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उत्तराखंड में जातीय समीकरण से 'खेला' करने की जुगत में BJP, तलाश रही ब्राह्मण चेहरा

खबर है कि भाजपा पहाड़ से किसी ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है. ऐसा करके भाजपा प्रदेश में जातीय समीकरण साधने की कोशिश कर रही है. पढे़ं पूरी खबर...

उत्तराखंड में जातीय समीकरण
उत्तराखंड में जातीय समीकरण

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Published : Jul 31, 2021, 10:40 PM IST

देहरादून:उत्तर प्रदेश में इनदिनों ब्राह्मणों पर सियासी घमासान जारी है. बहुजन समाज पार्टी से शुरू हुई यह राजनीति अब प्रदेश के हर दल का केंद्र बिंदु बन गई है. उत्तराखंड में भी भाजपा से कुछ ऐसी चर्चाएं सामने आई हैं जो ब्राह्मण जाति को साधने से जुड़ी है. दरअसल, खबर है कि भाजपा पहाड़ के किसी ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपना चाहती है. लिहाजा प्रदेश की राजनीति में गढ़वाल क्षेत्र से ब्राह्मण चेहरे को लेकर कयास बाजी शुरू हो गई है.

अध्यक्ष पद के लिए गढ़वाल ब्राह्मण चेहरा

राजनीतिक दलों के लिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरण हमेशा से ही बेहद अहम रहे हैं. उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद साल 2000 से शुरू हुआ राजनीति सफर भी क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द ही दिखाई दिया है. राजनीतिक दल गढ़वाल और कुमाऊं को काटने के साथ ही ठाकुर और ब्राह्मणों को वोट बैंक बनाने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहे हैं. फिलहाल, चर्चा उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर है. खबर है कि भाजपा प्रदेश में गढ़वाल के ब्राह्मण चेहरे को अध्यक्ष पद पर लाने का प्रयास कर रही है.

जातीय समीकरण से 'खेला' करने की जुगत में BJP.

फिलहाल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर एक ब्राह्मण चेहरा मदन कौशिक के रूप में मौजूद हैं. लेकिन मदन कौशिक हरिद्वार से ताल्लुक रखते हैं, जबकि भाजपा पहाड़ी जिलों से किसी ब्राह्मण चेहरे की तलाश में जुटी हुई है. दरअसल, गढ़वाल क्षेत्र से त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते क्षेत्रीय समीकरणों को साधने के लिए कुमाऊं से बंशीधर भगत को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी थी. उधर नेतृत्व परिवर्तन के बाद तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने और मदन कौशिक को मैदान से ब्राह्मण चेहरे के रूप में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली.

अब कुमाऊं से पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया है. जिसके बाद खबर है कि भाजपा पहाड़ से किसी ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है. हालांकि, भाजपा इन सभी चर्चाओं और आशंकाओं को खारिज कर रही है. साथ ही ब्राह्मणों को साधने की बात से भी साफ तौर पर इनकार कर रही है. इसे कांग्रेस द्वारा प्रचारित प्रसारित करने का आरोप भी भाजपा लगा रही है.

कांग्रेस की टीम से भाजपा में घबराहट

भाजपा के इन आरोपों से इतर कांग्रेस ने अपने अलग तर्क हैं. कांग्रेस का कहना है कि उनकी कार्यकारिणी के गठन होने के बाद जिस तरह कुमाऊं से हरीश रावत और गढ़वाल से प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर एक पहाड़ के ब्राह्मण गणेश गोदियाल को जिम्मेदारी दी गई है उसके बाद भाजपा में घबराहट पैदा हो गई है. इसीलिए भाजपा गढ़वाल के ब्राह्मण चेहरे की तलाश कर रही है, ताकि गढ़वाल में ब्राह्मण जाति को भी साधा जा सके.

मदन कौशिक एडजस्ट करना बड़ी चुनौती

प्रदेश में मदन कौशिक को हटाकर पहाड़ के किसी ब्राह्मण चेहरे को लाने की स्थिति में पार्टी को किसी कद्दावर नेता की जरूरत होगी. चुनाव के दौरान कोई निष्क्रिय चेहरा पार्टी के लिए मुसीबत बन सकता है. यूं तो बदरीनाथ से विधायक महेंद्र भट्ट का नाम प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सबसे ज्यादा लिया जा रहा है. मगर राजनीतिक रूप से देखें तो महेंद्र भट्ट न तो भाजपा में बड़ा अनुभवी चेहरा हैं और न ही उनके पास अब तक कोई बड़ी जिम्मेदारी रही है.

खास बात यह भी है कि मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के बाद उन्हें दूसरी जगह एडजस्ट करना होगा. ऐसे में एक बार फिर उन्हें कैबिनेट में भेजने का विकल्प हो सकता है. मगर मुश्किल यह है कि इस बार सरकार में एक भी मंत्री पद खाली नहीं है. लिहाजा या तो किसी मंत्री से इस्तीफा दिलवाना होगा या फिर मंत्रिमंडल में से ही किसी ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर लाना होगा.

गणेश जोशी पर नजरें

वैसे पार्टी के पास सबसे मजबूत और अनुभवी, तेज तर्रार चेहरे के रूप में मंत्रिमंडल में सुबोध उनियाल शामिल हैं. मगर उनका कांग्रेसी बैकग्राउंड उनके सामने मुश्किलें खड़ी कर सकता है. इस लिहाज से मंत्रिमंडल में गणेश जोशी का ही चेहरा दिखाई देता है, जो कि कई बार से लगातार विधायक हैं.

पहाड़ों में ब्राह्मणों की करीब 50 से ज्यादा जातियां

उत्तराखंड के पहाड़ों में ब्राह्मणों की करीब 50 से ज्यादा जातियां हैं. राज्य स्थापना के बाद से ही ठाकुर और ब्राह्मण के साथ ही गढ़वाल और कुमाऊं के समीकरण को भाजपा और कांग्रेस की तरफ से लगातार साधा जाता रहा है. सरकार और संगठन में ठाकुर और ब्राह्मण को बराबर की तवज्जों दी गई है. साथ ही कुमाऊं और गढ़वाल पर भी विशेष ध्यान दिया गया. मौजूदा स्थिति देखें तो भाजपा में फिलहाल कुमाऊं के मुख्यमंत्री और गढ़वाल में मैदानी जिले के ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाया हुआ है.

भाजपा में ब्राह्मणों-राजपूत का समन्वय

राजपूत राज्य स्थापना के दौरान जब 2002 में भगत सिंह कोश्यारी कुमाऊं के ठाकुर के रूप में मुख्यमंत्री थे. तब प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पूरन चंद शर्मा को ब्राह्मण चेहरे के रूप में जगह दी गई थी. साल 2007 में भाजपा की सरकार आई. तब भुवन चंद खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने. भुवन चंद खंडूड़ी गढ़वाल से ब्राह्मण चेहरा तो प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भाजपा ने बची सिंह रावत और बिशन सिंह चुफाल को एक राजपूत चेहरे के रूप में कुमाऊं से जिम्मेदारी दी गई.

इसके बाद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक गढ़वाल से ब्राह्मण चेहरा तो कुमाऊं से प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल रहे. 2017 में भाजपा की जब दोबारा सरकार आई तो गढ़वाल से राजपूत चेहरे के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कुमाऊं से ब्राह्मण चेहरा अजय भट्ट रहे. इसके बाद नेतृत्व परिवर्तन के बाद तीरथ सिंह रावत और फिर पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री के रूप में ठाकुर चेहरा रहे. मदन कौशिक गढ़वाल से मैदानी जिले के ब्राह्मण चेहरे के रूप में प्रदेश अध्यक्ष हैं.

कांग्रेस भी नहीं भूली समीकरण

ऐसे ही समीकरण कांग्रेस ने भी हमेशा रखे हैं. 2002 में कांग्रेस की सरकार आने के दौरान नारायण दत्त तिवारी एक ब्राह्मण चेहरा थे. तब प्रदेश अध्यक्ष के रूप में राजपूत चेहरा हरीश रावत थे. साल 2012 से 2017 में कांग्रेस ने विजय बहुगुणा ब्राह्मण चेहरा और फिर हरीश रावत राजपूत चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया, तो इस दौरान राज्य में यशपाल आर्य अनुसूचित प्रतिनिधित्व और किशोर उपाध्याय ब्राह्मण चेहरा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पार्टी में रहा. राज्य में पहली निर्वाचित सरकार आने के बाद से अब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर राजपूत और ब्राह्मणों का ही कब्जा जा रहा है.

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उत्तराखंड में अब तक रहे मुख्यमंत्रियों के लिहाज से देखें तो निर्वाचित सरकार में नारायण दत्त तिवारी, भुवन चंद खंडूड़ी, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा ब्राह्मण चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री रहे. उधर राजपूत चेहरे के रूप में हरीश रावत, भगत सिंह कोश्यारी, तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री पद संभाल चुके हैं.

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