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उत्तराखंड में CM चेहरे की राजनीति जनता को पसंद नहीं! जानिए क्यों

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Published : Nov 11, 2021, 5:45 PM IST

चुनावी परिणाम काफी हद तक नेतृत्व पर भी निर्भर करते हैं. राजनीतिक पार्टियां कई बार चेहरे पर चुनाव लड़ती हैं. कई बार ऐसा करने से बचती भी हैं. उत्तराखंड में चुनाव नजदीक है. लिहाजा मुख्य राजनीतिक दल किस चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ेंगे इस पर भी चर्चाएं आम हैं. हालांकि, अब तक की स्थिति यह जाहिर करती है कि प्रदेश में किसी चेहरे पर चुनाव उस राजनीतिक दल के लिए शुभ संकेत नहीं होते. उत्तराखंड में चेहरे पर चुनाव को लेकर क्या कहता है राज्य का राजनीतिक इतिहास. पेश है स्पेशल रिपोर्ट.

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देहरादून :देश में नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरा भाजपा को अबतक सत्ता तक पहुंचाने में कामयाब रहा है. देश की राजनीति में इस एक चेहरे की बदौलत भारतीय जनता पार्टी ने कई राजनीतिक रिकॉर्ड भी बनाए हैं. मसलन लोकसभा में प्रचंड बहुमत पाना. लगातार दूसरी बार इस बहुमत को बनाए रखना भी इसमें शामिल है. यह बात जाहिर करती है कि कोई चेहरा कैसे एक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में कामयाब हो सकता है.

राज्यों में भी राजनीतिक पार्टियां इसी तरह कई बार चेहरा घोषित कर इसी तरह सत्ता पाने की कोशिश करती हैं. लेकिन उत्तराखंड में चेहरे की राजनीति शायद जनता को पसंद नहीं है. शायद इसलिए राजनीतिक पार्टियां भी साल 2022 में जीत हासिल करने के लिए चेहरा घोषित करने में कतरा रही हैं.

चेहरे पर चुनाव का उत्तराखंड में इतिहास

उत्तराखंड में चार निर्वाचित सरकारें बन चुकी हैं. इसमें पहली सरकार कांग्रेस बनाने में कामयाब रही है तो दूसरी सरकार भाजपा ने बनाई. इसके बाद भी राज्य में सत्ता का यही क्रम जारी रहा. उत्तराखंड में चेहरे पर चुनाव का पहला कदम भाजपा ने उठाया और ईमानदार छवि वाले भुवन चंद्र खंडूड़ी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया. साल 2012 में 'खंडूड़ी है जरूरी' के नारे के साथ भाजपा ने सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन जिस खंडूड़ी के सहारे भाजपा सत्ता की सीढ़ी चढ़ना चाहती थी, वह भुवन चंद्र खंडूड़ी खुद कोटद्वार की विधानसभा सीट हार गए और भाजपा 1 सीट कम हासिल कर सत्ता से दूर हो गई.

CM चेहरे की राजनीति जनता को पसंद नहीं!

2017 में हरीश रावत का फेस हुआ फुस्स

इसके बाद 2017 में प्रदेश का चुनाव हरीश रावत के इर्द-गिर्द घूमा. चुनाव के दौरान 'रावत पूरे 5 साल' का नारा देकर कांग्रेस ने हरीश रावत के दम पर सरकार बनाने का प्रयास शुरू किया. लेकिन उत्तराखंड में कांग्रेस तो बुरी तरह हारी ही, साथ ही हरीश रावत जिन्होंने पहली बार प्रदेश की दो सीटों- हरिद्वार ग्रामीण सीट और किच्छा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, वो दोनों जगहों से चुनाव हार गए.

इन दो उदाहरणों ने चेहरे पर लगाया ब्रेक

उत्तराखंड की राजनीति में ये दो उदाहरण हैं जब पार्टियों ने किसी एक राजनेता के चेहरे पर चुनाव को जीतने का सपना तो देखा. लेकिन जनता को यह पसंद नहीं आया. शायद यही कारण है कि अब 2022 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल किसी भी चेहरे का नाम घोषित करने से कतरा रहे हैं.

वर्तमान में पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, लिहाजा उनके नेतृत्व को स्वभाविक रूप से माना जा रहा है. लेकिन पार्टी उनके नाम को सीधे तौर पर आगे नहीं रख रही है. उधर कांग्रेस में हरीश रावत कई बार खुद के चेहरे को घोषित करने की बात कह चुके हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान ऐसा नहीं कर रहा. हालांकि, आम आदमी पार्टी इकलौती ऐसी पार्टी है जिसने कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है.

चेहरे पर चुनाव नहीं लड़वाने की ये हैं वजह

उत्तराखंड में राजनीतिक दलों द्वारा चेहरे पर चुनाव लड़ने का रिस्क नहीं लेने की कई वजह रही हैं. इनमें सबसे पहली वजह राजनीतिक दलों में गुटबाजी को माना जाता है. दरअसल, किसी एक नाम पर चुनाव लड़ने से बाकी नेताओं के नाराज होने और गुटबाजी बढ़ने की संभावना रहती है. यही कारण है कि पार्टियां ऐसा करने से बचती हैं.

चेहरा घोषित करने पर भितरघात का डर

किसी एक चेहरे का नाम घोषित होने के बाद उसके विरोध में रहने वाले नेता चुनाव में काम करना बंद कर देते हैं. इसका सीधा असर चुनाव परिणाम पर पड़ता है. इतना ही नहीं, विपक्षी खेमा कई बार पार्टी के खिलाफ ही काम करने लगता है और घोषित किए गए चेहरे को असफल साबित करने के लिए चुनाव में अपनी ताकत का प्रयोग अपनी ही पार्टी के खिलाफ करने लगता है. जब खंडूड़ी हारे थे तब कहा जाता है कि उन्हीं की पार्टी के एक दिग्गज नेता ने उनकी लुटिया डुबोई थी. उस दिग्गज नेता का कहना था कि अगर, 'मैं मुख्यमंत्री नहीं बना तो तुम्हें भी नहीं बनने दूंगा'.

उत्तराखंड में सबको साथ लेकर चलने वाले नेताओं की कमी

प्रदेश में ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है जो बाकी सभी नेताओं को अपने नियंत्रण में रख सके. ऐसा नहीं होने से पार्टी हाईकमान भी चेहरा घोषित करने से बचता है. यही नहीं किसी चेहरे का जनता के बीच करिश्माई असर भी नहीं होने के चलते पार्टी चेहरा घोषित नहीं करती.

जातीय समीकरण बिगड़ने का खौफ

एक चेहरा घोषित होने से जातीय समीकरण भी बिगड़ने की संभावना रहती है. उत्तराखंड की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण जातीय समीकरण बिगड़ जाता है. लिहाजा चुनाव से पहले कोई भी पार्टी इस मामले पर पत्ते खोले बिना चुनाव में जाना पसंद करती है.

क्या कहती है बीजेपी

इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी के नेता कहते हैं कि भाजपा हमेशा संयुक्त प्रयासों पर ही विश्वास करती है. चेहरे को लेकर हाईकमान ही किसी भी रूप में फैसला लेता है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विनोद सुयाल कहते हैं कि पार्टी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के नेतृत्व में इस बार चुनाव लड़ने वाली है और संयुक्त प्रयासों से ही पार्टी सत्ता में वापसी करेगी.

कांग्रेस का आकलन भी समझिए

उत्तराखंड कांग्रेस में हरीश रावत कई बार खुद के चेहरे को घोषित करने के लिए हाईकमान से कह चुके हैं, लेकिन उनकी इस दरख्वास्त के बीच में विरोधी दल भी मोर्चा खोले रखते हैं. शायद यही कारण है कि पार्टी हाईकमान भी हरीश रावत पर दांव खेलकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता. इस मामले पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल कहते हैं कि उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव में काम की बदौलत लोगों से वोट मांगेगी. चेहरे के फेर में न पड़कर विकास के नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा.

आम आदमी पार्टी को कर्नल पर पूरा विश्वास

आम आदमी पार्टी ही प्रदेश में अभी एकमात्र पार्टी है, जिसने कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है. उनका मानना है कि कर्नल की साफ छवि और प्रदेश के लिए उनके किये बेहतरीन कार्यों की वजह से जनता उनको सम्मान देती है और वो एक अच्छे मुख्यमंत्री साबित होंगे. पार्टी नेता संजय भट्ट कहते हैं कि जनता को एक ईमानदार चेहरा देकर पार्टी ने अपने मकसद को जाहिर कर दिया है और पार्टी कर्नल कोठियाल की बदौलत बेहतर प्रदर्शन करने जा रही है.

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