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जाट वोट के लिए जद्दोजहद के बीच पीएम की वर्चुअल रैली से BJP को मिली संजीवनी

उत्तर प्रदेश के जाटलैंड में अच्छे प्रदर्शन के लिए जी जान लगा रही भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली वर्चुअल रैली से संजीवनी मिली है. भाजपा के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह जाटलैंड और उनका वोट वैंक क्या मायने रखता है, जानने के लिए पढ़ें ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

जाट वोट
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Published : Jan 31, 2022, 8:03 PM IST

नई दिल्ली : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड में दोबारा अच्छे प्रदर्शन के लिए भाजपा जी जान से जुट गया है. वहीं, भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली वर्चुअल रैली 'जन चौपाल' से कुछ संजीवनी जरूर मिली है. प्रधानमंत्री ने सोमवार को क्षेत्र के सौ मंडल के मतदाताओं को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया. इसमें आगरा से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और लखनऊ से उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी जुड़े थे.

प्रधानमंत्री ने 1857 की क्रांति और देश की एकजुटता का संदेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिखरे हुए मतदाताओं को एक करने के लिए दिया. उन्होंने मुजफ्फरनगर और कैराना के दंगों की याद दिलाकर मतदाताओं को एक बार फिर से सचेत किया. जाट और जाट लैंड इस समय उत्तर प्रदेश की सियासत में केंद्र बिंदु बने हुए हैं. सभी पार्टियां जाट वोट बैंक को रिझाने में जुटी हुई है.

जहां समाजवादी पार्टी और आरएलडी साथ मिलकर इस समुदाय को अपने पक्ष में करने में कड़ी मेहनत कर रहे हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह जाटलैंड और उनका वोट बैंक बहुत मायने रखता हैं. क्योंकि पिछले चुनाव में यहां से कुल मतदाताओं का 75 प्रतिशत वोट भाजपा को मिला था.

चुनाव प्रचार के इस चरण में भाजपा का सारा फोकस पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी जाटलैंड पर टिका है. क्योंकि 10 फरवरी को यहां की कई महत्वपूर्ण सीटों पर मतदान होगा और यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने पहली वर्चुअल रैली की शुरुआत भी इसी इलाके से की. भाजपा को डर है कि पहले चरण में यदि जाटलैंड का वोट पार्टी के समर्थन में नहीं पड़े तो बाकी के चरण पर इसका प्रभाव पड़ सकता है.

यही वजह है कि भाजपा इस क्षेत्र के लिए अपने तमाम दिग्गजों को प्रचार में लगा दिया है. पार्टी लोगों को उस डर के प्रति भी आगाह कर रही है कि यदि वह समाजवादी पार्टी के झांसे में आकर जयंत चौधरी के नाम पर वोट देते हैं तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल होगी. यदि गलती से भी सपा सत्ता में आ गई तो जयंत चौधरी तो बाहर होंगे ही, लेकिन आजम खान और अतीक अहमद जैसे माफिया भी उस सरकार का हिस्सा बन जाएंगे.

पार्टी के तमाम नेता इस इलाके के वोट बैंक के ध्रुवीकरण की भी पूरी कोशिश कर रहे हैं. इसकी शुरुआत गृह मंत्री के कार्यक्रम से हुई थी, जिसमें उन्होंने यहां तक कह दिया था कि आप भी लाइन लगाकर वोट डालें, क्योंकि दूसरी ओर भी लाइन लगने वाली है. वहीं, प्रधानमंत्री ने भी अपने प्रथम वर्चुअल रैली में संबोधन के दौरान 1857 की क्रांति की याद दिलाते हुए सभी को एकजुट होने का संदेश देकर कहीं न कहीं हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण की दिशा को और आगे बढ़ा दिया है.

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हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए भाजपा ने 2017 के चुनाव में भी इस तरह की पॉकेट मीटिंग की थी. हालांकि, तब इस इलाके में पार्टी के लिए अनुकूल परिस्थितियां थी और यही वजह थी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 143 में से 108 सीटें दल के कब्जे में आई थी. यही नहीं, लोकसभा में भी 29 सीटों में से 21 सीटें भाजपा के खाते में गई थी, लेकिन इस बार पार्टी एक साल तक चले किसान आंदोलन की वजह से पांच साल पहले वाला आत्मविश्वास नहीं दिखा पा रही है. इस क्षेत्र के मतदाताओं, खासकर किसान और जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा को अब कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है.

भाजपा को पता है कि लखनऊ की सत्ता का रास्ता जाटलैंड से होकर ही जाता है. इसलिए जाटलैंड की इस जंग को देखते हुए जिन्ना और सरदार पटेल को भी अब इस लड़ाई में घसीटा जा रहा है. भाजपा को अंदेशा है कि जाट नाराज हैं, लेकिन यह भी विश्वास है कि यदि पार्टी चाहे तो इनकी नाराजगी ईवीएम तक लाते-लाते खत्म कर हो जाएगी. इसलिए पूरे इलाके की कमान खुद अमित शाह ने संभाली है.

वहीं, भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस महायुद्ध में कार्पेट बोम्बिंग तक करनी पड़ रही है. प्रधानमंत्री के अलावा पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आदि तमाम दिग्गजों के साथ भाजपा के नेता घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं. भाजपा सरकार की उपलब्धियों के पर्चे बांटे जा रहे हैं. चाहे वह प्रधानमंत्री हो, भाजपा अध्यक्ष या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हों, सभी इस बात को अपने भाषणों में याद दिला रहे हैं कि 'फर्क साफ है' कि किस तरह पहले सरकारी फंड कब्रिस्तान में बाउंड्री बनाने में लगाया जाता था, किस तरह मुजफ्फरनगर कैराना के दंगों में एक समुदाय के लोगों को ही सुरक्षित किया जाता था और दूसरे समुदाय के युवाओं के नाम मुकदमा दर्ज कराए जाते थे.

आखिर भाजपा को इस इलाके में कार्पेट बोम्बिंग क्यों करनी पड़ रही है, इस सवाल के जवाब में भाजपा के जाट नेता और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने कहा कि यह कोई कार्पेट बोम्बिंग नहीं, बल्कि भाजपा के चुनाव प्रचार का तरीका है. भारतीय जनता पार्टी चुनाव प्रचार में छोटा-बड़ा नहीं देखती, बल्कि पार्टी के कद्दावर नेताओं से लेकर जमीनी कार्यकर्ता सभी मेहनत करते हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टियां यह बात बेवजह फैला रही है कि जाट भाजपा से नाराज हैं, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं. यह नाराजगी भले ही पहले हुई हो लेकिन अब खत्म हो चुकी है. जाट समुदाय के लोग हो या किसान सभी भारतीय जनता पार्टी को ही वोट करेंगे, क्योंकि इस क्षेत्र के मतदाता 2013 के मुजफ्फरनगर और कैराना कांड को भूले नहीं है.

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