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एलोपैथी, आयुर्वेद पर बहस का कोई मतलब नहीं, दोनों चिकित्सा पद्धति उपयोगी : सारस्वत

बाबा रामदेव और एलोपैथ चिकित्सको के बीच छिड़े विवाद को शांत करने के लिए नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने कहा कि एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर बहस करने का काई मतलब नहीं है. दोनों पद्धति उपयोगी हैं.

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Published : Jun 1, 2021, 9:18 PM IST

नई दिल्ली : जाने-माने वैज्ञानिक और नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने मंगलवार को कहा कि एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर बहस करने का काई मतलब नहीं है, ये दोनों अलग अलग तथा उपयोगी चकित्सा पद्धति हैं. उन्होंने आयुर्वेद को जनता के बीच अधिक स्वीकार्य बनाने के लिये और ज्यादा शोध की आवश्यकता पर जोर दिया.

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defense research and development organization) द्वारा कोविड के इलाज के लिये तेयार दवा के विकास से जुड़े रहे सारस्वत ने यह साफ किया कि डीआरडीओ (DRDO) की औषधि का पतंजलि (Patanjali) से कुछ भी लेना-देना नहीं है. उन्होंने यह बात ऐसी रिपोर्टों के बीच कही है जिसमें कहा गया है कि दवा पतंजलि आयुर्वेद के शोध से जुड़ी है.

बाबा रामदेव ने एलोपैथ पर उठाया था सवाल

नीति आयोग (Niti Aayog) के सदस्य ने उक्त बातें एलोपैथी और आयुर्वेद पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) की योग गुरु रामदेव (yog guru ramdev) के बयान पर जतायी गयी आपत्ति के बीच कही है. रामदेव (ramdev) ने कोविड संक्रमण के इलाज में एलोपैथी की प्रभाविता पर सवाल उठाया था, जिसका आईएमए (IMA) ने पुरजोर विरोध किया. रामदेव पतंजलि आयुर्वेद के संचालन से जुड़े हैं.

सारस्वत ने कहा कि भारत में हजारों साल से पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियां हैं और आयुर्वेदिक दवाएं लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाने के लिये जानी जाती रही हैं. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि आयुर्वेद और एलोपैथी, चिकित्सा की दो धाराएं हैं और साथ-साथ चलती हैं. एक की विशेष भूमिका है, जबकि दूसरे की एक अलग भूमिका है.

'दोनों पद्धति उपयोगी'

एलौपैथी और आयुर्वेद को लेकर कुछ तबकों में जारी विवाद के बीच सारस्वत ने कहा, 'बहस का वास्तव में कोई मतलब नहीं है. दोनों पद्धति उपयोगी हैं.' उन्होंने कहा, 'मेरी राय है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को समाज में अधिक स्वीकार्यता के लिए वैज्ञानिक तौर-तरीकों की समझ को लेकर अधिक से अधिक शोध करना चाहिए, जो एलोपैथी में किया गया है.'

उल्लेखनीय है कि पिछले महीने रामदेव के एलोपैथिक दवाओं. इलाज को लेकर दिये गये बयान को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने 'बेहद दुर्भाग्यपूर्ण' बताया और उनसे बयान वापस लेने को कहा. हर्षवर्धन ने कहा कि इस बयान से कोरोना योद्धाओं के सम्मान को ठेस पहुंचेगी और स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल कमजोर पड़ेगा. इसके बाद रामदेव ने अपने बयान को वापस ले लिया.

'2 डीजी का पतंजलि से कोई लेना-देना नहीं'

यह पूछे जाने पर कि क्या डीआरडीओ द्वारा विकसित कोविड दवा 2-डीजी (2-DG) का संबंध पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurveda) से है, सारस्वत ने कहा, 'बिल्कुल नहीं.' उन्होंने कहा, 'इसका (2-डीजी) पतंजलि से कोई लेना-देना नहीं है. पतंजलि इसके बारे में कुछ नहीं जानती है. यह उनका काम नहीं है.' डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख सारस्वत ने कहा कि जब यह दवा विकसित की गई थी तो वह वैज्ञानिक सलाहकार थे.

उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा, 'जब दवा विकसित की गई थी, तो वह मूल रूप से विकिरण-प्रेरित कैंसर से पीड़ित रोगियों के उपचार में मदद के लिए थी. उस कैंसर के उपचार के लिए हम विकिरण चिकित्सा करते हैं.'

नीति आयोग (Niti Aayog) के सदस्य के अनुसार विकिरण प्रक्रिया के दौरान न केवल कैंसर कोशिकाएं मरती हैं बल्कि स्वस्थ कोशिकाएं भी मरती हैं. इससे मानव शरीर को काफी नुकसान होता है.

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उन्होंने कहा, 'आपको पता है कि कैंसर कोशिकाएं हर समय ऊर्जा चाहती हैं. इसीलिए वे हमारे शरीर से ऊर्जा लेती हैं. हमारा शरीर उन्हें ग्लूकोज के रूप में ऊर्जा देता है. हमने शरीर से ‘शुगर’ लेने के बजाय इंजेक्शन लगाना शुरू कर दिया. यह दवा ग्लूकोज की तरह है लेकिन वास्तव में यह ग्लूकोज नहीं है, इसमें कोई ऊर्जा नहीं है.'

सारस्वत ने कहा कि कैंसर कोशिकाएं दवा को अवशोषित कर लेती हैं और फिर कमजोर होती जाती हैं. उन्होंने कहा कि एक बार जब वे कमजोर हो जाती हैं, तो कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए विकिरण की कम खुराक दी जा सकती है और यह स्वस्थ कोशिकाओं के लिए नुकसानदायक नहीं होगा.

सारस्वत के अनुसार इसी सिद्धांत का उपयोग कोविड संक्रमण के इलाज के लिये किया जा रहा है. डीआरडीओ की 2-डीजी दवा को औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआई) ने मध्यम से गंभीर लक्षण वाले कोरोना वायरस मरीजों में सहायक चिकित्सा के रूप में आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दी है.

(भाषा)

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