देहरादून: 'हिंदुस्तान अपने मुल्क वापस जाना है तो हमें ढेर सारे डॉलर देने होंगे वरना तुम्हें जहन्नुम पहुंचाने में देर नहीं लगेगी...नहीं माई बाप! हम अपनी पूरी कमाई आपको देने को तैयार हैं, बस आप लोग हमें बख्श दें...तो ठीक है 60,000 अमेरिकन डॉलर जितनी जल्दी हो सके सामने पेश करो...तभी सांसें बख्शी जाएंगी.' ये किसी फिल्म का डायलॉग नहीं है, बल्कि आतंक की सच्ची कहानी है, जो अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों के साथ घटित हो रही है.
दरअसल, अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में फंसे भारतीय के साथ तालिबानी ये सब कर रहे हैं. एक हफ्ते से अधिक वक्त से सैकड़ों की तादाद में एक ही कमरे में नरक से बदतर जिंदगी जी रहे भूखे प्यासे भारतीयों की जिंदगी अब तालिबानियों के रहमों करम पर टिकी है. ये सारी जानकारी अफगानिस्तान से देहरादून लौटे अजय छेत्री ने ईटीवी भारत से साझा की है.
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अफगानिस्तान के नाटो और अमेरिकी सेना के साथ पिछले 12 वर्षों से काम कर रहे अजय छेत्री ने अपनी जिंदगी के सबसे बुरे अनुभव को साझा करते हुए बताया कि वो उन खुशकिस्मत लोगों में से हैं जो ऐसे हालातों में भी वापस देश लौट सके हैं. बीती 17 अगस्त को भारतीय वायुसेना ने जांबाजी दिखाते हुए अफगानिस्तान स्थित इंडियन एंबेसी से 120 लोगों की टीम के साथ अजय को रेस्क्यू कर देहरादून उनके घर पहुंचाया है.
तालिबान के कब्जे के बाद लोगों की जिंदगी बनी नर्क
काबुल में खूनी तांडव के बीच से बमुश्किल जीवन बचाकर घर पहुंचने के बाद अजय छेत्री भारत सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि अफगानिस्तान में फंसे बाकी भारतीय लोगों को किसी भी तरह रेस्क्यू कर देश वापस लाया जाए, क्योंकि वहां हर पल उनकी जिंदगी नर्क से बदतर होती जा रही है, उम्मीद दम तोड़ रही है और भूख प्यास और दहशत से उनकी सांसें कम होती जा रही हैं.
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अजय के मुताबिक, जो लोग काबुल में बाहरी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे तालिबान का कब्जा होते ही उनके संचालक वहां से भागकर अपने देश जा चुके हैं. ऐसे में उन कंपनियों में काम करने वाले हजारों भारतीय लोगों को रेस्क्यू कर बचाने वाला वहां कोई नहीं है. होटलों में छोटे-छोटे कमरे लेकर 100 से अधिक लोग बिना खाए-पीए-सोए जिंदगी बचाने की भीख मांग रहे हैं.