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राजस्थानः ठेला चालक की बेटी का यूपीएससी में चयन, दूसरे प्रयास में मिली सफलता - Hand Cart Puller Daughter Cracked UPSC

टैलेंट के लिए माहौल की जरूरत नहीं होती बल्कि वो खुद रास्ता तलाश लेता है. ठीक वैसे ही जैसे भरतपुर की दीपेश कुमारी (UPSC 2021 Success Story) ने किया. अपनी मंजिल पर नजर रखी और रास्ता खुद ब खुद तय कर लिया. एक ठेला चालक की बेटी ने सीमित संसाधनों के बीच ही यूपीएससी को क्रैक (Hand Cart Puller Daughter Cracked UPSC) किया और 93वीं रैंक हासिल की. कैसे तय किया मेधावी दीपेश ने अफसर बिटिया बनने का ये सफर, आइए जानते हैं!

Success Story Of Deepesh Kumari, Deepesh Kumari From Bharatpur
ठेला चालक की बेटी का यूपीएससी में चयन

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Published : Jun 1, 2022, 6:53 PM IST

भरतपुर. राजस्थान के भरतपुर शहर के अटल बंद क्षेत्र में कंकड़ वाली कुईया निवासी गोविंद बीते 25 साल से घर की रसोई में सांक बनाकर ठेले पर रखकर शहर की गलियों में घूम-घूम कर बेचते हैं. एक कमरा और एक रसोई के मकान में गोविंद अपनी दो बेटी, तीन बेटे और पत्नी के साथ रहकर जीवन यापन कर रहे हैं. दो दिन पहले यूपीएससी का परिणाम गोविंद के लिए खुशियां लेकर आया. गोविंद की बेटी दीपेश कुमारी ने विपरीत परिस्थितियों में भी कठिन परिश्रम कर यूपीएससी में 93 वीं रैंक (Deepesh Kumari UPSC 2021 AIR 93) हासिल की है. अब गोविंद की बेटी अफसर बिटिया कहलाएगी.

होशियार है बिटिया: बेटी के अफसर बनने के बाद गोविंद के चेहरे पर खुशी जरूर है लेकिन कर्म के प्रति समर्पण कम नहीं. तभी तो परिणाम आने के अगले ही दिन गोविंद फिर से अपना ठेला लेकर परिवार पालने के लिए शहर की गलियों में निकल (Hand Cart Puller Daughter Cracked UPSC) गए. गोविंद ने बताया कि उनके पांच बेटे बेटियों में दीपेश कुमारी सबसे बड़ी है. दीपेश बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी. दसवीं तक की पढ़ाई भरतपुर शहर के ही शिशु आदर्श विद्या मंदिर से की. दीपेश कुमारी ने दसवीं कक्षा 98% अंकों के साथ और 12वीं कक्षा 89% अंकों के साथ उत्तीर्ण की. इसके बाद जोधपुर के एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की और फिर आईआईटी मुंबई से एमटेक की पढ़ाई. गोविंद ने बताया कि बेटी दीपेश कुमारी दिल्ली से यूपीएससी की तैयारी कर रही थी (UPSC Result 2021) और दूसरे प्रयास में उसने 93वीं रैंक हासिल की है.

ठेला चलाते पिता.

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एक पिता का त्याग: गोविंद शहर की तंग गली में जिस मकान में रहते हैं, वो बहुत ही छोटा है. मकान में सिर्फ एक कमरा और एक रसोई है. गोविंद इसी मकान की रसोई में हर दिन सांक बनाते हैं और शहर की गलियों में बेचकर बच्चों को शिक्षित कर सफल बना रहे हैं. काम के प्रति इमानदारी का प्रतिबिम्ब जीवन में भी दिखता है. इनके जुझारूपन को इनके बच्चों ने करीब से देखा और समझा है यही वजह है कि पढ़ाई में मेहनत से कभी जी नहीं चुराया और पिता का हमेशा मान बढ़ाया.

ठेला चालक पिता के सभी बच्चे होनहार: ठेला चालक गोविंद ने बताया कि उनकी दो बेटी और तीन बेटे हैं. सबसे बड़ी बेटी दीपेश कुमारी, दूसरी बेटी ममतेश कुमारी अग्रवाल दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में चिकित्सक है, बेटा सुमित अग्रवाल महाराष्ट्र में एमबीबीएस प्रथम वर्ष, अमित अग्रवाल गुवाहाटी से एमबीबीएस द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है. सबसे छोटा बेटा नंदकिशोर 12 वीं पास है. अपने जीवन के संघर्षों को लेकर गोविंद कहते हैं कि जीवन में सुख दुख चलते रहते हैं. इंसान को मेहनत से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए और यही मंत्र वो अपने बच्चों को देते हैं.

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