देहरादून:जोशीमठ के एक बड़े हिस्से में लगातार आ रही दरारों को लेकर न केवल उत्तराखंड सरकार बल्कि, केंद्र सरकार भी बेहद चिंतित है. चिंता इस बात की होने लगी है कि जोशीमठ में जो दरारें आ रही हैं और लोगों में भय पैदा हो रहा है, यह सिलसिला कब खत्म होगा? कहीं जोशीमठ की तरह पहाड़ के कई दूसरे नगरों का अस्तित्व खतरे में तो नहीं पड़ जाएगा. इन सबके बीच राज्य सरकार अब पहाड़ों के नगरों की धारण क्षमता को लेकर तेजी से काम में जुट गई है.
केंद्र और राज्य सरकार ने अधिकारियों को यह निर्देशित किया है कि वो उत्तराखंड के प्रमुख नगरों और शहरों पर जल्द से जल्द अध्ययन करें, जो उत्तराखंड की विरासत और पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं. जोशीमठ के बाद अगर कोई शहर राज्य सरकार को टेंशन में डाल रहा है तो वो पहाड़ों की रानी मसूरी है. क्योंकि, मसूरी में लगातार इमारतें खड़ी हो रही हैं. इसके अलावा लोगों को बोझ भी बढ़ा है. लिहाजा, अब राज्य सरकार मसूरी की धारण क्षमता और उसकी सुरक्षा उपाय को लेकर बड़ी प्लानिंग में जुट गई है.
मसूरी का ब्लू प्रिंट हो रहा तैयार: उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू मसूरी को लेकर लगातार अधिकारियों से बैठक कर रहे हैं. तीन दिनों में दो बार मसूरी को लेकर अधिकारियों के साथ चर्चा की जा चुकी है. राज्य सरकार ने सीएस को यह निर्देशित किया है कि वो एनजीटी के साथ मिलकर मसूरी की धारण क्षमता और सुरक्षा उपाय को लेकर तेजी से काम करें. राज्य सरकार ने मसूरी को लेकर बाकायदा एक टीम भी गठित कर दी है. जिसमें एनजीटी के अधिकारी, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् समेत 9 लोग शामिल हैं. यह टीम लगातार मसूरी को लेकर आगामी प्लानिंग में जुट गई है.
दरअसल, उत्तराखंड सरकार जानती है कि हरिद्वार, नैनीताल, मसूरी और ऋषिकेश राज्य के प्रमुख शहर हैं, जहां पर सबसे ज्यादा पर्यटकों की आवाजाही रहती है. मसूरी में बर्फबारी हो या गर्मी का सीजन, पहाड़ों की रानी मसूरी हमेशा सैलानियों से पैक रहती है. ऐसे में अब मसूरी में सुरक्षा उपाय, यातायात प्रबंधन और लोगों के ठहरने से लेकर साफ-सफाई और ड्रेनेज सिस्टम को कैसे दुरुस्त किया जाए. इसे लेकर एक ब्लू प्रिंट तैयार किया जा रहा है. ताकि मसूरी में भी जोशीमठ जैसे हालात न बने.
मसूरी को लेकर अब तक जितने भी अध्ययन हुए हैं, उन सभी की फाइलों को राज्य सरकार ने दोबारा से खोलना शुरू कर दिया है. राज्य सरकार तमाम अध्ययनों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान ने मसूरी को लेकर जितना भी काम किया है और जो भी रायशुमारी मसूरी को लेकर दी गई है, उस पर तेजी से काम किया जाए. सीएस ने भी एनजीटी की ओर से मांगे गए सभी प्रकार के अध्ययनों को पूरा कर रिपोर्ट देने को कहा है.
मसूरी के प्रति गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्य सचिव के साथ सुप्रीम कोर्ट के मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य सचिव एमसी घिल्डियाल, वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक आरके सुधांशु, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, कुमाऊं विश्वविद्यालय, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र अहमदाबाद और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैकेनिकल बेंगलुरु के साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अब मसूरी को लेकर तेजी से काम में जुट गए हैं.
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एनजीटी मसूरी को लेकर दे चुकी है रिपोर्ट: मसूरी में जिन जगहों पर दरारें आ रही है या अत्यधिक पहाड़ पर दबाव महसूस हो रहा है. उसे लेकर पहले भी एनजीटी अपनी रिपोर्ट दे चुकी है. यह रिपोर्ट साल 1998 से लेकर 2011 और 2018 के बीच में शासन को भेजी जा चुकी है, लेकिन इस पर अभी तक कोई एक्शन नहीं हुआ. अब मसूरी में झील प्रकरण हो या जोशीमठ में दरारों के आने के बाद राज्य सरकार इस मामले में तेजी से काम कर रही है.
मसूरी में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जो बेहद संवेदनशील हैं. जिसमें किंक्रेग लाल बहादुर शास्त्री के ऊपरी क्षेत्र को फ्रीज जोन घोषित किया गया है. यहां पर सिर्फ आवासीय श्रेणी में 100 वर्ग मीटर तक ही निर्माण की अनुमति है. वहीं, फ्रीज जोन के बाहर डिनोटिफाइड वन विभाग के क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर तक आवासीय निर्माण किया जा सकता है. साल 1980 से पहले बने इस स्थान पर मकानों और इमारतों को सिर्फ मरम्मत के लिए छेड़ा जा सकता है.
यहां कोई भी नया निर्माण नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद भी लगातार क्षेत्र में अपनी मनमर्जी से इमारतों को बनाने का सिलसिला लगातार जारी है. हालांकि, खानापूर्ति के लिए संबंधित विभाग एमडीडीए कई बार एक या दो इमारतों में सील तो लगा देता है, लेकिन उसके बाद फिर से काम शुरू हो जाता है. यही कारण है कि एनजीटी भी एमडीडीए के काम पर कई बार सवाल खड़े कर चुका है.
ये हैं मसूरी के असली दुश्मनः ऐसा नहीं है कि सिर्फ एनजीटी ने ही मसूरी को लेकर सवाल खड़े किए हों. बल्कि, कई वैज्ञानिकों की चेतावनी और इससे पूर्व की घटनाओं ने भी इस बात की तस्दीक की है कि पहाड़ों के नीचे होने वाली हलचल खूबसूरत मसूरी के लिए ठीक नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा कहते हैं कि मसूरी में जिस तरह से बीते कुछ सालों से अंधाधुंध निर्माण हुआ है या फिर निर्माण के बाद कमाने की होड़ के चक्कर में यात्रियों को जहां-तहां ठहरा जा रहा है, यह बिल्कुल ठीक नहीं है.
राजीव बहुगुणा कहते हैं लोग यह नहीं समझ रहे हैं कि चाहे वो जोशीमठ हो या मसूरी, अभी ये पहाड़ बेहद कम उम्र के हैं. यह ठीक उसी तरह से है कि किसी बच्चे के कमर पर अत्यधिक वजन रख दिया जाए तो वो ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाएगा. इन पहाड़ों का हाल ठीक ऐसा ही है. अंधाधुंध इमारतें और प्रोजेक्ट इन पहाड़ों के लिए किसी भी सूरत में ठीक नहीं है.