आसनसोल:उत्तरकाशी में सुरंग ढहने की घटना से पश्चिम बंगाल के रानीगंज में महावीर खदान में हुई लगभग ऐसी ही घटना की यादें ताजा हो गई हैं. रानीगंज की घटना करीब तीन दशक पहले हुई थी. दोनों घटनाओं के बीच एक विचित्र समानता है जो प्रकृति में लगभग समान हैं. रानीगंज की घटना के तीन दशक से अधिक समय बीत गए हैं लेकिन ऐसी घटना को लेकर देश के खदानों में मजदूरों की सुरक्षा पर एक फिर से चर्चा शुरू हो गई है. हम बात कर रहे हैं 13 नवंबर 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महावीर खदान की, जिसमें 64 खनिक फंस गये थे.
गौरतलब है कि 12 नवंबर को उत्तरकाशी यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सुरंग ढह जाने से कम से कम 40 मजदूर फंस गए. एक कठिन बचाव अभियान में महावीर खदान से 64 खदान श्रमिकों को बचाया गया. दिवाली से एक दिन पहले शनिवार को उत्तरकाशी की घटना सामने आने के बाद अधिकारियों में चिंता फैल गई. इसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बचाव प्रयास की स्थिति जानने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को फोन करने के लिए प्रेरित किया.
पीछे मुड़कर देखें तो 1989 में रानीगंज की महावीर खदान में नाइट शिफ्ट का काम चल रहा था. खनन सेक्शन 21 और 42 में काम करने वाले श्रमिकों को दो खंडों में क्रमशः 61 और 10 की संख्या में विभाजित किया गया था. जब वे डायनामाइट विस्फोट कर खुदाई कर रहे थे तो पानी सुरंग में प्रवेश कर गया. ब्रिटिश काल की एक खाली खदान की दीवारें जो महावीर खदान के करीब थी, इसमें पानी जमा हो गया और ढह गई जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटना हुई.
परिणामस्वरूप लगभग 11 लाख गैलन पानी महावीर खदान के अंदर घुस गया और दीवार के पास खड़े छह खनिकों को बहा ले गया. उनके शव काफी देर बाद बरामद हुए. कुछ खदान श्रमिक भाग्यशाली थे जो बच गए लेकिन 65 अन्य खदान के अंदर फंस गए. जैसे उत्तराखंड में सुरंग के अंदर 40 श्रमिक फंस गए.
साहसिक बचाव अभियान:खदान से बाहर आए मजदूरों ने कालकोठरी जैसी सुरंग के अंदर की डरावनी कहानियां साझा की. घटना के बाद उन्होंने खदान के अंदर एक ऊंचे स्थान पर शरण ली. जहां चारों ओर पानी था और उन्हें जान बचाने के लिए भागना पड़ रहा था. खदान के अंदर घने अंधेरे में खनिक इधर-उधर भाग रहे थे.