नई दिल्ली :उत्तराखंड के उत्तरकाशी सुरंग ढहने के मामले में बचाव दल को एक बड़ी सफलता मिली है. मंगलवार को बचाव दल ने आखिरकार 6 इंच के पाइप के जरिए फंसे हुए श्रमिकों के साथ बातचीत करने के अलावा संपर्क बनाने में सफलता मिली है. हालांकि वहां फंसे 41 मजदूरों की हालत यथावत पाई गई है. लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि बचावकर्मियों को सुरंग बचाव में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें आवश्यक उपकरण भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए. उनका कहना है कि उनके पास न तो आवश्यक उपकरण हैं और न ही वांछित प्रशिक्षित बचाव दल. साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में विकास की मैदानी क्षेत्रों में विकास के साथ तुलना नहीं की जानी चाहिए.
इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए विशेषज्ञ (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर डॉ. बीके खन्ना ने कहा कि उत्तराखंड में विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में ऐसी घटनाएं हुई हैं और बहुमूल्य जानें गई हैं. बता दें कि 2005-2015 के बीच एनडीएमए का नेतृत्व करने वाले युद्ध के दिग्गज और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन विशेषज्ञ हैं ब्रिगेडियर डॉ. खन्ना.
डॉ. खन्ना ने कहा कि सरकार को उन्हीं ठेकेदारों को ठेका देना चाहिए जिनके पास उपकरण और आपदा की स्थिति में बचाव का तरीका भी पता हो. उन्होंने कहा कि परियोजना की लागत बढ़ जाएगीलेकिन ऐसा ही होगा. उन्होंने कहा कि मानव जीवन के साथ कोई समझौता नहीं. इसके अलावा एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और चयनित फायर ब्रिगेड और सिंचाई के लोगों को सुरंग बचाव में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. मुझे लगता है कि आईआईटी धनबाद सुरंगों सहित बंद वातावरण से बचाव पर पाठ्यक्रम चलाता है. हमारे बचावकर्मियों को सुरंग बचाव में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें आवश्यक उपकरण भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए. वर्तमान में उनके पास न तो आवश्यक उपकरण हैं और न ही वांछित प्रशिक्षित बचावकर्ता हैं. उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों के विकास की तुलना मैदानी क्षेत्रों के विकास से नहीं की जानी चाहिए. पहाड़ी इलाकों की अपनी समस्याएं हैं खासकर युवा हिमालयी पहाड़ों में. मुझे उम्मीद है कि हम अपनी पिछली गलतियों से सीखेंगे.