिंह के मुताबिक फरीदकोट के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज में पीएम केयर्स फंड से मिले करीब 70 वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं. वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि पीएम केयर्स फंड से मेडिकल कॉलेज को 82 वेंटिलेटर मिले थे जिनमें से 62 वेंटिलेटर शुरू से खराब हैं. सवाल है कि अगर वेंटिलेटर खराब थे तो उनकी सुध सरकार या मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इतने दिन से क्यों नहीं ली. विश्वविद्यालय प्रशासन वेंटिलेटर की क्वालिटी से लेकर टेक्नीशियन की कमी का हवाला तो दे रहा है लेकिन कोरोना काल में जहां मरीजों को वेंटिलेटर जैसी मशीन की सबसे ज्यादा जरूरत है वहां अधिकारियों की बेतुकी दलीलें गले नहीं उतरती.
कर्नाटक
कर्नाटक को पीएम केयर्स फंड से 3025 वेंटिलेटर मिले. जिनमें से सिर्फ 1,859 वेंटिलेटर ही इस्तेमाल हो रहे हैं जबकि बाकी 1,166 वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं. ये उस कर्नाटक में व्यवस्थाओं की बदहाली है जहां कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. कोरोना संक्रमण की जिस दूसरी लहर में मरीज सांसों के लिए तड़प रहे हैं वहां कर्नाटक राज्य में पीएम केयर्स फंड से मिले करीब 40 फीसदी वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं और इसके लिए तकनीकी समस्याओं पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है.
राजस्थान
राजस्थान को पीएम केयर्स फंड से 1900 वेंटिलेटर मिले. स्वास्थ्य विभाग की जानकारी के मुताबिक सभी वेंटिलेटर चेक किए जा चुके हैं. इनमें से 90 फीसदी वेंटिलेटर काम कर रहे हैं जबकि 10 फीसदी में सॉफ्टवेयर, सर्विसिंग या इंस्टॉलेशन से जुड़ी समस्याएं सामने आ रही हैं. राजस्थान में भी कई वेंटिलेटर टेक्नीशियन की कमी के कारण इस्तेमाल नहीं हो पा रहे हैं. कोरोना संक्रमण के इस दौर में खराब पड़े वेंटिलेटर के लिए सर्विस इंजीनियर का जुगाड़ करना भी विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है.