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लोगों के जीवन में खुशियां ला रहा आईएएस अफसर का 'मिशन मुस्कान', अपनों से मिल चुके कई बिछड़े बच्चे - मिशन मुस्कान

वाराणसी के आईएएस अफसर हिमांशु नागपाल का 'मिशन मुस्कान' (Varanasi IAS officer Mission Muskaan) अपनों से बिछड़ चुके बच्चों के जीवन में खुशनुमा रंग भर रहा है. अब तक कई बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाया जा चुका है.

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Published : Aug 19, 2023, 10:24 PM IST

आईएएस हिमांशु नागपाल की कोशिश की लोग तारीफ करते नहीं थकते.

वाराणसी : शामली का 10 साल का नयाब साल 2019 में मां-बाप से बिछड़ गया था. वह अपनों की याद में दिन-रात रोता रहता था. उसने परिवार से मिलने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. 20 दिन बाद मिशन मुस्कान उसके जीवन में नया उजाला लेकर आया. इसके जरिए वह अपने परिवार से दोबारा मिल सका. कुछ ऐसी ही कहानी झारखंड के 12 साल के सिद्धांत की भी है. 2018 में वह अपने मां-बाप के साथ वाराणसी आया था, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन पर वह बिछड़ गया. उसने भी अपनों से मुलाकात की आस छोड़ दी थी. 2023 में मिशन मुस्कान उसके जीवन में भी नया सवेरा लेकर आया. जिले के मुख्य विकास अधिकारी ने इस तरह के बच्चों के जीवन में खुशियां लाने के लिए इस मिशन की शुरुआत की है. उनके इस प्रयास से अब तक सैकड़ों परिवारों को उनके बिछड़े बच्चे मिल चुके हैं.

2022 में हुई मिशन मुस्कान की शुरुआत :वाराणसी के मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल 2019 बैच के आईएएस अफसर हैं. जिले में सीडीओ (चीफ डेवलपमेंट ऑफिसर) का पद संभालने के बाद उन्होंने वाराणसी और आसपास के रेलवे स्टेशनों, गंगा घाट और मंदिरों के बाहर बढ़ रही बच्चों की संख्या पर गौर किया. पाया कि ये बच्चे किसी न किसी वजह से अपनों से बिछड़ चुके हैं. इसके बाद साल 2022 के जुलाई महीने में उन्होंने मिश मुस्कान की शुरुआत की. इसका मकसद अपनों से बिछड़े बच्चों को उनके परिजनों से मिलाना और उन्हें शिक्षा समेत जीवन की अन्य उपयोगी गतिविधियों से जोड़ना था. मिशन मुस्कान से अब तक 732 बच्चों परिजनों से मिल चुके हैं.

मिशन मुस्कान की खासियत.

60 अधिकारियों की 12 टीम कर रही काम :चीफ डेवलपमेंट ऑफिसर हिमांशु नागपाल ने बताया कि मिशन मुस्कान का उद्देश्य ऐसे परिवारों में खुशियां लौटाना है जिनके मां-बाप बच्चों के गुम हो जाने पर दुखी रहते हैं. सीडीओ ने बताया कि एक रात वह शहर के भ्रमण पर निकले थे. उस दौरान रेलवे स्टेशन, गंगा घाट आदि जगहों पर छोटे-छोटे बच्चे भीख मांगते या फिर अन्य कोई काम करते दिखाई दे रहे थे. इसी से प्रेरित होकर मिशन मुस्कान की शुरुआत की गई. बहुत सारे बच्चे आसपास के जिलों के अलावा पश्चिम बंगाल, झारखंड, तेलंगाना, नेपाल और कई अलग-अलग राज्यों से आकर बनारस में अपने परिवार से अलग हो गए थे. ऐसे बच्चों को उनके परिवारों से दोबारा मिलाने के लिए 60 अधिकारियों की 12 टीम गठित की गई.

बच्चों को बनाया जाता है कुशल :सीडीओ ने बताया कि ये टीमें सड़क से लेकर गलियों तक 5 से 18 साल के बच्चों की खोजबीन करती हैं. जो बच्चे परिवार से बिछड़ गए थे या किसी वजह से अलग रह रहे थे, उन्हें हमने सबसे पहले शेल्टर होम में जगह दी जाती है. उनके लिए अच्छे कपड़े. खाने-पीने की व्यवस्था कराई जाती है. उन्हें पढ़ाई-लिखाई के लिए एक माहौल दिया जाता है. इसके बाद मनोवैज्ञानिकों की मदद से इन बच्चों की दिमागी हालत को समझने की कोशिश की जाती है. बच्चों को शेल्टर होम में तरह-तरह की चीज तैयार करने से लेकर तकनीकी जानकारी भी दी जाती है. सार्वजनिक जीवन में उन्हें कैसे जीना है, कैसे तौर-तरीके होने चाहिए, कैसे अपने परिवार के साथ व्यवहार करना चाहिए, कैसे समाज में लोगों के साथ मिलजुल कर रहना चाहिए, ये सभी जानकारी दी जाती है.

आश्रयगृहों की हालत में कराया सुधार :हिमांशु नागपाल का कहना है कि हम बच्चों को तब तक रामनगर स्थित बाल सुधार गृह या अन्य मद से संचालित होने वाले शेल्टर होम में रखते हैं, जब तक उनके माता-पिता का पता नहीं लग पाता है. कुछ बच्चे ऐसे भी रहे जो 2 साल तक शेल्टर होम में ही रहे. पहले इन आश्रयगृहों की स्थिति अच्छी नहीं हुआ करती थी, लेकिन इसको बेहतर करने के लिए सरकारी फंड और प्राइवेट लोगों, संस्थाओं की मदद से इसमें सुधार किया गया. शेल्टर होम में सुबह रोज असेंबली, कक्षाओं के बाद विभिन्न तरह के खेल भी कराए जाते हैं. उनके बाल मन को टटोलने की कोशिश की जाती है. पेंटिंग और चित्रकारी के अलग-अलग तरीकों से उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाने का काम किया जाता है. बच्चों को शिक्षिक भी किया जाता है. इसके लिए प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों और गैर-लाभकारी संस्थाओं के शिक्षकों को भी जोड़ा गया है.

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सीडीओ रोजाना बच्चों से करते हैं मुलाकात :सीडीओ ने बताया कि हमारे इस प्रयास से कक्षा 1 से लेकर 7 तक के तमाम बच्चे हमें मिले. उनका एडमिशन भी हमने अलग-अलग स्कूलों में करवाया. बाल देखभाल गृहों में चल रही हर गतिविधि की नियमित रूप से निगरानी की जाती है. आला अधिकारी भी इन बच्चों से जाकर मिलते हैं. इनके हालचाल लेते हैं. आमतौर पर बच्चों को उनके परिवारों से मिलाने में 5 से 15 दिन का वक्त लगता है. यदि किसी कारण देरी हो जाए तो इन बच्चों का पूरा ध्यान रखा जाता है. सीडीओ ने बताया कि यह काम उनकी ड्यूटी का एक अहम हिस्सा है. बच्चों के साथ मिलना, उनसे बात करना, उनके दुख-दर्द को समझना यह उनकी नियमित दिनचर्या का एक अहम हिस्सा है. हम सभी को इन बच्चों के लिए वक्त निकालना चाहिए.

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