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उत्तराखंड सुरंग हादसा से 34 साल पुरानी प. बंगाल की घटना की यादें ताजा हुई

उत्तराखंड में सुरंग ढहने की घटना और 34 साल पहले पश्चिम बंगाल के रानीगंज में हुई घटना में काफी समानता देखी गई. इस घटना से खदानों में असहाय श्रमिकों की सुरक्षा के बारे में एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है.

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 13, 2023, 2:25 PM IST

Updated : Nov 13, 2023, 6:50 PM IST

Etv BhUttarakhand tunnel collapse brings back chilling memories of Raniganj mining mishap happened 34 years agoarat
Etv Bharatउत्तराखंड सुरंग हादसा से 34 साल पुरानी प. बंगाल के रानीगंज की घटना की यादें ताजा हो गईं

आसनसोल:उत्तरकाशी में सुरंग ढहने की घटना से पश्चिम बंगाल के रानीगंज में महावीर खदान में हुई लगभग ऐसी ही घटना की यादें ताजा हो गई हैं. रानीगंज की घटना करीब तीन दशक पहले हुई थी. दोनों घटनाओं के बीच एक विचित्र समानता है जो प्रकृति में लगभग समान हैं. रानीगंज की घटना के तीन दशक से अधिक समय बीत गए हैं लेकिन ऐसी घटना को लेकर देश के खदानों में मजदूरों की सुरक्षा पर एक फिर से चर्चा शुरू हो गई है. हम बात कर रहे हैं 13 नवंबर 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महावीर खदान की, जिसमें 64 खनिक फंस गये थे.

गौरतलब है कि 12 नवंबर को उत्तरकाशी यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सुरंग ढह जाने से कम से कम 40 मजदूर फंस गए. एक कठिन बचाव अभियान में महावीर खदान से 64 खदान श्रमिकों को बचाया गया. दिवाली से एक दिन पहले शनिवार को उत्तरकाशी की घटना सामने आने के बाद अधिकारियों में चिंता फैल गई. इसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बचाव प्रयास की स्थिति जानने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को फोन करने के लिए प्रेरित किया.

पीछे मुड़कर देखें तो 1989 में रानीगंज की महावीर खदान में नाइट शिफ्ट का काम चल रहा था. खनन सेक्शन 21 और 42 में काम करने वाले श्रमिकों को दो खंडों में क्रमशः 61 और 10 की संख्या में विभाजित किया गया था. जब वे डायनामाइट विस्फोट कर खुदाई कर रहे थे तो पानी सुरंग में प्रवेश कर गया. ब्रिटिश काल की एक खाली खदान की दीवारें जो महावीर खदान के करीब थी, इसमें पानी जमा हो गया और ढह गई जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटना हुई.

परिणामस्वरूप लगभग 11 लाख गैलन पानी महावीर खदान के अंदर घुस गया और दीवार के पास खड़े छह खनिकों को बहा ले गया. उनके शव काफी देर बाद बरामद हुए. कुछ खदान श्रमिक भाग्यशाली थे जो बच गए लेकिन 65 अन्य खदान के अंदर फंस गए. जैसे उत्तराखंड में सुरंग के अंदर 40 श्रमिक फंस गए.

साहसिक बचाव अभियान:खदान से बाहर आए मजदूरों ने कालकोठरी जैसी सुरंग के अंदर की डरावनी कहानियां साझा की. घटना के बाद उन्होंने खदान के अंदर एक ऊंचे स्थान पर शरण ली. जहां चारों ओर पानी था और उन्हें जान बचाने के लिए भागना पड़ रहा था. खदान के अंदर घने अंधेरे में खनिक इधर-उधर भाग रहे थे.

वे अपनी अंगुलियां भी नहीं देख पा रहे थे. फंसे हुए खनिकों के लिए एकमात्र उम्मीद की किरण एक टेलीफोन लाइन थी जो उन्हें बाहर के अधिकारियों से संपर्क करने में मदद करती थी. श्रमिकों ने तुरंत अपनी आपबीती साझा की, जबकि वे अभी भी एक अंधेरे कक्ष जैसी खदान में फंसे हुए थे और उनके बचने की लगभग कोई उम्मीद नहीं थी.

आईसीएल (ICL) के कुशल सर्वेक्षणकर्ताओं का एक समूह, जिन्हें इसमें शामिल किया गया था, कार्रवाई में जुट गए. 13 नवंबर को एक बोरहोल खोदा गया. इसके माध्यम से श्रमिकों की आवाज सुनी गयी. भोजन और पानी की आपूर्ति की गई. धनबाद से एक विशेष बचाव दल लाया गया लेकिन बचाव दल ने हाथ में आने वाले असंभव कार्य के बारे में सोचकर लगभग हार मान ली. पानी से भरी खदान से बचाए गए सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड वाले विशेषज्ञों को भी भयावह अनुभव हुआ.

तभी इंजीनियर जेएस गिल मौके पर पहुंचे. उन्होंने एक विशेष कैप्सूल बनाकर मिट्टी के अंदर डालने का सुझाव दिया ताकि एक-एक करके मजदूरों को बचाया जा सके. इसी तरह आईसीएल की नियामतपुर वर्कशॉप के मजदूरों ने 14 नवंबर की रात लोहे की चादरों से कैप्सूल बनाना शुरू किया. 15 नवंबर की रात कैप्सूल आ गया. गिल ने अंदर जाने का जोखिम भरा उठाने की इच्छा व्यक्त की.

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हाथ में कैप्सूल लेकर वह रात के अंधेरे में श्रमिकों को बचाने के लिए छेद में घुस गए. कुछ समय बाद, दूसरों की जय-जयकार के बीच खनिक एक-एक करके जमीन पर आने लगे. धीरे-धीरे सभी 65 श्रमिकों की जान एक साहसी बचाव अभियान के तहत बचा ली गई जो देश के संदर्भ में लगभग अनसुना था. गिल ने अपनी सावधानीपूर्वक योजना और ऑपरेशन के निष्पादन के कारण एक नायक का दर्जा प्राप्त किया. बाद में महाकाव्य बचाव पर आधारित 'मिशन रानीगंज' नामक एक बॉलीवुड फिल्म ने धूम मचा दी.

Last Updated : Nov 13, 2023, 6:50 PM IST

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