हैदराबाद : 60 के दशक में अमेरिका में एक कैंपेन शुरू हुआ और 1970 के दशक में सेहत की चिंता में कॉलेस्ट्रॉल की एंट्री हुई. अंडा, चीज, मीट, चावल, आलू, घी-मक्खन और मिठाई को सेहत का दुश्मन करार दिया गया. पारंपरिक कुकिंग ऑयल कॉलेस्ट्रॉल के एजेंट बना दिए गए. तली-भुनी चीजों को थाली से दूर करने की सलाह दी गई. कुल मिलाकर 70 के दशक में खाने-पीने के एक नए सलीके का ईजाद हुआ. साथ ही पूरी दुनिया में खड़ा हुआ कॉलेस्ट्रॉल को खत्म करने वाले दवाओं का विशाल बाजार. रोज कॉलेस्ट्रॉल से जुड़े रिसर्च प्रकाशित होने लगे. कॉलेस्ट्रॉल को दिल की बीमारी और डायबीटीज देने वाला मेन सोर्स बताने वाले रिसर्च के बारे में जानने के लिए आप गूगल करें. गुड कॉलेस्ट्रॉल और बैड कॉलेस्ट्रॉल की असलियत सामने आ जाएगी. इनमें ज्यादातर शोध अमेरिका और यूरोप में हुए.
कॉलेस्ट्रॉल के इलाज के नाम पर 40 साल में दो ट्रिलियन डॉलर का कारोबार खड़ा हुआ सुनियोजित विज्ञापनों ने कॉलेस्ट्रॉल को विलेन बना दिया
कॉलेस्ट्रॉल को लेकर अमेरिका ने 1961 में चेतावनी जारी की थी. इसके बाद से विज्ञापनों और कैंपेन के कारण हर शख्स अपने मोटापे के लिए कॉलेस्ट्रॉल को विलेन बताने लगा. आप भी ऐसे विज्ञापन देखे होंगे कि जिसमें एक सुंदर की मॉडल समोसे और पूड़ी को नकार देती है. कथित कॉलेस्ट्रॉल फ्री फूड प्रॉडक्ट की बाढ़ आ गई और पारंपरिक त्योहारी भोजन क्रिटिसिज्म का शिकार हो गया. कॉलेस्ट्रॉल फ्री फूड प्रॉडक्ट का नया बाजार क्रिएट हो गया है. इस पूरे परिदृश्य में परोक्ष रूप से दवाओं की एक कैटिगरी का बाजार बढ़ गया. 2015 आते-आते कॉलेस्ट्रॉल की दवा और इलाज का कारोबार 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा हो गया. यह रकम भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था के बराबर था. इसके अलावा पैथलैब का कारोबार भी खूब चमका.
कॉलेस्ट्रॉल लेवल जांच के लिए मानक हेल्थ पैनल ने हटाया कॉलेस्ट्रॉल के नाम पर धोखे से पर्दा
कॉलेस्ट्रॉल से दुश्मनी का नतीजा यह रहा कि ती दशक तक कई प्रोडक्ट की डिमांड कम हो गई. खुद अमेरिका में अंडा उत्पादक किसान इसके शिकार हुए. 2015 तक वहां अंडे की खपत में 30 फीसदी कमी आई. इस बीच वहां कॉलेस्ट्रॉल पर बहस शुरू हो गई. डॉक्टरों के एक तबके ने गुड कॉलेस्ट्रॉल और बैड कॉलेस्ट्रॉल की थ्योरी को नकार दिया. तब अमेरिका ने इसकी जांच के लिए एक कमिटी ( Dietary Guidelines Advisory Committee) बना दिया. कमिटी ने जो रिजल्ट दिए हैं, वह अगर आप जानेंगे तब पता चलेगा कि कॉलेस्ट्रॉल के नाम पर किस तरह उल्लू बनाया गया. पैनल ने बताया कि स्वस्थ्य वयस्कों के खून में हाई कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ खाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है और न ही इससे दिल की बीमारी होती है.
40 साल बाद अमेरिका ने पलटी मार ली
फूड एडवायजरी कमिटी के नतीजे के बाद अमेरिका ने 40 साल बाद कॉलेस्ट्रॉल के प्रति अपनी राय पर पलटी मार ली. उसने तपाक से अपनी कॉलेस्ट्रॉल वाली लिस्ट भी बदल दी और अपनी एडवाइजरी में भी संशोधन कर लिया. अब अमेरिकी स्वास्थय विभाग की दलील है कि खून में कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने का खाने पीने से कोई संबंध नहीं होता. न कोई कॉलेस्ट्रॉल अच्छा होता है और न बुरा. अब अमेरिका की हाई कॉलेस्ट्रॉल वाली लिस्ट में सेचुरेटेड फैट वाले खाद्य पदार्थ जैसे अंडा, चीज, मीट, चावल, आलू, पिज्जा, पास्ता, सैंडविच और बर्गर भी शामिल हो गए हैं. रिसर्च की मानें तो कॉलेस्ट्रॉल का मोटापा से लेना-देना नहीं है.
हालांकि डायट्री गाइडलाइन एडवाइजरी कमिटी के एक्सपर्ट पैनल ने कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर को लेकर चेतावनी जारी ही रखी है. पैनल का कहना है कि जिनको किसी भी कारण से दिल की बीमारी या डायबीटीज है, उन्हें कोलेस्ट्रॉल युक्त भोजन से बचना चाहिए. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पोषण विभाग के अध्यक्ष वाल्टर विलेट ने भी कॉलेस्ट्रॉल पर पैनल की सिफारिश का समर्थन किया है.
शोध में यह सामने आया है कि लीवर के लिए कॉलेस्ट्रॉल जरूरी है ध्यान दें, हेल्दी रहने के लिए जरूरी है कॉलेस्ट्रॉल
कॉलेस्ट्रॉल के महत्व को ऐसे समझिए. डॉक्टरों के अनुसार, नर्व सेल को दुरुस्त रखने और स्टेराइड हार्मोन बनाने के लिए इसकी जरूरत होती है. हमारे शरीर को प्रतिदिन 950 मिलीग्राम कॉलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है. हम अगर अंडा, चीज, मीट, चावल, आलू रहित सामान्य भोजन करते हैं तो उससे 20 पर्सेंट तक कॉलेस्ट्रॉल शरीर को मिलता है. बाकी का कॉलेस्ट्रॉल लीवर को बनाना पड़ता है. अगर आप तेल, मक्खन, घी से बिल्कुल परहेज करेंगे तो लीवर को कॉलेस्ट्रॉल बनाने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ेगी. कॉलेस्ट्रॉल का लेवल ज्यादा कम हुआ तो लीवर खराब होने के चांसेज बने रहेंगे. खुद डॉक्टर भी मानते हैं कि दिल की बीमारी के लिए खराब जीवन शैली और प्रदूषित वातावरण समेत कई कारण होते हैं. वही डायबीटीज में वंशानुगत कारणों से भी हो सकता है.
कॉलेस्ट्रॉल का डर, बाजार ने खान-पान को लेकर भी लोगों के मजे लिए
आप बताएं क्या खान-पान संबंधी सावधानी सिर्फ एक हेल्थ प्रॉब्लम के लिए हो सकती है. नेचर का यह फैक्ट है कि खान-पान की सावधानी सभी बीमारियों में जरूरी है. आप गौर करेंगे कि खान-पान संबंधी सलाह सभी बीमारियों में एक जैसी होती है. मसलन स्किन संबंधी बीमारियों के लिए क्या खाएं. सिर के बाल झड़ रहे हो तो क्या खाएं. पेट में भारीपन या कब्ज है तो क्या खाएं. मोटे हो गए हो तो क्या डाइट होनी चाहिए. दुबले हैं तो क्या खाएं. बीपी की दिक्कत है. इन सभी दिक्कतों का इलाज एक क्वॉलिटी डायट में है. भारतीय खाने की परंपरा में किसी भी वस्तु का ज्यादा खाना यानी अति करना मना है.
जिंदगी कुछ सामान्य नियम, जिसका पालन जरूरी है
- दिन में सात से आठ ग्लास पानी भी पीना चाहिए, ताकि शरीर में पानी का स्तर बना रहे.
- साबुत अनाज यानी फाइबर वाले जैसे चावल, दाल, गेहूं, मक्का, स्प्राउट, सलाद आदि वाले भोजन करें. भोजन में चोकर वाले आटा का प्रयोग करें.
- फल और हरी साग- सब्जियां सेहत के लिए लाभकारी होती है. अंडा, दूध यदि मांसाहारी हैं तो मछली आदि खाएं.
- शराब आदि का सेवन नहीं करें. नमक और मीठा खाने में अति न करें. लिमिट में खाएं
- रोजाना कुछ शारीरिक गतिविधि योगा, व्यायाम, टहलना आदि को आदतों में शामिल करें.
- रात में कम से कम सात से आठ घंटे की नींद लें.
कॉलेस्ट्रॉल ही नहीं, किसी भी तरह की प्रॉब्लम से बचने के लिए जरूरी है संतुलित आहार
अगर इसके बाद भी आपके मन में कॉलेस्ट्रॉल को लेकर भ्रम है तो ध्यान रखें. आप 5 साल में एक बार डॉक्टर की सलाह पर अपनी जांच कराएं. हर महीने और हर साल आपका कॉलेस्ट्रॉल लेवल इतना नहीं बढ़ सकता है, जो प्रॉब्लम क्रिएट कर दे. आम तौर पर 45 वर्ष के बाद कॉलेस्ट्रॉल समस्या बनती है, वह भी गलत जीवन शैली के कारण.