नई दिल्ली :जाटलैंड में अपना अपना सिक्का जमाने में सभी पार्टियां जी जान से जुटी हुई हैं. 10 फरवरी को पश्चिमी यूपी की 58 सीटों के लिए मतदान (Voting for 58 seats) होना है. यही वजह है कि एक ही दिन में सभी पार्टी के सुप्रीमो इस इलाके से हुंकार भर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने बिजनौर के कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लोगों को दोबारा भाजपा का साथ देने का संकल्प लेने की बात कही. वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती और साप के अखिलेश यादव ने भी इस क्षेत्र में रैलियों को संबोधित किया.
पश्चिमी यूपी की 30 सीटों पर जाट वोट बैंक का पूरी तरह से कब्जा है और यह पॉलीटिकल पावर के रूप में देखा जाता है. चौधरी चरण सिंह ने यूपी में इसी इलाके में जाट समुदाय को पावर बैंक की तरह स्थापित किया था. मगर 2013 के दंगों ने उन राजनीतिक पार्टियों के समीकरण को बदलकर रख दिया. इस समीकरण का भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त फायदा पहुंचा और यह इलाका एक तरफा भारतीय जनता पार्टी के झोली में चला गया और यही वजह थी कि पार्टी को चुनाव में ऐतिहासिक जीत मिली.
मगर हाल ही में चले किसान आंदोलन ने एक बार फिर से इस इलाके के वोट बैंक का गणित बदल दिया है. बाकी पार्टियां भी अब दोबारा इस इलाके में अपनी संभावनाएं तलाश रही हैं और इस मौके का सबसे ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश में हैं. हमेशा से जाटों के ऊपर राजनीति करती आई आरएलडी, जिसने सपा गठबंधन के साथ मिलकर इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक में पूरी तरह से सेंध लगाने की कोशिश की है. वह दावा कर रही है कि इस बार जाटों और किसानों के दबदबे वाले क्षेत्र में बीजेपी को सीटें नहीं मिलेगी.
यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में चिंता की लकीरें देखने को मिल रही है और वह किसान और जाटों से माफी मांगते तक नजर आ रहे हैं. आने वाले दिनों में किसानों के लिए बड़े-बड़े वायदे भी इस इलाके में सभी पार्टियां अपनी अपनी तरफ से करने में पीछे नहीं हट रहीं. भारतीय जनता पार्टी जाटलैंड की ताकत से पूरी तरह से अवगत है और अपना सारा जोर लगा रही है.