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अफगानिस्तान से लौटे भारतीय की आपबीती, 'तालिबान को 60 हजार डॉलर देकर बचाई जान'

अफगानिस्तान की मुश्किल परिस्थितियों से बचकर सुरक्षित भारत आए उत्तराखंड के रहने वाले अजय छेत्री ने अपनी पूरी कहानी ईटीवी भारत को बताई. कैसे उन्हें तालिबानियों ने रोका और किस तरह 60,000 अमेरिकन डॉलर देकर भारतीयों ने अपनी जान बचाई.

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Published : Aug 21, 2021, 9:09 PM IST

देहरादून: 'हिंदुस्तान अपने मुल्क वापस जाना है तो हमें ढेर सारे डॉलर देने होंगे वरना तुम्हें जहन्नुम पहुंचाने में देर नहीं लगेगी...नहीं माई बाप! हम अपनी पूरी कमाई आपको देने को तैयार हैं, बस आप लोग हमें बख्श दें...तो ठीक है 60,000 अमेरिकन डॉलर जितनी जल्दी हो सके सामने पेश करो...तभी सांसें बख्शी जाएंगी.' ये किसी फिल्म का डायलॉग नहीं है, बल्कि आतंक की सच्ची कहानी है, जो अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों के साथ घटित हो रही है.

दरअसल, अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में फंसे भारतीय के साथ तालिबानी ये सब कर रहे हैं. एक हफ्ते से अधिक वक्त से सैकड़ों की तादाद में एक ही कमरे में नरक से बदतर जिंदगी जी रहे भूखे प्यासे भारतीयों की जिंदगी अब तालिबानियों के रहमों करम पर टिकी है. ये सारी जानकारी अफगानिस्तान से देहरादून लौटे अजय छेत्री ने ईटीवी भारत से साझा की है.

अफगानिस्तान से लौटे एक भारतीय की आपबीती

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अफगानिस्तान के नाटो और अमेरिकी सेना के साथ पिछले 12 वर्षों से काम कर रहे अजय छेत्री ने अपनी जिंदगी के सबसे बुरे अनुभव को साझा करते हुए बताया कि वो उन खुशकिस्मत लोगों में से हैं जो ऐसे हालातों में भी वापस देश लौट सके हैं. बीती 17 अगस्त को भारतीय वायुसेना ने जांबाजी दिखाते हुए अफगानिस्तान स्थित इंडियन एंबेसी से 120 लोगों की टीम के साथ अजय को रेस्क्यू कर देहरादून उनके घर पहुंचाया है.

तालिबान के कब्जे के बाद लोगों की जिंदगी बनी नर्क

काबुल में खूनी तांडव के बीच से बमुश्किल जीवन बचाकर घर पहुंचने के बाद अजय छेत्री भारत सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं कि अफगानिस्तान में फंसे बाकी भारतीय लोगों को किसी भी तरह रेस्क्यू कर देश वापस लाया जाए, क्योंकि वहां हर पल उनकी जिंदगी नर्क से बदतर होती जा रही है, उम्मीद दम तोड़ रही है और भूख प्यास और दहशत से उनकी सांसें कम होती जा रही हैं.

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अजय के मुताबिक, जो लोग काबुल में बाहरी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे तालिबान का कब्जा होते ही उनके संचालक वहां से भागकर अपने देश जा चुके हैं. ऐसे में उन कंपनियों में काम करने वाले हजारों भारतीय लोगों को रेस्क्यू कर बचाने वाला वहां कोई नहीं है. होटलों में छोटे-छोटे कमरे लेकर 100 से अधिक लोग बिना खाए-पीए-सोए जिंदगी बचाने की भीख मांग रहे हैं.

60 हजार अमेरिकन डॉलर वसूल कर तालिबानियों ने छोड़ा

अजय छेत्री ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए बताया कि वो भले ही वापस आ गए हों, लेकिन उनकी आत्मा अपने उन तमाम भारतीय और उत्तराखंड निवासी लोगों के लिए तड़प रही है, जिनको अभी भी काफी संख्या में तालिबानियों ने नजरबंद कर रखा है.

अजय के मुताबिक, उनके एक दोस्त विकास थापा (जो मूल रूप से देहरादून के रहने वाले हैं) और उनकी कंपनी के कई लोगों को तालिबानियों ने रिहा करने के एवज में 60 हजार अमेरिकन डॉलर की डिमांड की थी. ऐसे में विकास थापा सहित कई लोगों की जिंदगी बचाने के लिए उनकी कंपनी के लोगों ने पैसा इकट्ठा कर तालिबानी लोगों को 60 हजार अमेरिकन डॉलर दिए.

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अजय बताते हैं कि उनके दोस्त विकास से फोन पर बातचीत हुई तो पता चला कि पैसा वसूलने के बाद तालिबानियों ने उन्हें बाकायदा अमेरिकन बेस कैंप के अंदर तक छोड़ा, जिसके चलते अब उम्मीद बढ़ गई है कि जो लोग अमेरिकन-नाटो मिलिट्री बेस कैंप के अंदर आ गए हैं, उन्हें रेस्क्यू कर भारत लाने की कार्रवाई की जा सकती है.

चीख-चीखकर जिंदगी की भीख मांग रहे लोग

अफगानिस्तान से लंबी जद्दोजहद के बाद देहरादून घर पहुंचे अजय छेत्री बताते हैं कि अमेरिकी वायुसेना एयरपोर्ट पर अफगानिस्तान के लोगों का खुद को बचाने के लिए भागना और उन्हें प्लेन में लटकते हुए देखना बेहद दुखद है. वो लोग सबसे ज्यादा खौफजदा इसलिए भी थे, क्योंकि वो अमेरिकन नाटो सेना के बेस कैंप के बाहर काम करते थे. ऐसे में तालिबानियों द्वारा उनको सबसे पहले बंदूक का निशाना बनाने की बात सामने आई थी.

हजारों जूते-चप्पल और बिखरा था सामना

अजय छेत्री बताते हैं कि, वो लोग अमेरिकन नाटो सेना के बेस कैंप में सबसे अधिक सुरक्षित जगह पर थे लेकिन बाहर मौत का तांडव इस कदर चारों ओर फैला हुआ था कि उनको भी रेस्क्यू करने में विदेशी सेना को बैकफुट पर आना पड़ा. हालांकि, जब इंडियन एयर फोर्स के विमान द्वारा भारतीय दूतावास की आखिरी टीम के साथ उन लोगों को रेस्क्यू किया गया. तब उन लोगों ने US मिलिट्री एयरपोर्ट पर हजारों चप्पल-जूते और अन्य सामान बिखरा देखा, जो दहशतगर्दी की इंतेहा बयां कर रहा था.

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