नई दिल्ली :अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विश्वविद्यालय प्रवेश में नस्ल और जातीयता के उपयोग (सकारात्मक पक्षपात) पर प्रतिबंध लगा दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से दशकों पुरानी प्रथा को बड़ा झटका लगा, जिसने अफ्रीकी-अमेरिकियों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा दिया.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भारतीय प्रवासियों को नुकसान पहुंचने की संभावना है. ओपन डोर्स 2022 की रिपोर्ट से पता चला है कि अमेरिका में 10 लाख से अधिक विदेशी छात्रों में से भारतीय छात्र करीब 21 फीसदी हैं. 2021-22 शैक्षणिक वर्ष में लगभग 200,000 भारतीय छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका को चुना, जो पिछले वर्ष की तुलना में 19% अधिक है.
2023 प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के अध्ययन के अनुसार छह सबसे अधिक आबादी वाले जातीय समूहों में भारतीय अमेरिकियों में कॉलेज डिग्री धारकों का अनुपात सबसे अधिक 75% है, जबकि वियतनामी अमेरिकियों में सबसे कम 32% है. जाहिर तौर पर नस्ल के आधार पर एडमिशन में छूट और फीस से जुड़े मामले में भारतीय छात्रों पर इसका असर पड़ेगा.
हालांकि अमेरिकी कोर्ट के इस फैसले पर कुछ लोगों का मानना है कि यह एक समतापूर्ण और न्यायपूर्ण समाज के लिए महत्वपूर्ण है, चाहे वह भारत में हो या अमेरिका में. वहीं, ट्वीटर पर एक यूजर ने लिखा कि इस फैसले से भारतीय प्रवासियों को नुकसान होने की संभावना है. उसने लिखा कि 'मैं भारतीय हूं और मैंने हमेशा सकारात्मक पक्षपात का समर्थन किया है. यह दयनीय है कि एशियाइयों के एक छोटे से प्रतिशत को श्वेत वर्चस्व के एजेंडे द्वारा यह सोचने के लिए प्रेरित किया गया कि अश्वेतों के लिए सकारात्मक कार्रवाई उन्हें नुकसान पहुंचा रही है. क्या हमें गणित में अच्छा नहीं होना चाहिए?'
कोर्ट ने ये दिया फैसला : वैचारिक आधार पर 6-3 से मतदान करते हुए अदालत ने पाया कि हार्वर्ड कॉलेज और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों ने संविधान के समान सुरक्षा खंड का उल्लंघन किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन्स द्वारा लाए गए दो मामलों का फैसला किया. ये एक रूढ़िवादी कानूनी रणनीतिकार एडवर्ड ब्लम की अध्यक्षता वाला एक समूह है, जिन्होंने सकारात्मक कार्रवाई के लिए लड़ने में वर्षों बिताए हैं. एक मामले में तर्क दिया गया कि हार्वर्ड की प्रवेश नीति एशियाई अमेरिकी आवेदकों के साथ गैरकानूनी रूप से भेदभाव करती है. दूसरे ने दावा किया कि उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय श्वेत और एशियाई अमेरिकी आवेदकों के साथ गैरकानूनी रूप से भेदभाव करता है.