मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने एक जुलाई को उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में यह दलील दी है. इस हलफनामे को मंगलवार को रिकॉर्ड में लिया गया. हलफनामा मामले में एक आरोपी कार्यकर्ता रोना विल्सन की रिट याचिका के विरोध में दायर किया गया है, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र रद्द करने का आग्रह किया है.
इस साल की शुरुआत में जारी आर्सेनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, विल्सन के कंप्यूटर में अपराध संकेती पत्र डाला गया था राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि 2018 में विल्सन और अन्य आरोपियों के घरों पर छापेमारी करते हुए मामले में तत्कालीन अभियोजन एजेंसी पुणे पुलिस (मामले को बाद में एनआईए को सौंप दिया गया था) ने उचित प्रक्रिया का पालन किया था.
राज्य सरकार ने कहा कि विल्सन को पुलिस ने निशाना नहीं बनाया है. इसमें कहा गया है कि विल्सन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि किसी ने उनके कंप्यूटर को हैक कर लिया और अपराध संकेती सामग्री उसमें डाल दी. हलफनामे में कहा गया है कि लिहाज़ा यह विल्सन पर है कि वह अदालत को बताएं कि सबूतों से छेड़छाड़ के कथित कृत्य के पीछे कौन है. राज्य ने हलफनामे में कहा, (विल्सन की) याचिका में दी गई सभी दलीलें आर्सेनल कंसल्टिंग की रिपोर्ट पर आधारित हैं. यह रिपोर्ट एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) या वर्तमान प्रतिवादी (पुणे पुलिस) द्वारा दायर आरोप पत्र का हिस्सा नहीं है.
इसमें कहा गया है कि आर्सेनल की रिपोर्ट आरोप पत्र का हिस्सा नहीं है, इसलिए उच्च न्यायालय इस पर भरोसा नहीं कर सकता है. हलफनामे में कहा गया है, जब मुकदमा लंबित है और मामला विचाराधीन है, तो आर्सेनल के पास माननीय अदालत की अनुमति के बिना इस तरह की राय देने का कोई अधिकार नहीं है. राज्य सरकार ने अदालत से विल्सन की याचिका को खारिज करने का आग्रह किया.