लखनऊ : श्रावस्ती के रहने वाले अंकित महज 21 साल के हैं. उनका पूरा परिवार श्रावस्ती में रहता है. मम्मी-पापा, भाई-बहन और पत्नी घर पर हैं. कमाई का जरिया खेती किसानी है और अंकित की नौकरी है. इसी नौकरी के सिलसिले में घर-परिवार छोड़कर पिछले एक साल से काम कर रहे थे. टनल में 17 दिनों तक जिंदगी से जद्दोजहद के दौरान कई बार अंकित का विश्वास डगमगाया, लेकिन घर-परिवार के साथ देशवासियों की दुआओं का असर रहा कि चमत्कार हुआ और सभी सुरक्षित निकले. अंकित ने "ईटीवी भारत" से टनल में गुजारे दिनों के संघर्ष की आपबीती साझा की.
...ऐसा लगा कि बाहर नहीं आ पाएंगे : अंकित बताते हैं कि श्रावस्ती के लगभग 30 लोग इस कंपनी में काम करते हैं. डे नाइट की शिफ्ट लगती है. नाइट ड्यूटी के दौरान श्रावस्ती के छह लोग सुरंग में फंस गए थे, जो बच गए वह घर चले गए थे. दो-तीन दिन तक तो कोई उम्मीद ही नहीं बची थी कि हम बाहर निकल पाएंगे. कुछ दिन बाद जब पता चला कि बाहर काम शुरू हो गया है. मशीनों से काम चालू हो गया है. जब बातचीत होने लगी और भरोसा दिया जाने लगा कि बहुत जल्द आपको बाहर निकाल लिया जाएगा तो थोड़ा बहुत विश्वास बढ़ा कि अब हम लोग भी बाहर निकाल सकते हैं. जब मशीन बार-बार खराब होने की खबर आने लगी तो झटका लग रहा था. जब मशीन चालू हो जाती थी तो उम्मीद जाग जाती थी. कभी बताया जाता था कि मशीन से प्रेशर नहीं बन पा रहा है, खोदाई नहीं हो पा रही तो ऐसा लगता था कि अब नहीं निकल पाएंगे. टनल में फंसे हुए पहली बार छह दिन बाद पत्नी से बात हुई थी. पत्नी बहुत ज्यादा परेशान थी. बहुत बीमार हो गई थी. दवा शुरू हो गई थी. मैंने उसे समझाया कि टेंशन बिल्कुल मत लो. अभी फंसे हुए हैं, लेकिन हम जरूर बाहर निकल आएंगे. हमारे साथ केंद्र और उत्तराखंड सरकार है. तेजी से काम कराया जा रहा है.
पीने और फ्रेश होने के लिए एक ही पाइप से आता था पानी :अंकित बताते हैं कि टनल के अंदर फ्रेश होने के लिए बाहर से पानी टपकता था. वही पीने और फ्रेश होने के लिए इस्तेमाल होता था. 10 दिनों तक ऐसे चलता रहा. बाद में जब छह इंच का पाइप आया तो उसमें फ्रेश होने के लिए टूथब्रश, अंडरवियर चेंज करने के लिए कपड़े भी आए. इसके बाद सब कुछ मिलने लगा. खाने के लिए फल भी आए और ड्राई फ्रूट भी. इस तरह की व्यवस्था से किसी का स्वास्थ्य खराब नहीं हुआ. उम्मीद तो हम सभी को थी कि हम लोग निकल जरूर बाहर जाएंगे, लेकिन जब दिन ज्यादा लग रहे थे तो उम्मीद धूमिल होती जा रही थी.