हैदराबाद :एक अच्छे द्वार के अतिरिक्त थोड़े वास्तु नियमों का पालन यदि भूखण्ड में कर लिया जाए तो गृहस्वामी अत्यन्त ऊंची स्थिति में आ जाता है और साधन सम्पन्नता के अतिरिक्त संतान सुख और व्यवसाय का सुख भी पूर्ण रूप से भोग पाता है.
मत्स्य पुराण, मयमतम्, मानसार व वृहत्संहिता में एक भूखण्ड में कुल मिलाकर 32 द्वारों की कल्पना की गई है. प्रत्येक दिशा में आठ द्वार परंतु यह सभी द्वार शुभ नहीं होते. शुभ द्वारों की संख्य कम हैं और अशुभ द्वारों की अधिक हैं. इस लेख में शुभ द्वारों का वर्णन किया जा रहा है. चित्र में जहां गहरा रंग किया गया है ये वे द्वार हैं जहां से महालक्ष्मी की कामना की जाती है. इस जगह जो द्वार हैं, उनमें सर्वश्रेष्ठ उत्तर दिशा में है. इस द्वार पर भल्लाट नामक देवता शासन करते हैं. दूसरे नम्बर पर पश्चिम में वरुण और पुष्यदंत हैं तथा पूर्व में जयंत नाम के देवता हैं. ये द्वार पांच साल से अधिक भी खुले रहें तो व्यक्ति को अति सम्पन्न बना देते हैं. यदि हम एक से अधिक द्वार खोल पाएं (ये द्वार भूखण्ड की बाहरी सीमा रेखा पर ही होने चाहिए) तो भूखण्ड बहुत शक्तिशाली ढंग से अपने परिणाम देने में समर्थ हो जाता है.
चित्र के अनुसार पूर्व दिशा में जयन्त व इन्द्र नामक द्वार शुभ बताए गए हैं. दक्षिण दिशा में गृहत्क्षत द्वार को शुभ बताया गया है. पश्चिम दिशा में पुष्पदंत व वरुण को शुभ माना गया है. सबसे अधिक शुभ द्वार उत्तर दिशा में मुख्य, भल्लाट व सोम को बताया गया है. शास्त्रों में प्रदत्त विवरण के अनुसार भूखण्ड जितना बड़ा होगा तो प्रत्येक द्वार को मिलने वाला क्षेत्रफल भी बढ़ता चला जाएगा. ठीक इसी तरह भूखण्ड छोटा होगा तो मुख्य द्वार का क्षेत्रफल भी छोटा ही होगा.
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