हैदराबाद : उत्तराखंड टनल हादसे ने आपदा प्रबंधन में प्रयुक्त होने वाले यंत्रों की पोल खोल दी है. हमारी तैयारी कितनी पुख्ता है और इसमें प्रयुक्त होने वाले मशीन कितने दुरुस्त हैं, इन पर विचार करने का समय है. 16 दिन हो चुके हैं, इसके बावजूद हमलोग 41 मजदूरों को बाहर निकालने में सफल नहीं हुए हैं. अलग-अलग विभागों के विशेषज्ञ वहां मौजूद हैं, फिर भी वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं. खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पूरी स्थिति की निगरानी कर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट प्राप्त कर रहे हैं.
12 नवंबर से मजदूर फंसे हुए हैं. जिस टनल में वे फंसे हुए हैं, वह चार धाम प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इसे इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एंड कॉन्स्ट्रक्शन मोड में तैयार किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट की फंडिंग सड़क परिवहन और हाइवे मंत्रालय कर रहा है. पूरा देश इन मजदूरों के लिए प्रार्थना कर रहा है, ताकि वे सुरक्षित रूप से बाहर निकल सकें.
हालांकि, इस हादसे ने यह सबक जरूर सिखा दिया है कि प्राकृतिक या मानव निर्मित दुर्घटना के बाद हमारी तैयारी कैसी होनी चाहिए. किस तरह का प्रबंधन होना चाहिए, जो ऐसी स्थिति में तत्परता के साथ उससे निपट सके. यह सच है कि आज प्रत्येक राज्य के पास अपना आपदा प्रबंधन विभाग है और उसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन विभाग से समर्थन भी मिलता है. लेकिन जब जरूरत पड़ती है, तभी ये सक्रिय होते हैं. उनके जुड़े विभाग अन्य कारणों की वजह से पंगु हैं.
यह सबको पता है कि गढ़वाल हिमालय का क्षेत्र काफी संवेदनशील और नाजुक है. यह देश के भूकंपीय मानचित्र के जोन पांच में आता है. यहां कई बार भूंकप भी आ चुके हैं. मानसून सीजन में भूस्खलन भी आता है. इसकी वजह से आम जिंदगी भी ठप हो जाती है. अक्टूबर 1991 और 1998 का भूकंप सबको याद है, जिसकी वजह से कई जानें चली गई थी. सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे.
विकासात्मक जरूरतों ने स्थिति का गंभीरता को और अधिक जटिल बना दिया है. गंगा और यमुना, दोनों गढ़वाल रीजन से ही निकलती हैं. योजना बनाने वालों ने यहां पर भी हाइड्रो पावर प्रोडक्शन सेंटर की संभावनाओं पर खूब विचार किया. उसके लिए पिछले कई सालों में यहां पर सैकड़ों सुरंग खोद डाले. इसके लिए पहाड़ों को काटा गया, पहाड़ पर स्लोप तैयार किया गया. 2400 मेगावाट का टिहरी डैम इसका उदाहरण है. इसके चक्कर में यहां पर सालों से रह रहे लोगों को हटाया गया. यहां का पूरा पहाड़ी क्षेत्र डूब गया.