वाराणसी:काशी समेत पूर्वांचल के खाद्य पदार्थों, सजावटी सामानों और कपड़ों को लगातार जीआई टैग मिल रहा है. जीआई टैग लगने के कारण पूर्वांचल की कला और खानपान की विशेष चीजों को सुरक्षित और संरक्षित हो रही है. इस क्रम में सोमवार को वाराणसी का प्रसिद्ध पान और लंगड़ा आम को भी जीआई टैग मिल गया. यह जानकारी दी आई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ रजनीकांत द्वारा दी गई है.
जीआई स्पेशलिस्ट डॉ. रजनीकांत ने बताया कि काशी 4 नए प्रोडक्ट को जीआई टैग मिला है. इसके साथ ही काशी क्षेत्र में कुल 22 और उत्तर प्रदेश में 45 जीआई प्रोडक्ट को जीआई टैग हासिल हो गया है. डॉ रजनीकान्त ने बताया कि नाबार्ड उप्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से उत्तर प्रदेश के 11 उत्पादों को इस वर्ष जीआई टैग प्राप्त हुआ, जिसमें 7 उत्पाद ओडीओपी में भी शामिल है. 4 प्रोडक्ट कृषि एवं उद्यान से संबंधित है, जिनका प्रोडक्शन एरिया काशी है.
बनारसी लंगड़ा आम और बनारस के पान को मिला जीआई टैग
Geographical Indication Tag : सभी देश अपने लोकल प्रोडक्ट के लिए जीआई टैग हासिल कर रहे हैं. जीआई टैग मिलते ही प्रोडक्ट उस देश की बौद्धिक संपदा बन जाती है और उसका पेटेंट मिल जाता है. जीआई टैग वाला प्रोडक्ट पूरी दुनिया में अथॉन्टिक हो जाती है. अब जब बनारसी पान और बनारस के लंगड़ा आम को जीआई टैग मिल गया है तो इसकी मार्केटिंग भी ग्लोबल हो जाएगी.
रजनीकांत ने बताया कि आने वाले 4 महीनों में जीआई टैग हासिल करने वाले सभी 4 उत्पादों में 1000 से अधिक किसानों का रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा. रजिस्ट्रेशन के बाद किसान जीआई टैग का प्रयोग कानूनी रूप से कर सकेंगे और बाजार में नकली उत्पादों पर रोक लगेगी. बता दें कि यूपी के 7 ओडीओपी प्रोडक्ट की जीआई टैग पहले ही मिल चुका है. इस प्रोडक्ट में अलीगढ का ताला, हाथरस की हिंग, मुज्जफरनगर का गुड़, नगीना वुड कार्निंग, बखीरा ब्रासवेयर बांदा शजर पत्थर क्राफ्ट, प्रतापगढ़ का आंवला शामिल है.
क्या होता है जीआई टैग : Geographical Indication Tag यानी GI टैग किसी क्षेत्र विशेष के प्रोडक्ट को उसकी भौगोलिक गुणवत्ता और अन्य खासियत के लिए दी जाती है. जीआई टैग मिलने के बाद प्रोडक्ट और क्षेत्र की विशेषता बौद्धिक संपदा के तौर पर दर्ज हो जाती है. फिर ऐसा माना जाता है कि खास किस्म का प्रोडक्ट उसी संबंधित क्षेत्र में ही मिलेगा. फिर उस पर कोई अन्य क्षेत्र के लोग दावा नहीं कर सकते.