देहरादून :देश में नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरा भाजपा को अबतक सत्ता तक पहुंचाने में कामयाब रहा है. देश की राजनीति में इस एक चेहरे की बदौलत भारतीय जनता पार्टी ने कई राजनीतिक रिकॉर्ड भी बनाए हैं. मसलन लोकसभा में प्रचंड बहुमत पाना. लगातार दूसरी बार इस बहुमत को बनाए रखना भी इसमें शामिल है. यह बात जाहिर करती है कि कोई चेहरा कैसे एक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में कामयाब हो सकता है.
राज्यों में भी राजनीतिक पार्टियां इसी तरह कई बार चेहरा घोषित कर इसी तरह सत्ता पाने की कोशिश करती हैं. लेकिन उत्तराखंड में चेहरे की राजनीति शायद जनता को पसंद नहीं है. शायद इसलिए राजनीतिक पार्टियां भी साल 2022 में जीत हासिल करने के लिए चेहरा घोषित करने में कतरा रही हैं.
चेहरे पर चुनाव का उत्तराखंड में इतिहास
उत्तराखंड में चार निर्वाचित सरकारें बन चुकी हैं. इसमें पहली सरकार कांग्रेस बनाने में कामयाब रही है तो दूसरी सरकार भाजपा ने बनाई. इसके बाद भी राज्य में सत्ता का यही क्रम जारी रहा. उत्तराखंड में चेहरे पर चुनाव का पहला कदम भाजपा ने उठाया और ईमानदार छवि वाले भुवन चंद्र खंडूड़ी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया. साल 2012 में 'खंडूड़ी है जरूरी' के नारे के साथ भाजपा ने सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन जिस खंडूड़ी के सहारे भाजपा सत्ता की सीढ़ी चढ़ना चाहती थी, वह भुवन चंद्र खंडूड़ी खुद कोटद्वार की विधानसभा सीट हार गए और भाजपा 1 सीट कम हासिल कर सत्ता से दूर हो गई.
2017 में हरीश रावत का फेस हुआ फुस्स
इसके बाद 2017 में प्रदेश का चुनाव हरीश रावत के इर्द-गिर्द घूमा. चुनाव के दौरान 'रावत पूरे 5 साल' का नारा देकर कांग्रेस ने हरीश रावत के दम पर सरकार बनाने का प्रयास शुरू किया. लेकिन उत्तराखंड में कांग्रेस तो बुरी तरह हारी ही, साथ ही हरीश रावत जिन्होंने पहली बार प्रदेश की दो सीटों- हरिद्वार ग्रामीण सीट और किच्छा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, वो दोनों जगहों से चुनाव हार गए.
इन दो उदाहरणों ने चेहरे पर लगाया ब्रेक
उत्तराखंड की राजनीति में ये दो उदाहरण हैं जब पार्टियों ने किसी एक राजनेता के चेहरे पर चुनाव को जीतने का सपना तो देखा. लेकिन जनता को यह पसंद नहीं आया. शायद यही कारण है कि अब 2022 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल किसी भी चेहरे का नाम घोषित करने से कतरा रहे हैं.
वर्तमान में पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, लिहाजा उनके नेतृत्व को स्वभाविक रूप से माना जा रहा है. लेकिन पार्टी उनके नाम को सीधे तौर पर आगे नहीं रख रही है. उधर कांग्रेस में हरीश रावत कई बार खुद के चेहरे को घोषित करने की बात कह चुके हैं, लेकिन पार्टी हाईकमान ऐसा नहीं कर रहा. हालांकि, आम आदमी पार्टी इकलौती ऐसी पार्टी है जिसने कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है.
चेहरे पर चुनाव नहीं लड़वाने की ये हैं वजह
उत्तराखंड में राजनीतिक दलों द्वारा चेहरे पर चुनाव लड़ने का रिस्क नहीं लेने की कई वजह रही हैं. इनमें सबसे पहली वजह राजनीतिक दलों में गुटबाजी को माना जाता है. दरअसल, किसी एक नाम पर चुनाव लड़ने से बाकी नेताओं के नाराज होने और गुटबाजी बढ़ने की संभावना रहती है. यही कारण है कि पार्टियां ऐसा करने से बचती हैं.
चेहरा घोषित करने पर भितरघात का डर