नई दिल्ली/देहरादून : वैसे अगर देखा जाए तो अपने चहेतों को रेवड़ी बांटने का की परंपरा (Uttarakhand Assembly Recruitment Scam) हमेशा से सभी सरकारों में रही है. चाहे कांग्रेस पार्टी की सरकार रही हो या भारतीय जनता पार्टी की. सभी दलों ने जब भी मौका मिला है अपने चहेतों को सरकार में एडजस्ट करते हुए लाभ दिलाने की कोशिश की है, या मौका मिलने पर किसी सरकारी नौकरी में बैकडोर से घुसेड़ने की पहल भी की है, ताकि उनके लोग लाभान्वित हो सकें. जब मामला मीडिया की सुर्खियां बनता है और राजनेताओं में आपसी खींचतान शुरू होती है, तो पता चलता है कि नियमों की अनदेखी करके मनमाने तरीके से नियुक्ति की गई है. कुछ ऐसा ही मामला आजकल उत्तराखंड के विधानसभा में दिख रहा है, जहां पर 2011 से लेकर 2021 तक की गई भर्तियों की चर्चा है. इसमें कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की किरकिरी होने रही है. सबको जांच कर रही एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है, ताकि इसमें दोषी राजनेताओं की पोल खुल सके और गलत तरीके से भर्ती किए गए लोगों को हटाकर स्वच्छ और पारदर्शी तरीके से पात्र लोगों की नियुक्ति की जा सके.
आइए जानते हैं कि उत्तराखंड विधानसभा में अपने चहेतों की नियुक्ति का मामला (Recruitment Scams in Uttarakhand) कब और कैसे शुरू हुआ और इसमें किसके ऊपर गाज गिरती दिखाई दे रही है....
ऐसी है संविधान में व्यवस्था
आइए पहले यह जानते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या है संवैधानिक नियम और 'भारत का संविधान' के अन्तर्गत राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य के विवरण के दौरान इसका विवरण मिलता है. इसका उल्लेख धारा 187 में किया गया है. अनुच्छेद 187 के अनुसार राज्य के विधान-मण्डल के सचिवालय में कर्मचारियों के लिए व्यवस्था की गयी है और कहा गया है कि...
- राज्य के विधान-मण्डल के सदन का या प्रत्येक सदन के अलग अलग सचिवीय कर्मचारी होंगे. परन्तु विधान परिषद वाले राज्य के विधान मण्डल की दशा में, इस खण्ड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसे विधान मण्डल के दोनों सदनों के लिए सम्मिलित पदों के सृजन को रोकने के लिए है.
- राज्य का विधान-मण्डल, विधि द्वारा, राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों के सचिवीय कर्मचारियों की भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का निर्धारण कर सकेगा.
- जब तक राज्य का विधान-मण्डल खण्ड (2) के अधीन कोई व्यवस्था नहीं करता है, तब तक राज्यपाल, यथास्थिति, विधानसभा के अध्यक्ष या विधान परिषद के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् विधान सभा के या विधान परिषद के सचिवीय कर्मचारियों की भर्ती के और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए नियम उक्त खंड के अधीन बनाई गई किसी विधि के नियमों के अधीन रहते हुए ही प्रभावी होंगे.
कांग्रेसी नेताओं ने शुरू किया था खेल
उत्तराखंड विधानसभा में अपने चहतों की भर्ती का मामला वैसे तो कांग्रेसी शासनकाल में 2011 में शुरू हो गया था, जब कांग्रेस की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष के पद पर गोविंद सिंह कुंजवाल (Ex Speaker Govind Singh Kunjwal) काबिज थे. कुंजवाल ने उस वक्त अपने परिवार के रिश्तेदारों, परिचितों और आसपास के लोगों को भर्ती किया था, तो इससे नाराज कुछ लोग कोर्ट में चले गए थे. कोर्ट में नियुक्ति लिस्ट जमा होने के बाद जब लिस्ट आउट हुई तो पता चला कि कांग्रेस पार्टी के समय में भी अपने चहेतों को नौकरी पर लगाया था.
गोविन्द सिंह कुंजवाल बोले- बेटे को नौकरी देना पाप नहीं
''मेरा बेटा बेरोजगार था, मेरी बहू बेरोजगार थी, दोनों पढ़े-लिखे थे. अगर डेढ़ सौ से अधिक लोगों में मैंने अपने परिवार के दो लोगों को नौकरी दे दी तो कौन सा पाप किया. मेरे कार्यकाल में कुल 158 लोगों को विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दी गई थी. इनमें से 8 पद पहले से खाली थे और 150 पदों की स्वीकृति मैंने तत्कालीन सरकार से लेकर की थी. मैंने कोई भी काम नियम विरुद्ध नहीं किया है.''
हरीश बोले- दी थी आग की दरिया से बचने की सलाह
''मैंने कुंजवाल से उस वक्त कहा था कि ये आग का दरिया है इसमें हाथ न डालें, जल जायेंगे और आज वही हुआ है.''
अब सवाल ये भी उठता है कि आज इस तरह की हिदायत उजागर करने वाले हरीश रावत सीएम रहते हुए चुप क्यों थे, आखिर हरीश रावत की कौन सी मजबूरी थी, जिससे उन्होंने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं.
ये हैं भाजपाइयों के कारनामे
कहा जा रहा है कि 2021 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल में जो भर्तियां हुई थीं, उन पर भी सवाल उठाया गया. जब नियुक्ति से संबंधित पेपरों को विधानसभा के अंदर से ही कुछ अधिकारियों ने बाहर मीडिया में लीक किया तो यह खबर प्रदेश में आग की तरह फैल गयी. इतना ही नहीं बाकायदा एक एक नियुक्ति को लेकर संबंधित नेताओं, अधिकारियों, मीडियाकर्मियों व अन्य लोगों के कनेक्शन भी लिखकर दिवालों पर चस्पा किए गए. उसके बाद यह बखेड़ा शुरू हो गया. हालांकि कई नेताओं ने अपने कनेक्शन को अस्वीकार कर दिया तो कई लोगों ने पात्रता के आधार पर नियुक्ति की बात कही. वहीं कुछ लोग नाम बदनाम करने के आरोप में खबरें छापने वालों के खिलाफ कोर्ट भी जाने की धमकी दी. हालांकि इस मामले में कुछ दिनों तक सीना तान कर कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल कहते रहे कि सभी नियुक्तियां विधानसभा के अधिकारियों के संज्ञान में हैं और सब कुछ नियमों के अधीन हुआ है और उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है.
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उत्तराखंड विधानसभा में अपर निजी सचिव समीक्षा, अधिकारी समीक्षा अधिकारी, लेखा सहायक समीक्षा अधिकारी, शोध एवं संदर्भ, व्यवस्थापक लेखाकार सहायक लेखाकार, सहायक फोरमैन, सूचीकार, कंप्यूटर ऑपरेटर, कंप्यूटर सहायक, वाहन चालक, स्वागती, रक्षक पुरुष और महिला के पद पर मनमाने तरीके से बैकडोर से भर्ती हुई है.